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इस बार युवाओं की चलेगी, जानिए बिहार का Gen-Z किसके साथ खड़ी है? देखिए कौन जीतेगा दिल और वोट?
Authored By: Nishant Singh
Published On: Friday, October 24, 2025
Last Updated On: Friday, October 24, 2025
बिहार की सियासत में इस बार सबसे बड़ी ताकत कोई नेता नहीं, बल्कि नई सोच है - Gen-Z की सोच. 1997 के बाद जन्मे ये युवा वोटर अब जाति नहीं, रोजगार और विकास पर वोट देंगे. 1.75 करोड़ से ज़्यादा Gen-Z वोटरों के हाथ में इस बार बिहार का भविष्य है. सवाल यही है - नीतीश का अनुभव, तेजस्वी की उम्मीदें या पीके का प्रयोग… किसे मिलेगा इन युवाओं का दिल?
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Friday, October 24, 2025
बिहार की राजनीति में इस बार हवा कुछ अलग है न नारों का वही पुराना शोर, न नेताओं का पारंपरिक अंदाज़. इस बार चुनावी दंगल में सबसे बड़ा चेहरा कोई नेता नहीं, बल्कि एक सोच है Gen-Z की सोच. यानी 1997 के बाद जन्मी वो युवा पीढ़ी जो न सिर्फ तकनीक के साथ बड़ी हुई, बल्कि सवाल पूछना भी जानती है. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में हर चौथा वोटर इसी नई पीढ़ी से जुड़ा है, जो अपने भविष्य, रोज़गार और सम्मान की राजनीति चाहती है. ऐसे में बड़ा सवाल है क्या बिहार के Gen-Z वोटर इस बार सियासत की दिशा बदल देंगे?
बदलती तस्वीर: युवाओं के हाथ में बिहार का भविष्य
6 और 11 नवंबर को होने वाले दो चरणों के इस चुनाव में तकरीबन 7.41 करोड़ मतदाता वोट डालेंगे, जिनमें करीब 1.75 करोड़ युवा यानी Gen-Z वोटर शामिल हैं. यानी राज्य के लगभग 24% वोटर वो हैं जिन्होंने सिर्फ नीतीश कुमार के शासन को देखा है लालू-राबड़ी या कांग्रेस का दौर इनके लिए इतिहास की किताबों में दर्ज कहानियां हैं. इन युवाओं के पास सोशल मीडिया, इंटरनेट और ग्लोबल सोच है. ये वो पीढ़ी है जो अब “कौन जात का है नेता?” से ज़्यादा पूछती है “कितनी नौकरी दी?”, “कितनी यूनिवर्सिटी बनी?”, “कितना विकास हुआ?” यही वजह है कि इस बार का चुनाव मुद्दों से ज़्यादा माइंडसेट का चुनाव बन गया है.
Gen-Z की ताकत: आंकड़ों में बड़ा असर
बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर औसतन हर सीट पर लगभग 70 हज़ार युवा वोटर हैं. ये वोट बैंक इतना बड़ा है कि किसी भी गठबंधन की जीत या हार का फैसला कर सकता है. 58% आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की है यानी पूरा राज्य युवा ऊर्जा से भरा हुआ है. और यही कारण है कि इस बार हर पार्टी ने अपने घोषणापत्र में ‘युवा’ शब्द को सुनियोजित तरीके से शामिल किया है. चाहे बात रोज़गार की हो, स्टार्टअप्स की या शिक्षा की हर कोई जानता है कि अगर युवा दिल जीत लिया, तो सत्ता की कुर्सी भी दूर नहीं.
इंटरनेट जनरेशन: सोच में तेज, नज़रिया नया
Gen-Z वो पीढ़ी है जिसने Nokia से iPhone तक का सफर देखा है, जिसने ट्यूशन सेंटर से YouTube क्लासेस तक का बदलाव जिया है. ये युवा अब पुरानी राजनीति की भावनात्मक अपील पर नहीं, बल्कि डेटा और रिजल्ट पर भरोसा करता है. सीएम नीतीश कुमार जब “20 साल पहले का बिहार” याद दिलाते हैं, तो ये युवा पूछता है “अभी क्या किया?” यही वजह है कि अब हर पार्टी को अपनी यूथ पॉलिसी साफ़ करनी पड़ रही है क्योंकि ये पीढ़ी सिर्फ सुनने नहीं, परखने वाली है.
एनडीए का कार्ड: विकास और रोजगार का वादा
नीतीश कुमार और बीजेपी गठबंधन ने युवाओं को साधने के लिए कई ऐलान किए हैं. “हर बेरोज़गार स्नातक को ₹1000 प्रति माह” जैसी योजना से लेकर 1 करोड़ नौकरियों के वादे तक, एनडीए युवाओं को राहत देने की कोशिश में है. मोदी सरकार की ‘मुद्रा योजना’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलें पहले ही कई युवाओं तक पहुंच चुकी हैं. वहीं, चिराग पासवान अपने “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” अभियान से युवा राष्ट्रवाद और प्रगति दोनों को साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ योजनाएं युवाओं की निराशा मिटा पाएंगी?
तेजस्वी यादव की चाल: रोजगार से जीतने की कोशिश
महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव इस बार एक अलग अंदाज़ में नज़र आ रहे हैं टी-शर्ट और कैज़ुअल लुक में, सीधे युवाओं की भाषा में बात करते हुए. उन्होंने वादा किया है कि हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देंगे. साथ ही हर ज़िले में मेडिकल, इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेज खोलने का ऐलान किया है. तेजस्वी का पूरा चुनाव अभियान ‘रोज़गार और पलायन रोकने’ के मुद्दे पर केंद्रित है, जो सीधे-सीधे युवाओं की नस पकड़ने की कोशिश है. लेकिन क्या वादों से भरोसा बनेगा, या फिर पिछली बार जैसे आंकड़े हवा में उड़ जाएंगे?
प्रशांत किशोर की एंट्री: बदलाव का नया सपना
चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (पीके) बिहार की सियासत को तीसरा विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी जन सुराज पार्टी युवाओं के लिए बदलाव, पारदर्शिता और रोजगार के नए सपने दिखा रही है. पीके ने कॉलेज सेशन में देरी, सिस्टम की नाकामी और पलायन जैसे मुद्दों को सीधे युवाओं से जोड़ा है. लेकिन उनके सामने चुनौती है संगठन की कमी और राजनीति का अनुभव. फिर भी, उनकी साफ़ छवि और ताज़ा सोच कई Gen-Z वोटरों को आकर्षित कर रही है.
निष्कर्ष: किसकी ‘यूथ पॉलिसी’ जीतेगी दिल?
बिहार के Gen-Z वोटर अब सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि बदलाव के वाहक हैं. वे हर नेता से एक ही सवाल पूछ रहे हैं “नौकरी कब?” इस बार चुनाव सिर्फ जाति या गठबंधन का नहीं, बल्कि भविष्य और भरोसे का चुनाव है. नीतीश का अनुभव, तेजस्वी की उम्मीदें और पीके का प्रयोग तीनों के बीच खड़ा यह युवा वर्ग तय करेगा कि बिहार आगे बढ़ेगा या फिर पुराने वादों में उलझा रहेगा.
2025 का यह चुनाव इतिहास लिखेगा क्योंकि इस बार फैसला करेगा बिहार का Gen-Z वोटर.
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