Changing Food Habits : घर के खाने से दूर होते बच्चे, बढ़ा लाइफस्टाइल डिजीज का खतरा

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Wednesday, October 29, 2025

Updated On: Wednesday, October 29, 2025

Changing Food Habits: बच्चों के जंक फूड की बढ़ती पसंद से घर का पौष्टिक खाना हो रहा है कम, जिससे मोटापा और लाइफस्टाइल डिजीज का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.

प्री-डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल या फैटी लिवर वाले बच्चों के मामले में भारत का दुनिया भर में दूसरा स्थान है. आज नौ साल की उम्र तक के बच्चे डायबिटीज की गिरफ्त में आ रहे हैं. जंक एवं प्रोसेस्ड फूड के कारण उनमें फैटी लिवर की शिकायत बढ़ गई है. लड़कियों में समय से पहले यौवन आ रहा है. थायरॉइड की समस्याएं विकसित हो रही हैं. ये सब तब है जब हमारे देश में प्राकृतिक फल, सब्जियों और अनाज की भरपूर उपलब्धता है. लेकिन बच्चों को यह सब पसंद नहीं. उनके गले के नीचे से घर का बना खाना उतर ही नहीं रहा. आखिर क्यों नहीं लुभा पा रहा बच्चों को मां के हाथ का बना भोजन?

Authored By: अंशु सिंह

Updated On: Wednesday, October 29, 2025

Changing Food Habits: ‘मम्मी, भूख लगी है, खाना दो, खाना दो. बस दो मिनट! ‘ किसी जमाने में मैगी के विज्ञापन की ये पंक्तियां बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ी हुई थीं. तब से बहुत कुछ बदल चुका है. जंक, पैकेज्ड, झटपट, फटाफट या रेडीमेड फूड बच्चों के दिलों पर राज कर रहे हैं. ये इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि घर की रसोई में बनने वाले पारंपरिक, स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजनों की सुगंध भी इस पीढ़ी को अपनी ओर खींच नहीं पा रही है. सौम्या ने बेटे हरि की पसंद का लंच तैयार किया था. लेकिन स्कूल से लौटते ही बेटे ने ऐलान कर दिया, ‘मम्मा आज लंच नहीं करूंगा. दोस्तों ने पिज्जा पार्टी दी थी. पेट भर गया है.‘ आज ये कहानी घर-घर की बन चुकी है. घर में बना भोजन बच्चों के गले के नीचे नहीं उतर रहा. फिर वह चाइनीज, कांटिनेंटल या फास्ट फूड ही क्यों न हो? भारतीय परिवारों में बनने वाले पारंपरिक भोजन का तो शायद कोई मोल ही नहीं रहा इस नई पीढ़ी के लिए. थाली में दाल-चावल देखकर भौंएं तन जाती हैं उनकी, मानो क्या न परोस दिया हो?

विज्ञापनों के प्रभाव में बदला बच्चों का खानपान

समाजशास्त्री सुरेश प्रसाद का कहना है कि विगत वर्षों में बच्चों के खानपान का कॉन्सेप्ट ही बदल गया है. अधिकांश बच्चे घर के खाने (रोटी, परांठा, सब्जी, दही, सलाद आदि) की जगह चॉकलेट, चिप्स, केक, पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर को प्राथमिकता देते हैं. जर्नल ऑफ चिल्ड्रेन एंड मीडिया में प्रकाशित एक शोध बताता है कि कैसे मल्टीनेशनल कंपनियों की मार्केटिंग रणनीति के कारण बच्चे खाने-पीने के अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं. उन्हें इससे सेहत को होने वाले नुकसान की भी परवाह नहीं होती. न्यूट्रिशनिस्ट विनीता मेवाड़ की मानें, तो घर का खाना पसंद न करने के कई कारण हो सकते हैं. अव्वल तो टीवी पर आने वाले लुभावने विज्ञापन बच्चों को आकर्षित करते हैं. वे उन पैकेज्ड फूड की मांग करने लगते हैं. न चाहते हुए अभिभावकों को डिमांड पूरी करनी पड़ती है. आहिस्ता-आहिस्ता बच्चों को उन तीखे और तेज मसाले वाले फूड की लत सी लग जाती है. घर के खाने से अरुचि होने लगती है, क्योंकि घर के खाने में हमेशा स्वाद से अधिक पौष्टिकता का ध्यान रखा जाता है.

खाने में लानी होगी विविधता

जानकारों का मानना है कि कई बार विविधता की कमी के कारण भी बच्चे बाहर के खाने की ओर आकर्षित होते हैं. मान लीजिए, किसी व्यस्क को रोजाना अगर एक ही प्रकार की रोटी-सब्जी परोसी जाए, तो क्या उसका मन नहीं उबेगा? वह खाने से आना-कानी नहीं करेगा? यही फॉर्मूला बच्चों पर लागू होता है. एक उदाहरण से समझते हैं- दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले सौरभ को अपनी दोस्त कयाना के टिफिन का खाना बहुत पसंद आता था. वह अकसर ही उसका लंच बॉक्स साफ कर देता था और अपना रोटी-जैम दूसरों को बांट देता था या वापस लौटाकर ले जाता था. इतना ही नहीं, जब कभी वह किसी साथी के जन्मदिन पार्टी में जाता, तो वहां बड़े चाव से सबका स्वाद लेता. मां मेघना परेशान और हैरान थीं कि बेटा बाहर इतने सलीके और शौक से खाता है, लेकिन अपने घर का खाना उसे पसंद ही नहीं आता. उन्होंने अपनी सहेली से सलाह ली. उसने सलाह दी कि रोजाना एक जैसा भोजन, एक जैसी चीजें खाने से उसके मन में खाने को लेकर नीरसता आ जाती है. इसके अलावा, मांओं द्वारा बच्चे को जबरदस्ती खिलाने की आदत भी उन्हें बाहरी चीजों के प्रति आकर्षित करती है. ऐसे में घर में बनने वाले पकवानों में विविधता लाई जाए, तो धीरे ही सही बच्चों की रुचि परिवर्तित हो सकती है.

पैरेंट्स को बनना होगा रोल मॉडल

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट रश्मि पांडे कहती हैं, ‘अब जिस बच्चे ने कभी सब्जी, दाल या फल का स्वाद ही नहीं चखा, वह क्या जाने या समझे पौष्टिक आहार का महत्व ? दूसरी बात, बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों को देखकर बहुत कुछ करते और सीखते हैं. जब वे देखते हैं कि पैरेंट्स नियमित तौर पर रेस्तरां में खाने जाते हैं या ऑर्डर करके घर पर खाना मंगाते हैं, तो एक समय के बाद बच्चे भी ऐसा ही दोहराने लगते हैं. ऐसे में पैरेंट्स को उनका रोल मॉडल बनना होगा. बाहर खाने में बुराई नहीं है, लेकिन उसकी आदत नहीं पड़नी चाहिए. जैसे, लाइफ कोच हर्षिता ने कुछ नियम बना रखे हैं कि हफ्ते या महीने में कितनी बार बाहर के नाश्ते व खाने का सेवन करना है. पिज्जा, बर्गर, आइसक्रीम महीने में कितनी बार खाना है.

छोटी आयु में डेवलप करनी होगी फूड हैबिट

हम सभी जानते हैं कि घर की रसोई में जिस साफ-सफाई से भोजन तैयार होता है. सब्जी या कुछ और बनाने में तेल-मसालों का जिस अनुपात में प्रयोग होता है, उतना ध्यान किसी रेस्तरां में शायद ही रखा जाता होगा. जानकारों का कहना है कि यह ध्यान अभिभावकों को रखना है कि वे अपने बच्चों को भोजन की गुणवत्ता के बारे में बताएं. उन्हें समझाएं कि क्यों जंक फूड के साथ घर में बने खाने के बीच एक संतुलन रखना होता है. तीखे, चटपटे स्वाद के अलावा उनका फ्लेवर व सुगंध बच्चों को लुभाते हैं. उनके दिमाग में ऐसे रसायनों व हॉरमोंस का रसाव होने लगता है, जो उन्हें त्वरित भरपूरता (पेट भरना), संतुष्टि के साथ खुशी का एहसास कराता है. छोटी उम्र से जंक और पैकेज्ड फूड की लत लगने से बच्चे डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, आंखों की कमजोरी, लिवर में सूजन व दिल की बीमारी की चपेट में आ जा रहे. पैरेंट्स को इस कुचक्र को समझना होगा. उन्हें बच्चों को स्वास्थ्यवर्धक एवं माइंडफुल इटिंग के साथ हाइजीनिक फूड के बारे में जागरूक करना होगा. खाने का टाइम टेबल बनाना होगा. पौष्टिक एवं संतुलित आहार, थाली (सब्जी, दाल, सलाद आदि) की अहमियत बताने एवं घर में साथ बैठकर भोजन करने से मुमकिन है कि बच्चे सजग हों और उनमें हेल्दी आदत विकसित हो सके. याद रखें कि कोई भी आदत तभी बनती है, जब किसी कार्य को बार-बार दोहराया जाए. ऐसे में समय रहते इस आदत को सुधार कर बच्चों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.

बदल सकती है आदत…

  • पैरेंट्स बच्चों को खाने के लिए जबरदस्ती न करें. भूख लगने पर ही भोजन दें. इसके लिए खाने का एक समय निर्धारित कर सकते हैं, जिससे कि हर दिन बच्चे को उसी वक्त पर भूख लगेगी.
  • बच्चों को प्लेट या थाली में खाना परोसें. उसमें अलग-अलग सब्जियों के साथ दाल व सलाद रखें. उन्हें इनके फायदे भी बताएं. रंगों से उन पर प्रभाव पड़ता है.
  • परिवार के साथ बैठकर भोजन करने से बच्चों में खाने के प्रति रुचि जागेगी.
  • रोजाना के भोजन में विविधता लाएं, क्योंकि बच्चे एक जैसा खाना खाकर बोर हो जाते हैं. उन्हें नई-नई डिशेज बनाकर खिलाएं. आजकल यूट्यूब पर बहुत सारी हेल्दी और टेस्टी रेसिपी बनाने की विधि आसानी से मिल जाती है. बच्चों को बताएं कि कैसे घर में बनने वाला पिज्जा, बर्गर, नूडल्स शुद्ध तेल व मसालों के साथ तैयार किया जाता है. इसे खाने के बाद भी उतना नुकसान नहीं होता, जितना बाहर वाले से.

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About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
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