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नवरोज़ 2025: जानिए पारसी नववर्ष का महत्व, इतिहास और परंपराएँ, इससे जुड़े तथ्य और रोचक बातें
नवरोज़ 2025: जानिए पारसी नववर्ष का महत्व, इतिहास और परंपराएँ, इससे जुड़े तथ्य और रोचक बातें
Authored By: प्रताप सिंह नेगी
Published On: Wednesday, March 19, 2025
Updated On: Wednesday, March 19, 2025
Navroz 2025: एक नए साल की नई शुरुआत! 🌿🎉 नवरोज़ फारसी (Persian) और ज़ोरास्ट्री (Zoroastrianism) धर्म के लोगों द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है. यह वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है. यह सिर्फ एक नववर्ष नहीं, बल्कि पारसी समुदाय की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और खुशहाली का उत्सव है. यह दिन नई उम्मीदों, सकारात्मक ऊर्जा और अच्छे कर्मों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है.
Authored By: प्रताप सिंह नेगी
Updated On: Wednesday, March 19, 2025
क्या आप जानते हैं कि नवरोज़ की जड़ें हजारों साल पुरानी हैं और इसका संबंध प्राचीन पर्शियन सभ्यता से जुड़ा हुआ है? आइए, इस लेख में जानें नवरोज़ 2025 का महत्व, इतिहास, परंपराएँ, इससे जुड़े रोचक तथ्य और इस पर्व को खास बनाने वाली परंपराएँ! ✨
नवरोज़ का मतलब क्या है और इसका महत्व क्या है?
नवरोज़ एक फारसी शब्द है, जिसमें “नव” का अर्थ “नया” और “रोज़” का अर्थ “दिन” होता है. यानी, नवरोज़ का मतलब “नया दिन” होता है. यह पारसी समुदाय का नववर्ष होता है, जिसे वसंत के आगमन के रूप में भी देखा जाता है.
नवरोज़ का महत्व: यह नई शुरुआत, समृद्धि और वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है. पारसी और ईरानी समुदाय इसे घर की सफाई, नए कपड़े पहनने, विशेष भोजन बनाने और धार्मिक प्रार्थनाओं के साथ मनाते हैं. भारत में खासतौर पर मुंबई और गुजरात में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसे अच्छाई और बुराई के संतुलन का प्रतीक भी माना जाता है, जो सकारात्मकता (Positivity), नई ऊर्जा और अच्छे भविष्य की उम्मीद को दर्शाता है.यह दिन पारसी कैलेंडर के नए साल की शुरुआत को दर्शाता है.

नवरोज़ का संस्कृति, परंपरा और प्रकृति से क्या संबंध है?
नवरोज़ का संस्कृति, परंपरा और प्रकृति से गहरा संबंध है. यह पारसी और फारसी संस्कृति का एक अहम् त्योहार है, जो एकता और परंपराओं को बनाए रखने का प्रतिक है. इस दिन लोग घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और खास पकवान बनाते हैं. हाफ़्त-सीन (Haft-Sin) नाम की एक परंपरा होती है, जिसमें सात चीजें सजाई जाती हैं, जो सुख-समृद्धि का प्रतीक हैं. यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन पर आता है, जब दिन और रात बराबर होते हैं, इसलिए इसे प्रकृति के नए जीवन और ऊर्जा से जोड़ा जाता है.
नवरोज़ कब और कैसे मनाया जाता है? (When and How is Navroz Celebrated?)
नवरोज़ हर साल वसंत विषुव (Spring Equinox) के दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर 20 या 21 मार्च को पड़ता है, लेकिन पारसी समुदाय इसे अपने पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार अगस्त में भी मनाता है. इस दिन लोग घर की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और हाफ़्त-सीन (Haft-Sin) नाम की परंपरा के तहत सात शुभ चीजें सजाते हैं, जो सुख-समृद्धि का प्रतीक होती हैं. परिवार और दोस्त एक-दूसरे से मिलते हैं, पारंपरिक पकवान बनाते हैं और मंदिरों में प्रार्थनाएँ करते हैं. भारत में विशेष रूप से मुंबई और गुजरात में पारसी समुदाय इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाता है.
नवरोज़ हर साल 21 मार्च को क्यों मनाया जाता है?
नवरोज़ हर साल 21 मार्च को ही इसलिए मनाया जाता है क्योंकि यह उत्तरी गोलार्ध में वसंत विषुव (spring equinox) का दिन होता है, जो वसंत ऋतु की शुरुआत और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है, और पारसी नव वर्ष का पहला दिन भी है. इस दिन को पर्सिओ द्वारा काफी पवित्र माना जाता है.
भारत में पारसी समुदाय इसे अलग-अलग तिथियों पर कैसे मनाता है? (शहंशाही और कदमी कैलेंडर के अनुसार)
भारत में पारसी समुदाय नवरोज़ को दो अलग-अलग तिथियों पर मनाता है, क्योंकि वह शहंशाही और कदमी नाम के दो पारसी कलेंडरों का पालन करते हैं. शहंशाही कैलेंडर का उपयोग करने वाले पारसी आमतौर पर अगस्त में नवरोज़ मनाते हैं, जबकि कदमी कैलेंडर को मानने वाले पारसी इसे कुछ दिन पहले ही मना लेते हैं. वहीं, ईरानी पारसी और फारसी मूल के लोग नवरोज़ को फारसी कैलेंडर के अनुसार 21 मार्च को वसंत विषुव के दिन मनाते हैं.
नवरोज़ की शुरुआत कब और कैसे हुई? (When and How Did Navroz Start?)
नवरोज़, जिस दिन फ़ारसीओ द्वारा नव वर्ष मनाया जाता है, की शुरुआत लगभग 3000 साल पहले हुई थी, जो पारसी धर्म से जुड़ी है और वसंत विषुव के साथ इसकी शुरुआत होती है, जो आमतौर पर 20 या 21 मार्च को मनाया जाता है.

नवरोज़ की परंपरा ईरान (प्राचीन पर्शिया) से कैसे जुड़ी हुई है?
नवरोज़ की परंपरा प्राचीन पर्शिया (ईरान) से जुड़ी है, जहाँ इसे हजारों साल पहले अकेमेनिड साम्राज्य (Achaemenid Empire) के समय से मनाया जाता है. यह पारसी धर्म के प्रवर्तक जरथुस्त्र की शिक्षाओं से जुड़ा है, जिसमें प्रकृति और अच्छाई का महत्व बताया गया है. प्राचीन समय में इसे राजा और जनता मिलकर मनाते थे, और यह पारसी और फारसी संस्कृति का मुख्य त्योहार बन गया. आज भी ईरान, भारत और कई अन्य देशों में इसे पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है.
भारत में पारसी समुदाय नवरोज़ कैसे मनाता है? (How Do Parsis in India Celebrate Navroz?)
नवरोज़ पारसी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो नई शुरुआत, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है. यह त्योहार पारंपरिक रीति-रिवाजों, पारिवारिक मेल-जोल और सांस्कृतिक मान्यताओं के साथ निम्न तरीकों से मनाया जाता है, जैसे:
- इस दिन पारसी समुदाय अग्नि मंदिर (Fire Temple) में प्रार्थना करता है.
- घरों को साफ-सुथरा कर सजाया जाता है और ‘रंगोली’ बनाई जाती है.
- परिवार के साथ पारंपरिक व्यंजन खाए जाते हैं, जैसे पात्रा नी मछी, धमरलो, साली बोटी, और फरसान.
- नवरोज़ टेबल (Haft-Seen) कैसे सजाई जाती है और इसमें क्या रखा जाता है?
नवरोज़ से जुड़ी पारसी परंपराएँ और मान्यताएँ क्या हैं? (What Are the Traditions and Beliefs Associated with Navroz?)
नवरोज़ से जुड़ी पारसी परंपराएँ और मान्यताएँ कुछ इस प्रकार हैं:
- Haft-Seen टेबल: जिसमें 7 चीज़ें रखी जाती हैं, जो सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक हैं.
- साबुन, शीशा, मोमबत्तियां और फूलों से घर को सजाने की परंपरा.
- इस दिन अच्छे कर्म करने और दूसरों की मदद करने का महत्व.
नवरोज़ को दुनिया के किन-किन देशों में मनाया जाता है? (Which Countries Celebrate Navroz?)
यह त्योहार सिर्फ पारसी समुदाय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान, अज़रबैजान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान और कई अन्य देशों में भी मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने इसकी सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए 2010 में इसे ‘अंतरराष्ट्रीय नवरोज़ दिवस’ घोषित किया.
पारसी नववर्ष और भारतीय नववर्ष में क्या अंतर है? (How Is Parsi New Year Different from Other Indian New Years?)
पारसी नववर्ष फारसी कैलेंडर पर आधारित होता है, जबकि भारतीय नववर्ष अलग-अलग तिथियों पर विभिन्न समुदायों और लोगों द्वारा मनाया जाता है. भारत में गुड़ी पड़वा, उगादि, बैसाखी जैसे नए साल अलग-अलग संस्कृतियों के अनुसार अलग- अलग दिन मनाए जाते हैं, जबकि नवरोज़ “पारसी नववर्ष” नवरोज़ मुख्य रूप से पारसी समुदाय का त्योहार है.

नवरोज़ पर कौन-कौन से पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं? (What Are the Traditional Dishes Made on Navroz?)
नवरोज़ पर निम्न प्रकार के पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं, जैसे:
- पात्रा नी मछी (Patra Ni Machhi) – केले के पत्ते में मसालेदार मछली.
- धान दार (Dhan Dal) – चावल और अरहर दाल की स्पेशल डिश.
- साली बोटी (Sali Boti) – मसालेदार मटन करी.
- रवो (Ravo) – मीठा पकवान, जिसे सूजी और दूध से बनाया जाता है.
- फालूदा और पारसी चाय भी इस दिन विशेष रूप से पी जाती है.

पारसी समुदाय के प्रसिद्ध व्यक्ति कौन-कौन हैं? (Who Are Some Famous Personalities from the Parsi Community?)
पारसी समुदाय भारत में एक छोटा लेकिन प्रभावशाली समुदाय है, जिसने विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. व्यापार, उद्योग, कला, विज्ञान, राजनीति और खेल जगत में कई पारसी व्यक्तियों ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से पहचान बनाई है. इन्होंने न केवल भारत के विकास में अहम भूमिका निभाई, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी छाप छोड़ी है. आइए जानते हैं पारसी समुदाय के कुछ प्रसिद्ध व्यक्तियों के बारे में.
क्रम | नाम | क्षेत्र | उपलब्धि / पहचान |
---|---|---|---|
1. | जे.आर.डी. टाटा | उद्योग और विमानन | भारत में विमानन उद्योग के जनक, टाटा एयरलाइंस (अब एयर इंडिया) के संस्थापक |
2. | रतन टाटा | उद्योग और व्यापार | टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष, परोपकारी कार्यों के लिए प्रसिद्ध |
3. | फिरोज़ गांधी | राजनीति और पत्रकारिता | इंदिरा गांधी के पति, अनुभवी राजनेता, लोकसभा सांसद |
4. | ज़ुबिन मेहता | संगीत और कला | प्रसिद्ध ऑर्केस्ट्रा कंडक्टर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित |
5. | होमी भाभा | विज्ञान और अनुसंधान | भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के संस्थापक |
6. | परवीन बाबी | फिल्म और मनोरंजन | प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री, अपने समय की सबसे चर्चित कलाकारों में से एक |
नवरोज़ का असली संदेश क्या है? (What is the Real Message of Navroz?)
नवरोज़ सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि नई शुरुआत, शांति और समृद्धि का प्रतीक है. यह हमें पुरानी नकारात्मकताओं को पीछे छोड़कर जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मक शक्ति के साथ आगे बढ़ने की सीख देता है. नवरोज़ के मूल संदेशो में प्रकृति के सम्मान, आपसी प्रेम, सद्भाव और खुशहाली का महत्व शामिल है, जिससे समाज में एकता और सौहार्द बना रहता है, जैसे:
- यह त्योहार नई शुरुआत, शांति, सौहार्द और समृद्धि का प्रतीक है.
- पारसी समुदाय की संस्कृति और योगदान को याद करने का दिन.
- सकारात्मकता, प्रेम और भाईचारे को अपनाने की प्रेरणा देता है.
