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धार्मिक – आध्यात्मिक माहौल पर इमरजेंसी का प्रभाव
धार्मिक – आध्यात्मिक माहौल पर इमरजेंसी का प्रभाव
Authored By: स्मिता
Published On: Tuesday, June 24, 2025
Last Updated On: Tuesday, June 24, 2025
25 जून को 1975 की इमरजेंसी (Emergency) के 50 साल हो रहे हैं... इस संदर्भ में उस समय के धार्मिक -आध्यात्मिक माहौल पर प्रभाव.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Tuesday, June 24, 2025
भारत में 21 महीने (जून 1975-मार्च 1977) तक एमरजेंसी यानी आपातकाल की अवधि थी. 25 जून 2025 को आपातकाल के 50 साल हो रहे हैं. आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (कांग्रेस पार्टी) के आदेश पर पूरे देश में आपातकालीन शक्तियां लागू की गई थीं. देश के ज्यादातर क्षेत्रों पर एमरजेंसी का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था. जाहिर है, उस समय के धार्मिक -आध्यात्मिक माहौल पर भी इसका प्रभाव पड़ा.
धार्मिक प्रवचन और सक्रियता को किया प्रभावित
भारत में 1975 की एमरजेंसी का धर्म पर जटिल और अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ा था. सरकार ने सीधे तौर पर धार्मिक संस्थाओं या धार्मिक रीति-रिवाजों को तो निशाना नहीं बनाया, लेकिन मौलिक अधिकारों के निलंबन, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है, ने धार्मिक प्रवचन और सक्रियता को अवश्य प्रभावित कर दिया. कुछ धार्मिक समूहों, जैसे कि कुछ ईसाई संगठनों ने शुरू में आपातकाल का समर्थन किया, जबकि अन्य ने सिद्धांत रूप से इसका विरोध किया.
आध्यात्मिक नेताओं को दी गई कैद
भारत में 1975 के आपातकाल का आध्यात्मिक गुरुओं और उनकी गतिविधियों पर मिला-जुला असर पड़ा। जहां कुछ आध्यात्मिक नेताओं को जेल में डाल दिया गया या उन पर प्रतिबंध लगा दिए गए, वहीं अन्य ने इस स्थिति से निपटने के अपने तरीके खोज लिए.
आरएसएस नेता हुए गिरफ्तार
उस समय आरएसएस एक प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी संगठन था. सामाजिक और सांप्रदायिक वैमनस्यता फैलाने का आरोप लगाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं को आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसके कई नेताओं और सदस्यों को आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) जैसे कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया.
अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का उदय
आपातकाल के दौरान भारत के भीतर हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के दमन ने प्रवासी नेटवर्क पर अधिक ध्यान केंद्रित किया. इन विदेशी शाखाओं ने आपातकाल के खिलाफ समर्थन जुटाने, सूचना प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जमात-ए-इस्लामी पर प्रभाव
आरएसएस की तरह जमात-ए-इस्लामी एक मुस्लिम संगठन है, इसे भी आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित कर दिया गया था. इसके नेताओं को जेल में डाल दिया गया था.
सिख धर्म पर प्रभाव
30 जून 1975 को शिरोमणि अकाली दल (अकाली) ने श्री हरिमंदिर साहिब और अकाल तख्त साहिब (स्वर्ण मंदिर परिसर) में एक विशेष बैठक आयोजित की. इस कार्यकारी बैठक में ‘कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति’ का विरोध करने का संकल्प लिया गया. 7 जुलाई 1975 को अकालियों ने अकाल तख्त साहिब से ‘लोकतंत्र बचाओ मोर्चा’ शुरू किया और प्रतिदिन स्वैच्छिक गिरफ्तारियां दीं. इस दौरान इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने पुरुष नसबंदी के लिए एक व्यापक अभियान चलाया. इसका भी धार्मिक संस्थाओं ने विरोध किया था.
श्री श्री रविशंकर पर प्रभाव
श्री श्री रविशंकर का जन्म 1956 में हुआ था. आपातकाल के दौरान वे एक युवा व्यक्ति थे. आपातकाल के दौरान सार्वजनिक व्यक्ति न होते हुए भी उस दौरान जीने के अनुभव ने संभवतः उनकी शिक्षाओं में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक सद्भाव और अहिंसा के महत्व पर बाद में जोर दिया. उनके संगठन, आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन ने सक्रिय रूप से शांति, संघर्ष समाधान और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा दिया है, जिसे आपातकाल के दौर के राजनीतिक और सामाजिक माहौल की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है.