बयानवीरों के बयान से किन्हें होगा चुनावी लाभ

बयानवीरों के बयान से किन्हें होगा चुनावी लाभ

Authored By: रमेश यादव

Published On: Saturday, May 11, 2024

Updated On: Sunday, May 12, 2024

bayanveero ke bayan se kinhe hoga chunavi labh
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"जिभिया ऐसी बावरी, बोलत नहीं संभार। आप बोल भीतर गई जूता खात कपार।" रहीम का यह दोहा इस बात को रेखांकित करने के लिए काफी है कि चुनावों में बदजुबानी का खामियाज अधिकांशतः स्वयं ही भुगतना पड़ता है।

Authored By: रमेश यादव

Updated On: Sunday, May 12, 2024

नेताओं की अमर्यादित टिप्पणियां अक्सर उनकी जीत की संभावनाओं को पलीता लगा देते हैं। फिर भी आदत से लाचार नेताओं के बिगड़े बोल सुनने को मिलते रहते हैं। जाहिर सी बात है कि बने बनाये खेल को बिगाड़ने में उनके बिगड़े बोल का भी बहुत बड़ा योगदान होता है। यह कई बार सिद्ध हो चुका है। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को चायवाला बोलना उनकी पूरी पार्टी के लिए भारी पड़ा था। इसी तरह राहुल गांधी का चौकीदार चोर है का नारा भी कांग्रेस के किसी काम नहीं आया। उल्टे उन्हें कोर्ट में इसके लिए माफी मांगनी पड़ी थी।

इस चुनाव में एक बार फिर मणिशंकर अय्यर ने अपने बयान से सियासी भूचाल ला दिया है। अय्यर ने इस बार कहा कि भारत को पाकिस्तान का सम्मान करना चाहिए क्योंकि उसके पास एटम बम है। अय्यर के इस बयान से विवाद छिड़ गया है। बहरहाल, सत्ता के लिए लालायित नेताओं का एकमात्र लक्ष्य किसी भी तरह से चुनाव जीतना है। इसके लिए उन्हें गाली गलौज से भी परहेज नहीं है। अब तो ये मर्यादा की सीमाओं का अतिक्रमण कर रही है।

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अभी इसी 31 मार्च को हरियाणा के कैथल में आयोजित एक जनसभा में कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि एमपी-एएमएलए क्यों बनाते हैं, ताकि वो हमारी आवाज उठा सकें। कोई हेमा मालिनी तो है नहीं, जो चाटने के लिए बनाते हैं। जाहिर है यह अश्लील बयान न केवल अक्षम्य है बल्कि नारी अस्मिता के खिलाफ है। इससे पहले सुरजेवाला भाजपा को वोट देने वाली जनता को राक्षसी प्रवृत्ति का बता चुके हैं।

supriya shrinet

सुरजेवाला से पहले 25 मार्च को उन्हीं की पार्टी की सोशल मीडिया हेड और प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने हिमाचल के मंडी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी और फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के खिलाफ टिप्पणी करते हुए उन्हें बाजारू बताया। उन्होंने कंगना रनौत की एक भद्दी तस्वीर के साथ इंस्टाग्राम अकांउट पर लिखा कि मंडी में इन दिनों क्या भाव चल रहा है, कोई बताएगा मुझे। विवाद बढ़ने पर उन्होंने यह कहते हुए इससे पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि पोस्ट उन्होंने नहीं, बल्कि उनके अकाउंट का एक्सेस रखने वाले किसी और शख्स ने की थी। वैसे बिगड़े बोल सिर्फ कांग्रेस नेताओं के ही नहीं हैं। भाजपा नेता भी बहुत पीछे नहीं हैं।

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पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के फैमिली बैकग्राउंड पर भाजपा सांसद दिलीप घोष की टिप्पणी विवादों में है। ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने सांसद के खिलाफ इलेक्शन कमीशन में शिकायत की। यहां तक कि घोष को उनकी अपनी ही पार्टी ने उनकी टिप्पणी को अशोभनीय और असंसदीय बताते हुए कारण बताओ नोटिस दे दिया।

महिला नेताओं के शरीर और चरित्र को लेकर की जाने वाली विवादित टिप्पणियों का सिलसिला काफी पुराना है। शिवसेना (उद्धव गुट) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी को भी पिछले साल ऐसे एक बयान का सामना करना पड़ा था। तब उन्होंने कहा था कि पुरुष प्रधान देश में जब महिलाएं बाधाओं को तोड़ती हैं, तो उन पर लांछन लगाना सबसे आसान होता है। मार्च की शुरुआत में अमेठी से सांसद व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर “पति चोर” कहकर ट्रोल किया गया था। 2020 में सोनिया गांधी के जन्मदिन पर “बार डांसर डे” ट्रेंड कर रहा था। वहीं, 2016 में उत्तर प्रदेश के मौजूदा परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने मायावती की तुलना “वेश्या” से की थी।

वैसे इस तरह के अशोभनीय व आधी आबादी को अपमानित करने वाले बयान पर संतुलित जवाब देने का एक सशक्त उदाहरण इतिहास में मौजूद है। 1962 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर सीट से जनसंघ के उम्मीदवार थे। कांग्रेस ने उनके खिलाफ स्वतंत्रता सेनानी सुभद्रा जोशी को उतारा था। प्रचार अभियान के दौरान वाजपेयी ने कह दिया था कि सुभद्रा जी कहती हैं कि वह महीने के तीसों दिन मतदाताओं की सेवा करेंगी। मैं पूछता हूं, कैसे करेंगी? महीने में कुछ दिन तो महिलाएं सेवा करने लायक रहती ही नहीं हैं। इसके जवाब में जोशी ने कहा था कि इस अपमान का बदला वह नहीं, बल्कि उनके मतदाता लेंगे। परिणाम आने पर उनकी बात सही साबित हुई और वाजपेयी चुनाव हार गए।

वैसे नेताओं की बदजुबानी के अनेक मामले हैं। चुनाव हो या न हो हर दिन संविधान रूपी द्रौपदी का चीरहरण होता है। दिवंगत मुलायम सिंह यादव ने एक रैली में कहा था, ‘बलात्कार के लिए फांसी की सजा अनुचित है। लड़कों से गलती हो जाती है।’ वहीं कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। एक पार्टी कार्यक्रम में वे जयंती नटराजन को ‘टंच माल’ बता चुके हैं। कितने नेताओं की बात की जाए। विवादित, अशोभनीय व अश्लील टिप्पणियों के हमाम में सभी नंगे हैं। कैलाश विजयवर्गीय से लेकर श्रीप्रकाश जायसवाल तक और नवजोत सिंह सिद्धू से शरद यादव तक लंबी श्रृंखला है।

अपनी बयानबाजी का रायता फैलाकर कांग्रेस को संकट में डालने वाले सैम पित्रोदा भी पीछे नहीं हैं। इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हाल में ही इस्तीफा दिए, पित्रोदा राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु हैं। भाजपा उनको राहुल गांधी का अंकल कहकर तंज कसती है। अभी उनके दो बयानों ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया। लेकिन ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। पित्रोदा ने जून 2023 में यह कहकर राजनीतिक भूचाल ला दिया था कि मंदिरों से देश की बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी दिक्कतों का समाधान नहीं होगा। इसी तरह साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सिख दंगों पर उन्होंने कहा था कि 1984 में हुआ तो हुआ। हालांकि, बाद में उन्होंने इस पर सफाई दी। इस तरह के कई विवादित बयान कांग्रेस को ही चुनावी नुकसान पहुंचा चुका है।

About the Author: रमेश यादव
रमेश यादव ने राष्ट्रीय और राजनीतिक समाचारों के क्षेत्र में व्यापक लेखन और विश्लेषण किया है। उनके लेख राजनीति के जटिल पहलुओं को सरलता और गहराई से समझाते हैं, जो पाठकों को वर्तमान राजनीतिक घटनाओं और नीतियों की बेहतर समझ प्रदान करते हैं। उनकी विशेषज्ञता सिर्फ सूचनाओं तक सीमित नहीं है; वे अपने अनुभव के आधार पर मार्गदर्शन और प्रासंगिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हैं। रमेश यादव की लेखनी तथ्यों पर आधारित और निष्पक्ष होती है, जिससे उन्होंने पत्रकारिता और विश्लेषण के क्षेत्र में अपनी एक मजबूत पहचान बनाई है।

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