Mirza Ghalib Shayari in Hindi: मिर्ज़ा ग़ालिब की 30+ शायरी, अल्फ़ाज़ों में बसी ज़िंदगी
Authored By: Nishant Singh
Published On: Friday, July 25, 2025
Updated On: Friday, July 25, 2025
मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू शायरी के वो चमकते सितारे हैं, जिनकी रचनाएं आज भी हर दिल की आवाज़ हैं. उनकी शायरी में मोहब्बत का जादू, दर्द की सच्चाई और जीवन की गहराई मिलती है. इस लेख में ग़ालिब के जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें, उनकी मशहूर ग़ज़लें और (Top Shayari of Mirza Ghalib in Hindi) शेर शामिल हैं, जो हर पाठक को सोचने पर मजबूर कर देते हैं.
Authored By: Nishant Singh
Updated On: Friday, July 25, 2025
जब भी शायरी की बात होती है, मिर्ज़ा ग़ालिब का नाम खुद-ब-खुद जुबां पर आ जाता है. उनकी शायरी सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नहीं, एहसासों का समंदर है, जिसमें दर्द, मोहब्बत, तन्हाई और जिंदगी के गहरे रंग घुले हुए हैं. ग़ालिब ने उर्दू शायरी को एक नई पहचान दी और अपने अनोखे अंदाज़ से हर दिल को छू लिया. उनकी शायरी में जो गहराई है, वह आज भी हर उम्र और दौर के लोगों को अपनी ओर खींचती है. ग़ालिब की शायरी न सिर्फ़ पढ़ी जाती है, बल्कि महसूस की जाती है. इस लेख में हम उनके कुछ मशहूर अशआर और उनके पीछे छिपे भावों की बात करेंगे — जो ग़ालिब को अमर बना देते हैं.
मिर्ज़ा ग़ालिब : जीवन परिचय
मिर्ज़ा असद उल्लाह ख़ां ‘ग़ालिब’ का जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था. वे एक शायर, चिंतक और दार्शनिक थे, जिन्होंने उर्दू और फ़ारसी शायरी में क्रांति ला दी. बहुत कम उम्र में उन्होंने शायरी लिखनी शुरू कर दी थी. शादी के बाद वे दिल्ली आ गए, जहां उनका ज़्यादातर जीवन बीता. ग़ालिब की शायरी में जो गहराई, ताजगी और सोच का विस्तार है, वह उन्हें औरों से अलग करता है. उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा—आर्थिक तंगी, बच्चों की मौत और सामाजिक अस्थिरता के बावजूद उन्होंने शायरी को कभी नहीं छोड़ा. उनकी रचनाएं आज भी हर दिल को छू लेती हैं. उन्होंने मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र के दरबार में शाही शायर का दर्जा पाया था. ग़ालिब का मानना था कि “हर शेर में एक ज़िंदगी बसती है” — और उनकी शायरी इसका प्रमाण है.
मिर्ज़ा ग़ालिब की टॉप 20 शायरी (Top 20 Shayari of Mirza Ghalib in Hindi)

“वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं,
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं.हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.इश्क़ पर जोर नहीं, है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने.हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है.हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता.उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा ,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं .यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो.ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होतामोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.तुम न आए तो क्या सहर न हुई,
हां मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा नाला सुना ज़माने ने,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई.आईना देख अपना सा मुंह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था.पूछते हैं वो कि ‘ग़ालिब’ कौन है,
कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या.जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है.रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’,
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था.कहूं किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता.हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूं न ग़र्क़-ए-दरिया,
न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता.मौत का एक दिन मुअय्यन है,
नींद क्यूं रात भर नहीं आती.कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहां से होती जो जिगर के पार होता.न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता.बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ‘ग़ालिब’,
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं.”
मिर्ज़ा ग़ालिब की दर्द भरी शायरी (Sad Shayari of Mirza Ghalib in Hindi)

“ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है,
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है.हम वहां हैं जहां से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती.दिल को चाहिये कि फिर से उड़ने की तैयारी कर ले,
अभी तो सफर का पहला पड़ाव है.आईना क्यूं न दूं कि तमाशा कहें जिसे,
ऐसा कहां से लाऊं कि तुझ-सा कहें जिसे.मोहब्बत में नहीं फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले.”
जिंदगी पर मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी (Mirza Ghalib’s Shayari on Life in Hindi)

“जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में.हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ,
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा.ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर.खैरात में मिली ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवावो की तरह.ज़िन्दगी अपनी जब शक़ल से गुज़री ग़ालिब,
हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थे.”
इश्क़ पर मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी (Mirza Ghalib’s Shayari on Love in Hindi)

“इश्क़ ने पकड़ा न था ‘ग़ालिब’ अभी वहशत का रंग,
रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए…आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’,
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद…इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही,
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही…इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया…मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले…”