देश के अन्नदाता को प्रणाम : भारत को फिर बनाएंगे कृषि प्रधान देश

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Monday, September 9, 2024

india agricultural country
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भारत की पहचान एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है। धीरे-धीरे स्थिति बदली और व्यवसाय के रूप में कृषि हाशिए पर चली गई। पंजाब-हरियाणा आदि राज्यों को छोड़ दें तो हर जगह किसानी प्राथमिकता में नहीं रह गई। नतीजा, इससे किसानों का जुड़ाव कम होने लगा। पर अब फिर स्थिति बदलती दिख रही है। हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में कृषि के विकास के लिए करीब 14,000 करोड़ रुपये की योजनाओं को स्वीकृति दी है। बीते दस साल बेहतरीन रहे हैं और कहा जा सकता है कि आगे भी राह सुगम होगी...

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Last Updated On: Monday, September 9, 2024

Highlights:

  • 14,000 करोड़ रुपये की योजनाओं को स्वीकृति दी है हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में कृषि के विकास के लिए।
  • इसमें बेहद अहम योजना है करीब 2,800 करोड़ रुपये की डिजिटल कृषि मिशन।
  • केंद्रीय कैबिनेट ने 1,700 करोड़ रुपये से अधिक पशुधन के स्थायी स्वास्थ्य के लिए रखे हैं।
  • बागवानी योजना के लिए केंद्र सरकार ने 860 करोड़ रुपये तय किए हैं।

आजादी मिलने के बाद 1950-51 में देश की जीडीपी (GDP) में कृषि का योगदान आधे से अधिक था, करीब 51 प्रतिशत यानी देश की अर्थव्यवस्था (Economy) को खेती-किसानी ने अपने कंधे पर उठा रखा था। धीर-धीरे समय बदला। औद्योगिकीकरण हुआ। नए उद्योग-व्यापार आए और कृषि में लोगों की रुचि कम होने लगी। शहर की ओर कामकाज की तलाश में पलायन हुआ। गांवों में बुजुर्ग ही अधिक रह गए और कृषि कुछ घाटे का सौदा होने लगी। परिवार के लिए अनाज की व्यवस्था और उससे जो बचे, वह बेचकर कुछ धन जुटाना है किसानों के लिए एक रास्ता सा बन गया। इसी बीत साठ के दशक में हरित क्रांति हुई। हम अन्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने। लगा कि कृषि को नया जीवन मिलेगा। कुछ हद तक मिला भी, लेकिन समस्याएं कायम रहीं। अन्न अब बाहर से नहीं मंगाना पड़ता था, देश का पेट भर रहा था। प्रचुर उत्पादन हो रहा था, लेकिन किसानों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही थी। अन्नदाता कम हों तो चिंता लाजिमी है। आंकड़ों से कृषि में घटती रुचि और इसके आर्थिक पहलू तो समझें तो 2017-18 का आंकड़ा देखना होगा। 1950-51 में जीडीपी में योगदान का जो आंकड़ा 51 प्रतिशत था, वह 2017-18 में महज 16 फीसद रह गया। देश में कृषि की बदहाल तस्वीर को यह आंकड़ा बखूबी बयान करता है।

अब जरा आज की तस्वीर देखिए। अनगिनत कहानियां मिल जाती हैं जहां कारपोरेट की लाखों की नौकरी छोड़कर युवा सब्जियां उगा रहे हैं, बेच रहे हैं। फल उगा रहे हैं, अनाज उगा रहे हैं। बाजार को समेटकर खेतों तक ले आए हैं। कृषि (Agriculture) एक व्यवसाय के रूप में तेजी से अपनी जगह फिर से मजबूत कर रही है। गांव आबाद होने लगे हैं। इन निजी प्रयासों को केंद्र सरकार से पूरा सहयोग भी मिल रहा है। इस कड़ी में सबसे ताजा घटनाक्रम है केंद्रीय कैबिनेट के फैसले। सात योजनाओं पर सरकार 14,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी। इसमें बेहद अहम योजना है करीब 2,800 करोड़ रुपये की डिजिटल कृषि मिशन (Digital Agriculture Mission)। तकनीक का उपयोग कृषि को हमेशा ही उन्नत करता है और अब तो डिजिटल तकनीक का जमाना है सो किसानों की मदद के लिए इसका उपयोग निश्चित ही बेहद कारगर साबित होगा। बीते कुछ बरसों में जिस तेजी से कृषि में एप आदि का उपयोग बढ़ा है और हिंदी भाषा में भी एप उपलब्ध हुए हैं, उससे किसानों को फायदा ही हुआ है। अब इसे और गति मिलेगी।

खेती के साथ पशुपालन एक अहम उपक्रम है। यदि एकीकृत खेती के प्रारूप का पालन किया जाए तब तो यह और भी अधिक अहम हो जाता है। केंद्रीय कैबिनेट ने 1,700 करोड़ रुपये से अधिक पशुधन के स्थायी स्वास्थ्य के लिए रखे हैं। जैविक कृषि और प्राकृतिक कृषि पर बहुत जोर है और दोनों में ही पशुपालन बहुत अभिन्न अंग है। नई योजना पशुओं के स्वास्थ्य के लिए बेहतर साबित हो सकती है और यह किसानों के लिए बड़ी बात होगी। एक और योजना का यहां उल्लेख जरूरी है-बागवानी योजना जिसके लिए केंद्र ने 860 करोड़ रुपये तय किए हैं। बागवानी कैश क्राप की संस्कृति को बल देती है। इसे संबल मिलेगा तो जाहिर है कि कृषि-बागवानी क्षेत्र में आय भी बेहतर होगी। इसके अलावा कृषि विज्ञान केंद्र भी मजबूत होंगे और प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रबंधन सुनिश्चित होगा। इन दोनों पर क्रमशः 1,200 और 1,100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होंगे।

अब जरा बीते एक दशक में कृषि को मिले प्रोत्साहन और संबल को देख लीजिए। ड्रोन दीदी योजना तेजी पकड़ रही है, बीते दिनों ही 109 फसलों की नई किस्में देश को समर्पित की गई हैं। ये जलवायु परिवर्तन को देखते हुए तैयार की गई हैं यानी बदलती मौसमी परिस्थितियों में भी कारगर होंगी और अधिक उत्पादन करेंगी। पीएम किसान सम्मान निधि हर चौथे महीने 2,000 रुपये की किस्त साल में तीन बार मिलती है। पीएम फसल बीमा योजना, पीएम कृषि सिंचाई योजना और परंपरागत कृषि विकास योजनाओं ने बीते एक दशक में देश में कृषि को नया रूप-स्वरूप प्रदान किया है।
कृषि के लिए सरकार ने खजाने का मुंह भी खोला है। वर्ष 2013-14 में कृषि को बजट में 27,663 करोड़ रुपये आवंटित होते थे। इस वर्ष के बजट में यह राशि बढ़कर 1.32 लाख करोड़ रुपये हो चुका है। खाद के लिए मिलने वाली सब्सिडी अलग से है। अन्य कई रियायतें भी उपलब्ध हैं यानी कृषि अब कुलांचे भरने को तैयार है।



अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।


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