Dev Uthani Ekadashi 2025: चातुर्मास के अंत का प्रतीक है देवउत्थान एकादशी

Authored By: स्मिता

Published On: Sunday, September 14, 2025

Last Updated On: Sunday, September 14, 2025

Dev Uthani Ekadashi 2025: चातुर्मास का अंत और भगवान विष्णु का जागरण.
Dev Uthani Ekadashi 2025: चातुर्मास का अंत और भगवान विष्णु का जागरण.

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउत्थान एकादशी या देव उठनी एकादशी शनिवार, 1 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी. यह महत्वपूर्ण त्योहार चातुर्मास की चार महीने की अवधि के अंत का प्रतीक है. इस अवधि के बाद भगवान विष्णु दिव्य निद्रा से जाग जाते हैं.

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Dev Uthani Ekadashi 2025: माह में दो एकादशी पड़ती है. सभी एकादशी की अपनी महत्ता है, लेकिन देवउत्थान एकादशी को विशेष माना जाता है. इसे प्रबोधिनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु की चार महीने की निद्रा के अंत का यह प्रतीक है. इसका महत्व भगवान विष्णु के जागरण और समारोहों के लिए अशुभ माने जाने वाले समय चातुर्मास के अंत का प्रतीक है. यह दिन विवाह और अन्य शुभ कार्यों की शुरुआत का भी प्रतीक है. इसमें तुलसी विवाह का महत्वपूर्ण अनुष्ठान शामिल है. भक्तजन समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक विकास के लिए उपवास रखते हैं और श्रीविष्णु की विशेष पूजा और अनुष्ठान करते हैं.

क्या है तिथि और मुहूर्त (Dev Uthani Ekadashi 2025 Date & Time)

ज्योतिषाचार्य पंडित अनिल शास्त्री के अनुसार,

नाम विवरण
देवउत्थान एकादशी शनिवार, 1 नवम्बर 2025
पारण (व्रत तोड़ने का) समय 2 नवम्बर 2025
एकादशी तिथि प्रारम्भ नवम्बर 01, 2025 को 09:11 बजे सुबह
एकादशी तिथि समाप्त नवम्बर 02, 2025 को 07:31 बजे सुबह

क्या है आध्यात्मिक महत्व

एकादशी पर श्रीविष्णु पूजा से कई तरह के लाभ मिलते हैं. इनमें आंतरिक शांति, नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा और बाधाओं पर विजय शामिल है. माना जाता है कि इससे स्वास्थ्य, धन और समृद्धि के साथ-साथ आध्यात्मिक जुड़ाव की भावना और जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का साहस भी मिलता है. यह अनुष्ठान मोक्ष प्राप्ति, पिछले जन्मों के पापों का निवारण और व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने में भी मदद करता है.

पूजा विधि और अनुष्ठान (Dev Uthani Ekadashi Vrat Puja & Rituals)

1. व्रत संकल्प: भक्ति और पवित्रता के साथ एकादशी व्रत करने का संकल्प लेकर शुरुआत करें.
2. पवित्र स्नान और शुद्धि: सूर्योदय से पहले उठें. पवित्र स्नान करें और फिर अपने घर को गंगाजल से शुद्ध करें.
3. भगवान विष्णु का आह्वान करें: भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को एक छोटी चौकी पर स्थापित करें. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप कर उनका आह्वान करें.
4. प्रसाद:
•मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और चीनी का मिश्रण) से स्नान करायें.
• तुलसी के पत्ते चढ़ायें, जो विष्णु को विशेष रूप से प्रिय हैं.
• चंदन का लेप, चावल, फूल, धूप और दीप अर्पित करें.
5. उपवास: एकादशी व्रत रखें. अनाज, चावल और दालों से परहेज करें. फल, दूध या पानी भी लिया जा सकता है.
6. जागरण करें: माना जाता है कि रात में सोना नहीं चाहिए. इसके बजाय भगवान विष्णु का जागरण उत्सव मनाने के लिए भजनों का पाठ करना चाहिए.
7. तुलसी विवाह: इस दिन तुलसी के पौधे का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) से कराने के लिए यह एक बहुत महत्वपूर्ण अनुष्ठान है.
8. आरती और प्रसाद: आरती करें, कपूर जलायें और परिवार व अन्य लोगों को प्रसाद बांटें.

व्रत का पारण (Dev Uthani Ekadashi Vrat Paran)

  • द्वादशी (एकादशी के अगले दिन) को भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद व्रत तोड़ा जाता है.
  • व्रत तोड़ने से पहले ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है.

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स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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