Krishna Janmashtami 2025: इस साल कृष्ण जन्माष्टमी कब है? जानें सही डेट, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

Authored By: स्मिता

Published On: Saturday, July 19, 2025

Last Updated On: Saturday, August 16, 2025

Krishna Janmashtami 2025 की सही तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त जानें, इस पोस्ट में जानिए कब मनाई जाएगी जन्माष्टमी और कैसे करें भगवान श्रीकृष्ण की आराधना.
Krishna Janmashtami 2025 की सही तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त जानें, इस पोस्ट में जानिए कब मनाई जाएगी जन्माष्टमी और कैसे करें भगवान श्रीकृष्ण की आराधना.

Janmashtami 2025 Kab Hai : भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इस साल शुक्रवार, 15 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला यह उत्सव अगले दिन दही हांडी (Dahi Handi 2025) उत्सव मनाने के साथ समाप्त होता है. इस साल दही हांडी उत्सव शनिवार, 16 अगस्त को मनाया जाएगा.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Saturday, August 16, 2025

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) को गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. यह उत्तर भारत और महाराष्ट्र में विशेष रूप से मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, यह त्योहार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. तमिलनाडु में इस त्योहार को श्रीकृष्ण जयंती के रूप में जाना जाता है.

जन्माष्टमी 2025 कब है? (Janmashtami 2025 Date)

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त को रात 11 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी और 16 अगस्त को रात 09 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में जन्‍माष्‍टमी तिथि 2 दिन पड़ने से लोग असमंजस में हैं कि जन्‍माष्‍टमी कब मनाना उचित होगा, तो इसका जवाब है कि गृहस्थों को जन्माष्टमी 15 अगस्त और वैष्णवों को 16 अगस्त को मनाना चाहिए. 

जन्माष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्त

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल की पूजा आधी रात को करने का विधान है. जो लोग 15 अगस्‍त को जन्‍माष्‍टमी मना रहे हैं, वे पूजा 15 और 16 अगस्‍त की मध्‍यरात्रि 12 बजकर 04 मिनट से देर रात 12 बजकर 47 मिनट तक करें. वहीं 16 अगस्‍त को जन्‍माष्‍टमी मना रहे साधक 16 और 17 अगस्त की रात को 12 बजकर 04 मिनट से देर रात 12 बजकर 47 मिनट तक पूजा करें.

जन्माष्टमी पूजा विधि

जन्माष्टमी की पूजा विधि भक्ति और श्रद्धा से भरी होती है. सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें. दिनभर फलाहार (फल, दूध, पानी) ग्रहण करें और सात्विक रहें. रात में पूजा की तैयारी करें. सबसे पहले एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर लड्डू गोपाल (श्रीकृष्ण की बाल मूर्ति) को स्थापित करें. मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर) से स्नान कराएं, फिर गंगाजल से स्नान कराकर साफ कपड़े से पोंछें. इसके बाद लड्डू गोपाल को नए वस्त्र, मुकुट, मोरपंख और बांसुरी से सजाएं.

क्या है श्रीकृष्ण के जन्म की कथा (Janmashtami Katha)

मान्यता है कि श्रीकृष्ण सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग के 28वें वर्ष में आज से 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुआ था.श्रीकृष्ण के जन्म से पहले यह आकाशवाणी हुई थी कि कंस की बहन देवकी का आठवां पुत्र उसे मार डालेगा. अपनी जान बचाने के लिए कंस देवकी और वसुदेव को कारागार के सभी पुत्रों को मारता चला गया.

माना जाता है कि श्रीकृष्ण अपने विष्णु रूप की तरह चार भुजाओं के साथ पैदा हुए थे. उनके प्रत्येक हाथ में शंख, गदा, कमल और चक्र जैसे अस्त्र थे इसलिए जब भगवान कृष्ण ने विष्णु अवतार में जन्म लिया, तो देवकी और उनके पति ने भगवान कृष्ण से उन्हें एक साधारण शिशु में बदलने की विनती की. सर्वशक्तिमान श्रीहरि की कृपा पाकर वसुदेव यमुना पारकर गोकुल गए. अपने पुत्र को नंद और यशोदा के घर में जन्मी पुत्री से बदल लिया. वे उसी कारागार में लौट आए जहां कंस ने उन्हें और देवकी को कैद कर रखा था. उसी दिन से जन्माष्टमी या कृष्ण जयंती बड़े हर्ष और प्रेम के साथ मनाई जाने लगी.

दो दिन मनाई जाती है जन्माष्टमी (Janmashtami 2025)

जन्माष्टमी हर जगह लगातार दो दिन मनाई जाती है. पहले दिन भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और मध्यरात्रि से शुरू होने वाले उत्सव की तैयारी करते हैं, जब भगवान कृष्ण का जन्म माना जाता है. लोग बाल गोपाल को पालने में रखते हैं और उसे झुलाते हैं. बाल गोपाल यानी शिशु कृष्ण को उनका पसंदीदा मक्खन और दूध से बनी मिठाइयां भी चढ़ाई जाती हैं. भक्त पूरी रात जागकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं और भगवान की स्तुति में भक्ति गीत गाते हैं.

अगले दिन लोग कृष्ण मंदिरों में जाकर प्रार्थना करते हैं और उनका आशीर्वाद लेने के लिए शीश झुकाते हैं. कृष्ण मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है. भगवान कृष्ण को उनके सभी श्रृंगार से सुसज्जित किया जाता है. मंदिर उस दिन आने वाले भक्तों के लिए स्वादिष्ट भोग यानी भगवान को अर्पित किया जाने वाला भोजन भी चढ़ाते हैं.

जन्माष्टमी व्रत प्रार्थना और उत्सव

भारत के विभिन्न राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़, उत्तराखंड, दिल्ली, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मिजोरम, मध्य प्रदेश, नागालैंड, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम और तमिलनाडु में कृष्ण जन्माष्टमी की छुट्टी मनाई जाती है. जन्माष्टमी व्रत प्रार्थना और उत्सवों के साथ मनाई जाती है. जन्माष्टमी के दूसरे दिन “दही हांडी” परंपरा भी मनाई जाती है. यह श्रीकृष्ण के चंचल स्वभाव और मक्खन के प्रति प्रेम का प्रतीक है.

दही-हांडी उत्सव (Dahi Handi Utsav 2025)

भारत के कई हिस्सों में लोग दही-हांडी उत्सव मनाकर श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं. श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में मक्खन खाने और चुराने की कई कहानियों का वर्णन मिलता है. इसलिए दही-हांडी उत्सव मनाया जाता है. मिट्टी का एक घड़ा (हांडी) ऊंचा बांधा जाता है. लड़कों का एक समूह मानव पिरामिड बनाकर सबसे ऊपर पहुंचकर मिट्टी के घड़े को तोड़ता है. दही-हांडी प्रतियोगिता हर जगह खासकर मुंबई में आयोजित की जाती है. जो समूह सबसे अच्छा और सबसे तेज़ मानव पिरामिड बनाकर मिट्टी का घड़ा तोड़ता है, वह प्रतियोगिता जीत जाता है.

वृंदावन और मथुरा (Vrindavan & Mathura Janmashtami Mahotsav 2025)

दुनिया भर में कृष्ण जन्मोत्सव बड़े ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन मथुरा-वृंदावन में यह उत्सव और भी भव्य होता है. दुनिया भर से भक्त वृंदावन और भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण स्थानों पर आते हैं. इस दिन मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर जाया जा सकता है. माना जाता है कि मंदिर का गर्भगृह वह कारागार है, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. मथुरा से लगभग 15 किलोमीटर दूर वृंदावन में भगवान कृष्ण को समर्पित अनेक मंदिरों में से एक बांके बिहारी मंदिर सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय है. यहां भी इस दिन जाया जा सकता है. गुजरात का द्वारकाधीश मंदिर, उडुपी का श्री कृष्ण मठ, नाथद्वारा का श्रीनाथजी मंदिर और जयपुर का गोविंद देव जी मंदिर भी जन्माष्टमी उत्सव के लिए प्रसिद्ध है.

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स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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