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शिवजी के गले में लिपटे हुए सर्प के क्या हैं विशेष अर्थ?
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, July 28, 2025
Last Updated On: Monday, July 28, 2025
शिवजी के गले में सर्प लिपटे हुए रहते हैं. सावन के महीने में शिवजी के साथ-साथ उनका भी जलाभिषेक किया जाता है. मान्यता है कि इसके माध्यम से शिवजी के गले में अटके विष के दाह को कम किया जाता है. जानते हैं शिवजी के गले में लिपटे सर्प के विशेष अर्थ.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Monday, July 28, 2025
सावन के महीने में शिवजी का जलाभिषेक किया जाता है. शिवजी के साथ-साथ उनके गले में लिपटे सर्प को भी जल अर्पित किया जाता है (Shiva Snake Symbolism), जो समुद्र मंथन से निकले विष और उसका पान करने वाले शिवजी का प्रतीक है. पुराणों में भी भगवान शिव के गले में लिपटे हुए सर्प को दर्शाया जाता है. क्या इसके कुछ विशेष अर्थ हैं.
शिवजी के गले में कौन सर्प रहते हैं लिपटे?
भगवान शिव के गले में लिपटे हुए सर्प का चित्रण प्रतीकात्मक माना जाता है. शिव पुराण के अनुसार, शिव के दिव्य स्वरूप और उनकी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है यह सर्प. भगवान शिव जिस सर्प को अपने गले में धारण करते हैं, उसका नाम वासुकी है. पौराणिक कथा में वासुकी नाग देवता के राजा हैं.
क्यों वासुकी को तीन बार शिवजी के गले में लिपटा हुआ दिखाया जाता है?
भगवान शिव के गले में लिपटे हुए सर्प की पहचान नागों के राजा वासुकी के रूप में की जाती है. उन्हें शिव के गले में तीन बार लिपटे हुए नाग के रूप में दर्शाया जाता है. शिव पुराण के अनुसार, यह समय के तीन पहलुओं: भूत, वर्तमान और भविष्य का प्रतीक होता है. वासुकी धारण करने वाले शिव समय, मृत्यु और भय पर विजय हासिल करने के प्रतीकस्वरुप हैं.
क्या वासुकी विष्णु जी के सर्प से अलग हैंय़
श्रीहरि विष्णु जिस सर्प की शय्या पर लेटे हुए दर्शाए जाते हैं, वे शेषनाग हैं. शेषनाग और वासुकी एक समान नहीं हैं. पुराणों के अनुसार दोनों शक्तिशाली नाग हैं, लेकिन वे अलग-अलग भूमिका और संघों वाले अलग-अलग प्राणी हैं. शेषनाग को सभी नागों का राजा माना जाता है. ये वह शय्या हैं, जिन पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं, जबकि वासुकी नागों के राजा हैं जिन्हें शिवजी के गले में लिपटे हुए दर्शाया जाता है.
शिवजी के गले में लिपटे हुए सर्प का क्या है अर्थ?
यह प्रतीक है, जो अपने-आप में कई अर्थ समेटे हुए है.
- भय और मृत्यु पर प्रभुत्व: सांपों को अक्सर भय और मृत्यु से जोड़ा जाता है. शिव द्वारा इन्हें गले में धारण करना इन शक्तियों पर उनके नियंत्रण का प्रतीक है.
- अहंकार पर विजय: सांप अहंकार का भी प्रतीक है. शिव इसे धारण करते हैं, अर्थात वे अहंकार और उसके प्रलोभन पर भी प्रभुत्व रखते हैं.
- कुंडलिनी ऊर्जा: कुछ धर्मग्रंथ सांप को कुंडलिनी ऊर्जा से भी जोड़ते हैं. यह भीतर की एक आध्यात्मिक शक्ति है. शिवजी इस कुंडलिनी ऊर्जा का उपयोग आध्यात्मिक विकास के लिए करते हैं. उन्होंने इस ऊर्जा पर विजय पाई है.
- नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा: कुछ कथाओं में कहा गया है कि सांप नकारात्मक शक्तियों और आत्माओं से शिव के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है.
- समय का प्रतीक: सांप की तीन कुंडलियों को भूत, वर्तमान और भविष्य का प्रतीक माना जाता है. यह शिव की समय के नियंत्रक के रूप में भूमिका को उजागर करती है. नागों के राजा वासुकी शिव के प्रति अपनी भक्ति और समुद्र मंथन में अपनी उपयोगिता को दर्शाते हैं. समुद्र मंथन में वासुकी को मथानी की रस्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया था.
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