बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर (पीके) का सियासी दांव

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Saturday, October 5, 2024

Last Updated On: Saturday, October 5, 2024

nitish kumar tejashwi yadav and prashant kishore
nitish kumar tejashwi yadav and prashant kishore

लंबे समय तक राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में सफल पारी खेलने वाले प्रशांत किशोर यानी पीके अब बिहार में अपनी जन सुराज पार्टी की विधिवत स्थापना करके चुनावी मैदान में स्वयं उतरने को तैयार हैं। अब देखना होगा कि भाजपा, कांग्रेस, जेडीयू सहित तमाम दलों को अपनी रणनीति से जीत की राह पर बढ़ाने में योगदान करने वाले पीके की अपनी राजनीतिक पारी कैसे आगे बढ़ती है...

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Last Updated On: Saturday, October 5, 2024

हाइलाइट्स

  • दो साल तक बिहार के गांव गांव घूमने के बाद गत दो अक्टूबर को गांधी-लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर बना ली जन सुराज पार्टी
  • जातीय समीकरणों वाले बिहार में कितने सफल होंगे राजनीति के ‘सफल रणनीतिकार’
  • भाजपा (BJP) की बी टीम के आरोपों में कितना है दम
  • पढ़े लिखों की पार्टी के साथ दलित समुदाय तक पहुंचने की भी है कोशिश
  • पार्टी का दावा ह्यूमन फर्स्ट सोच का है यानी मानव और मानवता ही जन सुराज के लिए सब कुछ है।
  • पीके ने राइट टू रिकाल और जनता द्वार विधायक चुने जाने का नया दांव भी खेल दिया है।

पालिटिकल स्ट्रेटेजिस्ट प्रशांत किशोर (Political Strategist Prashant Kishore) यानी पीके बिहार की राजनीति में नई परिभाषाएं लिखने चले हैं। भाजपा से लेकर कांग्रेस के साथ तक वह काम कर चुके हैं। दलों की राजनीतिक इमेज चमकाने का काम। दलों को मिली सफलता के बाद वह पूरे देश में सबसे बड़े पालिटिकल स्ट्रेटेजिस्ट के रूप में मशहूर हो गए थे। उनके पास आफर्स की बहार आ गई थी। कभी इस बड़े नेता के साथ तो कभी उस बड़ी पालिटिकल पार्टी के साथ। इसी बीच में उन्हें कांग्रेस की छवि चमकाने का भी मौका मिला था और जब यह लग रहा था कि लगभग वह कांग्रेस (Congress) को चमकाने के लिए तैयार हैं, अचानक उनका इस ग्रैंड ओल्ड पार्टी से अलगाव हो गया। वह ममता (Mamata) से भी जुड़े बताए गए और बिहार के सीएम नीतीश (CM Nitish) से भी। नीतीश से तो उनकी खूब बनी, इतनी बनी कि उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तक बना दिया गया। पीके वहां से अधूरे सपने लेकर ही निकले। अब तक पीके को लग चुका था कि किसी के साथ रहकर राजनीति में आगे बढ़ पाना शायद मुमकिन नहीं होगा सो उन्होंने एकला चलो रे का सिद्धांत अपना लिया। नाम दिया-जन सुराज। दो साल तक बिहार के गांव-गांव घूमे, लोगों से मिले, बिहार को जानने-समझने की कोशिश की और फिर दो अक्टूबर को इसी नाम से पार्टी लांच कर दी। मौका भी अहम चुना-महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री की जयंती का। पार्टी लांच हो गई, पूरे देश के अखबारों, टीवी चैनल में खबरें भी चल गईं, कई जगह तो पीके के इंटरव्यू भी चले यानी पीआर के लिहाज से पार्टी की लांच का इवेंट सक्सेसफुल रहा, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या बिहार की जातीय समीकरणों वाली राजनीति में पीके की बिछाई बिसात सफल होगी?

जातीय समीकरणों के बीच कैसे बनाएंगे जगह

इस सवाल के जवाब में तमाम कयास सामने आ रहे हैं। कहीं पीके को भाजपा (BJP) की बी टीम बताया जा रहा है तो कहीं कहा जा रहा है कि वह दूसरे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejariwal) हैं। जनता से जनता के मुद्दों की बात कर राजनीति को नया रूप देने की कोशिश कर रहे हैं। अब देखना यह है कि जनता इस पुराने हो चुके नए को कितना नया मानती है। इसी में पीके की सफलता भी छिपी होगी और असफलता भी। बिहार की राजनीति साधना बहुत कठिन है। जातिवाद में रची-पगी राजनीति में वहां पहले से ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद सरीखे धुरंधर हैं। किसी की दलित और पिछड़ों में अच्छी पैठ है तो कोई मुस्लिम व यादवों से गहरे से जुड़ा है। वोट पड़ते समय भी यह दिखता है। बिहार के कोर वोट बैंक पार्टियों के प्रति इतने समर्पित हैं कि आंकड़े बताते हैं कि जब लालू के साथ मिलकर नीतीश चुनाव लड़ते हैं तो जेडीयू को मुस्लिम-यादव वोट भी अधिक मिलता है। जब भाजपा के साथ आते हैं तो यह वोट छिटक जाता है। यह बिहार की जातीय समीकरणों पर आधारित सियासत का रंगरूप है। पीके इसे बदलने की बात तो कह रहे हैं लेकिन दलित और मुस्लिम समीकरण भी साध रहे हैं। ब्राह्मणों को भी साधने की कोशिश दिख जा रही है।

जन सुराज का पहला कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती को बनाकर पढ़ी-लिखी पार्टी और पढ़े-लिखों की पार्टी का एक अक्स बनाने के साथ दलित समुदाय तक पहुंचने की कोशिश भी है। कार्यकारी अध्यक्ष को केवल एक साल का कार्यकाल देकर केजरीवाल की तरह ईमानदार दिखने की कोशिश भी है। बिहार की बदहाली की बात कर गांवों तक पहुंच बनाने की कोशिश है। कह रहे हैं कि न दक्षिणपंथी हैं न वाम विचारधारा के। न समाजवादी हैं तो हैं क्या…कहते हैं कि हम ह्यूमन फर्स्ट सोच वाले हैं। मानव और मानवता ही जनसुराज के लिए सब कुछ है। सुनने में तो यह सब वाकई अच्छा लगता है लेकिन वोट देने वाली जनता के मन में कितनी जगह बनाता है, यह तय होना अभी बाकी है।

ये भी पढ़े: तेजस्वी का तेज और पीके का दांव

कैसे रहे पिछले प्रयोग

बिहार में 2020 में विधानसभा चुनाव के दौरान एक पार्टी प्रकट हुई थी-प्लूरल्स पार्टी। बिहार में एमएलसी रहे बिनोद कुमार चौधरी की बेटी पुष्पम प्रिया ने यह पार्टी बनाकर सीधे सीएम पद की दावेदारी ठोंकी थी। लंदन स्कूल आफ इकोनोमिक्स से सीधे बिहार की राजनीति की यात्रा की थी। नतीजा रहा-सिफर। 243 सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने का दावा था, 50 पर भी प्रत्याशी नहीं खड़े कर सकीं, एक भी सीट नहीं जीत सकीं। अब चार साल बाद फिर सक्रिय होने की कोशिश करती दिख रही हैं। हालांकि पुष्पम से पीके की तुलना ठीक नहीं क्योंकि पीके दो साल तक जनसुराज के लिए एक माहौल और नींव बनाकर आए दिखते हैं लेकिन इतना तो तय है कि बीते 34 साल से बिहार ने किसी नए दल को बहुत एक्सेप्ट नहीं किया है।

बिहार के राजनीतिक खिलाड़ी और पीके का दांव

देखा जाए तो पिछले करीब साढ़े तीन दशकों से लालू (Lalu) और नीतीश (Nitish) के बीच ही बिहार की राजनीति घूमती रही है। छोटी-छोटी पाकेट में रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) और अब चिराग पासवान पकड़ बना सके हैं किंतु प्रदेश के स्तर पर तो दो ही खिलाड़ी हैं। भाजपा ने बीते कुछ साल में पहचान और पकड़ बनाई है लेकिन अभी बिग ब्रदर बनने वाली स्थिति में नहीं पहुंची है। जाहिर है कि इस सियासी बैकग्राउंड में पीके के लिए सफलता की स्क्रिप्ट लिख पाना आसान तो नहीं ही होगा। जो भी अगले साल (2025 में) चुनाव है। पीके ने राइट टू रिकाल और जनता द्वार विधायक चुने जाने का नया दांव खेला है। अभी तक कोई पार्टी राइट टू रिकाल जनता तक पहुंचा नहीं सकी है। रेवड़ियों की राजनीति जरूर देश में बीते तीन-चार साल से लोकप्रिय हो रही है। अब बिहार की जनता राइट टू रिकाल से कितना जुड़ती है, यह देखना दिलचस्प भी होगा और अहम भी।



अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।


Leave A Comment

अन्य राज्य खबरें