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दिल्ली की हवा सुधारने के लिए चीन ने दिए सुझाव, बताए प्रदूषण घटाने के 6 बड़े फॉर्मूले
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Wednesday, December 17, 2025
Last Updated On: Wednesday, December 17, 2025
दिल्ली-NCR में AQI खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है. ऐसे में चीन ने बीजिंग के अनुभव के आधार पर हवा सुधारने के 6 बड़े फॉर्मूले सुझाए हैं. कभी ‘एयरपोकैलिप्स’ झेल चुका बीजिंग आज बेहतर हवा की मिसाल बन रहा है क्या दिल्ली भी वही राह अपना सकती है?
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Wednesday, December 17, 2025
Delhi Air Pollution: दिल्ली की हवा फिर दमघोंटू हो चुकी है. AQI 400 के पार, जहरीला स्मॉग और सांस लेने में दिक्कत, यह तस्वीर नई नहीं है. लेकिन दुनिया के एक बड़े शहर ने कभी इससे भी बदतर हालात देखे थे और अब वह उदाहरण बन चुका है. चीन की राजधानी बीजिंग, जिसे एक दशक पहले ‘Airpocalypse’ कहा गया, आज सख्त नीतियों और लगातार प्रयासों से बेहतर हवा की ओर बढ़ चुका है. इसी अनुभव के आधार पर दिल्ली स्थित चीनी दूतावास की प्रवक्ता हू जिंग ने दिल्ली-NCR में प्रदूषण घटाने के लिए 6 ठोस मॉडल अपनाने की सलाह दी है.
दिल्ली-NCR में हालात कितने खराब हैं?
दिल्ली-NCR की हवा एक बार फिर सांस लेना मुश्किल बना रही है. वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है. एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI कई जगह 400 से 500 के बीच दर्ज किया गया. मंगलवार सुबह करीब 8 बजे दिल्ली का औसत AQI 378 रहा. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने इसे ‘बहुत खराब’ कैटेगरी में रखा. एक दिन पहले यानी सोमवार शाम करीब 4 बजे हालात और बिगड़ गए थे. उस वक्त AQI 427 तक पहुंच गया था. इसका मतलब था कि हवा ‘गंभीर’ स्तर पर चली गई है. मंगलवार को AQI में हल्की गिरावट जरूर दिखी, लेकिन राहत जैसी कोई स्थिति नहीं बनी. शहर के कई इलाकों में अब भी जहरीला स्मॉग छाया रहा. इंडिया गेट पर AQI करीब 380 दर्ज किया गया. सराय काले खां में यह आंकड़ा लगभग 359 रहा. कुल मिलाकर तस्वीर साफ है. दिल्ली की हवा अभी भी लोगों की सेहत के लिए बड़ा खतरा बनी हुई है.
बीजिंग ने क्या-क्या किया? जानिए 6 बड़े कदम
बीजिंग ने सबसे पहले गाड़ियों से निकलने वाले धुएं पर सख्त नियंत्रण किया. इसके लिए चीन ने 6NI जैसे कड़े नियम लागू किए. ये नियम यूरोप के यूरो-6 मानकों के बराबर माने जाते हैं. पुराने और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को सड़कों से हटाया गया. शहर में गाड़ियों की संख्या को सीमित करने के लिए कई नियम बनाए गए. लाइसेंस प्लेट लॉटरी लागू की गई. ऑड-ईवन सिस्टम अपनाया गया. वीकडे ड्राइविंग जैसे नियम भी लागू हुए. मकसद साफ था, निजी गाड़ियों पर निर्भरता कम करना.
लोगों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट की तरफ मोड़ने के लिए बीजिंग ने बड़े स्तर पर निवेश किया. यहां दुनिया के सबसे बड़े मेट्रो और बस नेटवर्क में से एक तैयार किया गया. इसके साथ ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों को तेजी से बढ़ावा दिया गया. बीजिंग ने आसपास के इलाकों के साथ मिलकर भी काम किया. बीजिंग-तियानजिन-हेबेई क्षेत्र को एक साथ जोड़कर प्रदूषण घटाने की योजना बनाई गई. चीन का साफ कहना है कि साफ हवा एक दिन में नहीं मिलती. लेकिन लगातार और सख्त कोशिश से यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है.
बीजिंग की स्थिति कितनी गंभीर थी?
करीब एक दशक पहले तक बीजिंग दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल था. सर्दियों के मौसम में पूरा शहर घने स्मॉग से ढक जाता था. कई बार हालात इतने खराब हो जाते थे कि स्कूल बंद करने पड़ते थे. फ्लाइट्स रद्द करनी पड़ती थीं. मास्क पहनना आम बात हो गई थी. घरों और दफ्तरों में एयर प्यूरीफायर जरूरी हो चुके थे. साल 2013 के आसपास चीन ने आधिकारिक तौर पर माना कि बीजिंग और उसके आसपास का इलाका पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी जैसी स्थिति में है.
यह सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं रह गया था. स्मॉग एक आर्थिक और राजनीतिक चुनौती बन चुका था. इसके बाद चीन ने कोई एक फैसला नहीं लिया. उसने कई स्तरों पर एक साथ काम करने की रणनीति अपनाई. 2013 में अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने बीजिंग की हालत को “Airpocalypse” नाम दिया था. बच्चों, बुज़ुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए अलग से हेल्थ एडवाइजरी जारी होती थी. यह समस्या कुछ महीनों की नहीं थी. यह कई साल तक बनी रही. यानी यह मौसमी नहीं, बल्कि एक स्ट्रक्चरल समस्या थी. WHO और चीनी पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्टों के मुताबिक, उस समय बीजिंग में PM2.5 का स्तर सुरक्षित सीमा से कई गुना ज्यादा था. हालात वाकई डराने वाले थे.
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