आखिर ट्रंप के कार्यकाल में क्यों दूर हो रहे हैं पश्चिमी देश, अमेरिका पर क्या होगा इसका असर

Authored By: सतीश झा

Published On: Tuesday, September 23, 2025

Last Updated On: Tuesday, September 23, 2025

Donald Trump के कार्यकाल में पश्चिमी देशों के अमेरिका से दूर होने के कारण और इसके वैश्विक राजनीति व अमेरिका की स्थिति पर असर की विस्तृत जानकारी.
Donald Trump के कार्यकाल में पश्चिमी देशों के अमेरिका से दूर होने के कारण और इसके वैश्विक राजनीति व अमेरिका की स्थिति पर असर की विस्तृत जानकारी.

डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trupm) का कार्यकाल शुरू से ही विवादों और टकराव की राजनीति से भरा रहा है. उन्होंने पश्चिमी सहयोगियों के साथ रिश्तों को मजबूती देने के बजाय अक्सर दबाव की रणनीति अपनाई. नाटो (NATO) फंडिंग को लेकर बार-बार टकराव, यूरोप पर व्यापार युद्ध का दबाव और चीन-भारत जैसे देशों के खिलाफ यूरोप से कड़े कदम उठवाने की कोशिश ने स्थिति और बिगाड़ दी.

Authored By: सतीश झा

Last Updated On: Tuesday, September 23, 2025

यूरोपीय देश, जो लंबे समय से अमेरिका के साथ एकजुट होकर वैश्विक मामलों में भूमिका निभाते रहे हैं, अब ट्रंप (Donald Trump)की नीतियों से असहज हो उठे हैं. नतीजतन, अमेरिका (USA) और उसके परंपरागत पश्चिमी सहयोगियों के बीच दूरी साफ दिखने लगी है. यह दरार न केवल कूटनीतिक संबंधों को कमजोर कर रही है, बल्कि सामरिक मोर्चे पर भी असर डाल रही है.

अमेरिकी राजनीति में यह भी माना जाता है कि ज्यूइश लॉबी का बड़ा प्रभाव रहता है. ट्रंप ने कई बार इस लॉबी को साधने के लिए नीतिगत फैसले लिए, जिससे पश्चिमी देशों में और नाराजगी पनपी. सवाल यह है कि अगर यही रुख जारी रहा तो अमेरिका की वैश्विक साख और उसकी नेतृत्व क्षमता कमजोर हो सकती है.

ट्रंप के कार्यकाल में पश्चिमी देशों ने दी फिलिस्तीन को मान्यता

अमेरिकी इतिहास के मौजूदा दौर को आने वाले समय में याद तो रखा जाएगा, लेकिन बेहद शर्मनाक तरीके से. वजह यह है कि डोनाल्ड ट्रंप अब उस राष्ट्रपति के तौर पर दर्ज होंगे जिनके कार्यकाल में अमेरिका के परंपरागत सहयोगी देश उससे अलग राह पर चलते दिखे. ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने एक संयुक्त घोषणा पत्र जारी करते हुए फिलिस्तीन को आधिकारिक मान्यता दे दी है.

इन देशों ने साफ कहा कि वे 1967 की सीमाओं के आधार पर फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं. यह वही फिलिस्तीन है जिसकी आधी से ज्यादा जमीन पर इज़रायल ने कब्जा कर रखा है. तीनों देशों ने स्पष्ट कर दिया है कि इज़रायल का यह कब्जा अवैध है और वास्तविक फिलिस्तीन वही है जिसका नक्शा 1967 में था.

अमेरिका और इज़रायल दोनों के लिए बड़ा झटका

यह कदम अमेरिका और इज़रायल दोनों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि जिस फिलिस्तीन की कल्पना को वॉशिंगटन और तेल अवीव कभी स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए, आज वही नक्शा ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे अमेरिका के करीबी सहयोगियों ने दुनिया के सामने मान्य कर लिया है. ट्रंप की नीतियां न सिर्फ अमेरिका को कूटनीतिक तौर पर कमजोर कर रही हैं, बल्कि उसके दशकों पुराने मित्र देशों को भी उससे दूर कर रही हैं. यह विकासक्रम इस बात का संकेत है कि वैश्विक मंच पर अब अमेरिका की पकड़ ढीली पड़ रही है और पश्चिमी दुनिया उसकी राह से अलग होती जा रही है.

पश्चिमी देशों ने दिया बड़ा झटका, फिलिस्तीन पर बदले हालात

डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल लगातार विवादों से घिरा रहा है. पिछले कुछ वक्त से उन्होंने पश्चिमी देशों को बार-बार परेशान किया—नाटो फंडिंग को लेकर टकराव, ट्रेड वॉर में दबाव वाली रणनीति और यूरोप से चीन-भारत के खिलाफ कार्रवाई करवाने की कोशिश ने रिश्तों में खटास भर दी. नतीजा यह हुआ कि अब पश्चिमी देशों ने ट्रंप को करारा झटका दे दिया है.

अमेरिकी राजनीति में लंबे समय से ज्यूइश लॉबी का गहरा दबदबा रहा है. हर राजनेता जानता है कि चुनाव फंडिंग और पॉलिटिकल फंडिंग में इस लॉबी की बड़ी भूमिका होती है. यही वजह रही कि कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति खुलकर इज़रायल के खिलाफ नहीं जाता. लेकिन अब हालात पलट गए हैं.

ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर फिलिस्तीन को मान्यता देने का ऐतिहासिक कदम उठाया है. इस फैसले ने न केवल अमेरिका को अलग-थलग कर दिया, बल्कि ट्रंप की छवि को पश्चिमी दुनिया में खलनायक जैसा बना दिया है. इस कदम से यह साफ हो गया है कि अमेरिका की पारंपरिक पकड़ ढीली पड़ रही है और उसके सबसे करीबी सहयोगी भी अब उसकी नीतियों से दूरी बनाने लगे हैं. वैश्विक राजनीति में यह बदलाव अमेरिका के लिए गहरी कूटनीतिक हार साबित हो सकता है.

टू-नेशन सॉल्यूशन को जिंदा रखने की कोशिश

ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने फिलिस्तीन को आधिकारिक तौर पर देश की मान्यता दे दी है. इस कदम को टू-नेशन सॉल्यूशन को जिंदा रखने की दिशा में एक अहम प्रयास माना जा रहा है. हालांकि, इस फैसले से अमेरिका और इज़रायल के साथ पश्चिमी देशों के रिश्तों में खिंचाव आ सकता है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से कुछ दिन पहले ही यह ऐलान किया गया, जिसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींच लिया है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने घोषणा करते हुए कहा कि यह फैसला फिलिस्तीन और इज़रायल दोनों के लोगों के लिए शांति की उम्मीद जगाने वाला है और टू-स्टेट सॉल्यूशन को जिंदा रखने का प्रयास है.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न केवल मध्य पूर्व की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि पश्चिमी देशों की विदेश नीति में भी नया अध्याय खोलेगा. फिलिस्तीन को मान्यता देने का मतलब है कि अब पश्चिमी जगत के भीतर भी इज़रायल की नीतियों को लेकर मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं.

आज की दुनिया बहुध्रुवीय होती जा रही है. ऐसे में अगर अमेरिका अपने सहयोगियों से ही भरोसा खो देगा तो चीन और रूस जैसे देश इस स्थिति का फायदा उठाने में देर नहीं करेंगे. ट्रंप की दबाववादी नीतियां अल्पकालिक राजनीतिक लाभ तो दे सकती हैं, लेकिन दीर्घकाल में यह अमेरिका को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने का खतरा भी बढ़ाती हैं.

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About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है
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