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Yemen Controversy: यमन को लेकर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में क्यों बढ़ा तनाव
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Published On: Friday, December 12, 2025
Last Updated On: Friday, December 12, 2025
यमन आज बहुत ही खतरनाक मुहाने पर खड़ा है. सऊदी अरब और यूएई की अलग-अलग रणनीतियहां न केवल इस देश को बांट रही हैं, बल्कि यह संघर्ष को और गहरा कर सकती हैं. जब तक ये दोनों देश एकमत नहीं होते, यमन में स्थिरता की राह बहुत कठिन हो जाएगी.
Authored By: गुंजन शांडिल्य
Last Updated On: Friday, December 12, 2025
यमन (Yemen Controversy) में पिछले कुछ दिनों से उथल-पुथल मचा हुआ है. कम-से कम हाल के दो हफ़्तों की घटनाओं ने पूरे क्षेत्र को एक बार फिर अस्थिर कर दिया है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की आपस में टकराव को बताया जा रहा है. इन दोनों देशों की नीतियां यमन की जनता को दो अलग-अलग खेमों में बांट रही है. यमन को लेकर पहले दोनों देश एक एकमत थे.
वर्ष 2015 में दोनों देश एक साथ मिलकर हूथियों के खिलाफ ऑपरेशन चला रहे थे. इसमें उन्हें सफलता भी मिली थी. लेकिन अब इनके लक्ष्य एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हो गए हैं.
दो खाड़ी देश, दो अलग राहें
बताया जा रहा है कि सऊदी अरब, यमन की एकता बनाए रखना चाहता है. रियाद का मानना है कि एक मजबूत और एकजुट यमन ही भविष्य में स्थिरता ला सकता है. इसलिए वह यमन की अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्यता प्राप्त सरकार और प्रेसिडेंशियल लीडरशिप काउंसिल का समर्थन करता है.
इसके उलट UAE दक्षिणी यमन में अलगाववादी शक्तियों, खासकर सदर्न ट्रांज़िशनल काउंसिल (STC) का समर्थन करता है. एसटीसी का उद्देश्य है कि यमन को नॉर्थ और साउथ में वापस बांट दिया जाए. साल 1990 से पहले यमन इसी तरह बंटा था. दोनों अरब देशों के बीच विवाद और तनाव का यही सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है. इसने पूरे देश की राजनीति और सुरक्षा व्यवस्था को हिला दिया है.
दक्षिणी यमन में STC का दबदबा
पिछले दिनों STC की सैन्य ताकतों ने यमन के पूर्वी इलाकों (अल-महरा और हद्रामौत) में कई महत्वपूर्ण सरकारी ठिकानों पर कब्ज़ा कर लिया. उन्होंने होमलैंड शील्ड फोर्सेज़ और यमनी सेना को वहां से निकाल दिया. सऊदी अरब ने इसे 2022 में खड़ा किया था. साथ ही एसटीसी की सेनाओं ने ओमान बॉर्डर, सैन्य शिविरों और कई सरकारी दफ्तरों पर भी नियंत्रण कर लिया.
अल-ज़ौबैदी ने क्या कहा?
एसटीसी के नेता ऐदारस अल-ज़ौबैदी ने खुले तौर पर कहा कि दक्षिण से हूथियों की सप्लाई लाइन काट दी गई है. अब हमारा अगला लक्ष्य राजधानी सना है. सना चाहे शांति से मिले या जंग से. अल-ज़ौबैदी के इस बयान का प्रसारण यूएई के न्यूज चैनल ‘स्काई न्यूज़ अरेबिया’ ने भी किया है. इससे साफ होता है कि अमीरात एसटीसी को राजनीतिक और नैरेटिव दोनों तरीकों से समर्थन दे रहा है.
सऊदी अरब की नाराज़गी
इन घटनाओं से रियाद (सऊदी अरब) चिंतित है. रियाद ने अपनी फौज की कुछ टुकड़ियों को यमन भेजी. बताया गया है कि रियाद की सेना बिना किसी संघर्ष के एसटीसी कंट्रोल वाली सीमा अल-वादिया से यमन में प्रवेश की है.
इसके साथ ही सऊदी ने मेजर जनरल मोहम्मद अल-कहतानी के नेतृत्व में एक बड़ा डेलीगेशन हद्रामौत भी भेजा है. वहां उन्होंने जनजातीय नेताओं से मुलाकात की और साफ कहा कि सऊदी का मकसद लड़ाई रोकना, शांति बनाए रखना और डी-एस्केलेशन को सफल करना है.
सऊदी ने बहुत ही स्पष्ट संदेश दिया है, ‘एसटीसी की एकतरफ़ा सैन्य कार्रवाइयां क्षेत्र को और अस्थिर कर रही हैं.
यमनी सरकार का सख्त रुख
यमनी नेतृत्व परिषद के अध्यक्ष डॉ. रशद अल-अलीमी ने एसटीसी पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि दक्षिण में एसटीसी की कार्रवाइयां, ट्रांज़िशनल समझौते का उल्लंघन है. यह सैन्य व सुरक्षा फैसलों की एकता के खिलाफ है. वैध सरकार की शक्ति को कमज़ोर करने वाली और शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने वाली हैं.’ उनका यह भी कहना है कि इससे पूरा राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ गया है.
UN की चेतावनी
यमन के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत हैंस ग्रंडबर्ग ने भी सभी पक्षों से संयम बरतने और बातचीत से समाधान खोजने की अपील की. उन्होंने रियाद में सऊदी और अमीराती राजदूतों व यमनी नेताओं से मुलाकात कर स्थिति की गंभीरता पर जोर दिया.
UAE की चुप्पी
इस पूरे मामले पर UAE ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. उनका बयान न तो समर्थन में आया है और न ही विरोध में. लेकिन वहां की मीडिया, खासकर ‘स्काई न्यूज़ अरेबिया’ लगातार एसटीसी के पक्ष में खबरें चला रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह ‘साइलेंट सपोर्ट’ है. यहां UAE बेशक खुलकर अपनी भूमिका स्वीकार नहीं कर रहा है. लेकिन जमीन स्तर पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है.
दक्षिण में अलगाववाद क्यों बढ़ा?
अदन, हद्रामौत और अल-महरा के नागरिकों में यह भावना बढ़ रही है कि दक्षिणी यमन अपने संसाधनों और रणनीतिक स्थिति के कारण स्वतंत्र होकर बेहतर स्थिति में आ सकता है. एसटीसी इसी भावना को हवा दे रहा है. वहीं सऊदी अरब इसे पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरा मानता है.
एक तरफ सऊदी अरब एकता चाहता है. दूसरी तरफ UAE दक्षिण यमन को अलग राष्ट्र बनाना चाहता है. वह इस दिशा में आगे भी बढ़ रहा है. इन दो खाड़ी देशों की आपसी टकराहट का सबसे बड़ा असर लाजमी तौर पर यमन की आम जनता को भुगतना होगा. जबकि यमन पहले ही युद्ध और गरीबी से जूझ रही है.
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