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वायु प्रदूषण के कारण भी हो रहा फेफड़ों का कैंसर
वायु प्रदूषण के कारण भी हो रहा फेफड़ों का कैंसर
Authored By: अरुण श्रीवास्तव
Published On: Saturday, November 23, 2024
Updated On: Monday, November 25, 2024
इन दिनों समूचे दिल्ली एनसीआर की हवा बुरी तरह से खराब है। एयर क्वालिटी इन्डेक्स यानी एक्यूआई 500 के आसपास है, जिससे ग्रेडेड रिस्पांस सिस्टम-4 (ग्रेप-4) लागू है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका संज्ञान लेते हुए गंभीर चिता जताई है। आइए जानते हैं हवा में घुले प्रदूषण से हमारे शरीर को किस तरह से नुकसान पहुंच सकता है...
Authored By: अरुण श्रीवास्तव
Updated On: Monday, November 25, 2024
हाइलाइट्स
- वायु प्रदूषण एक धीमा जहर है, जो न केवल हमारे पर्यावरण को बल्कि हमारे जीवन को भी प्रभावित कर रहा है।
- फेफड़ों का कैंसर, जो पहले केवल धूम्रपान करने वालों में देखा जाता था, अब प्रदूषण के कारण हर उम्र और वर्ग के लोगों में बढ़ रहा है।
वर्तमान समय में वायु प्रदूषण न केवल सांस संबंधी समस्याओं बल्कि गंभीर बीमारियों का कारण बनता जा रहा है। हाल ही में हुए अध्ययनों और डॉक्टरों के निष्कर्षों से यह स्पष्ट हो गया है कि जहरीली हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचता है और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
फेफड़ों का कैंसर: केवल धूम्रपान से नहीं, वायु प्रदूषण भी कारण
पारंपरिक तौर पर फेफड़ों के कैंसर को मुख्य रूप से धूम्रपान से जोड़ा जाता था। हालांकि, नई रिपोर्टों ने यह साबित किया है कि बिना धूम्रपान करने वाले लोग भी इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, वायु में उपस्थित पीएम 2.5 और अन्य जहरीले तत्व, जैसे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड लंबे समय तक संपर्क में रहने पर फेफड़ों के ऊतकों को स्थायी नुकसान पहुंचाते हैं।
ऑन्कोलॉजिस्ट, का कहना है, “आज हम फेफड़ों के कैंसर के मामलों में तेजी देख रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां वायु प्रदूषण का स्तर अधिक है। इसमें केवल शहरी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल हैं, जहां बायोमास जलाने से वायु गुणवत्ता खराब होती है।”
सांस संबंधी मरीजों की बढ़ती संख्या
अस्पतालों में सांस संबंधी रोगों के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों में सांस से संबंधित समस्याओं के कारण डॉक्टरों के पास आने वाले मरीजों की संख्या में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। इनमें से अधिकतर मरीजों को पुरानी रेस्पिरेटरी समस्याओं के अलावा कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझते देखा गया है।
वायु प्रदूषण के स्रोत और उनका प्रभाव
फेफड़ों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव प्रत्यक्ष और गहरा होता है। इसके मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं:
- वाहन प्रदूषण: डीजल और पेट्रोल से निकलने वाला धुआं पीएम 2.5 के स्तर को बढ़ाता है।
- बायोमास जलाना: ग्रामीण इलाकों में लकड़ी और गोबर के कंडे जलाने से निकलने वाला धुआं भी जहरीला होता है।
- उद्योगों का धुआं: फैक्ट्रियों से निकलने वाले हानिकारक तत्व हवा को जहरीला बनाते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि फेफड़ों के कैंसर के 30 प्रतिशत मामलों में वायु प्रदूषण का योगदान है।
वायु प्रदूषण के कारण होने वाले अन्य खतरे
फेफड़ों के कैंसर के अलावा वायु प्रदूषण निम्नलिखित बीमारियों का कारण बन सकता है:
- अस्थमा और ब्रोंकाइटिस
- हृदय संबंधी रोग
- डायबिटीज का बढ़ा हुआ खतरा
- गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं
- वर्तमान स्थिति और समाधान
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) अक्सर खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके समाधान के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। इसमें शामिल हैं:
- सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करना।
- बायोमास जलाने की प्रक्रिया को रोकना।
- स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना।
- पेड़ों की कटाई को रोककर पुनः वृक्षारोपण अभियान चलाना।
सरकार और समाज की भूमिका
स्वास्थ्य और पर्यावरण विशेषज्ञ इस समस्या को हल करने के लिए जनजागरूकता अभियानों की आवश्यकता पर बल देते हैं। सरकार द्वारा वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए कदम, जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, हालांकि प्रभावी हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं। जनता को भी अपने स्तर पर जिम्मेदारी उठानी होगी, जैसे कारपूलिंग और कचरे को जलाने से बचना।
निष्कर्ष
वायु प्रदूषण एक धीमा जहर है, जो न केवल हमारे पर्यावरण को बल्कि हमारे जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। फेफड़ों का कैंसर, जो पहले केवल धूम्रपान करने वालों में देखा जाता था, अब प्रदूषण के कारण हर उम्र और वर्ग के लोगों में बढ़ रहा है। यदि हमने अभी उपाय नहीं किए, तो आने वाली पीढ़ियों को इसके और भी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इसलिए, यह समय है कि हम व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर कार्य करें। स्वच्छ हवा की लड़ाई को प्राथमिकता देना न केवल हमारे स्वास्थ्य बल्कि आने वाले कल की जिम्मेदारी भी है।