महिलाओं व बच्चियों के प्रति भेदभावपूर्ण कानून एचआईवी/एड्स की रोकथाम में बाधा

महिलाओं व बच्चियों के प्रति भेदभावपूर्ण कानून एचआईवी/एड्स की रोकथाम में बाधा

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Monday, December 2, 2024

Updated On: Friday, December 6, 2024

gender discrimination hiv aids intervention
gender discrimination hiv aids intervention

एचआईवी/एड्स केवल एक चिकित्सा समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक असमानताओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन का परिणाम है। अगर महिलाओं और बच्चियों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार और कानूनों को खत्म नहीं किया गया, तो 2050 तक स्थिति और भयावह हो सकती है। इस संदर्भ में दुनिया के सभी देशों को गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय एड्स दिवस (1 दिसंबर) पर विशेष...

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Updated On: Friday, December 6, 2024

हाइलाइट्स

  • यूएनएड्स द्वारा जारी रिपोर्ट ‘टेक द राइट्स पाथ टू एंड एड्स’ में दी गई जानकारी
  • 2050 तक दुनिया में 4.6 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जीने को हो सकते हैं मजबूर।
  • वर्तमान में, दुनिया में करीब चार करोड़ लोग एड्स/एचआईवी की घातक बीमारी से संक्रमित हैं।
  • एड्स रोकथाम संबंधी प्रयासों में तेजी नहीं लाई गई, तो इससे मरने वालों की संख्या 1.77 करोड़ तक बढ़ सकती है।

2050 तक दुनिया में 4.6 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जीने को मजबूर हो सकते हैं। यह चेतावनी हाल ही में यूएनएड्स (UNAIDS) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘टेक द राइट्स पाथ टू एंड एड्स’ में दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, अगर एचआईवी/एड्स के खिलाफ किए जा रहे प्रयासों में तेजी नहीं लाई गई, तो एड्स से मरने वालों की संख्या भी 1.77 करोड़ तक बढ़ सकती है। वर्तमान में, दुनिया में करीब चार करोड़ लोग इस घातक बीमारी से संक्रमित हैं।

इस गंभीर स्थिति का एक प्रमुख कारण असमानताएं और महिलाओं व बच्चियों के प्रति भेदभावपूर्ण कानून हैं। ये कानून न केवल एचआईवी के प्रसार को रोकने में बाधा बनते हैं, बल्कि कमजोर वर्गों तक आवश्यक सेवाओं की पहुंच भी सीमित करते हैं। एचआईवी/एड्स केवल एक चिकित्सा समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक असमानताओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन का परिणाम है। अगर महिलाओं और बच्चियों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार और कानूनों को खत्म नहीं किया गया, तो 2050 तक स्थिति और भयावह हो सकती है। इस महामारी से लड़ने के लिए सभी वर्गों के अधिकारों का सम्मान और प्रभावी कदम उठाना अनिवार्य है। यह समय है कि हम लैंगिक भेदभाव और असमानताओं को जड़ से मिटाकर इस लड़ाई को निर्णायक रूप दें।

युवा महिलाओं पर बढ़ता एचआईवी का खतरा

पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका के 22 देशों में किशोर लड़कियों और युवा महिलाओं में एचआईवी संक्रमण की दर लड़कों और युवा पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक है। इसका प्रमुख कारण महिलाओं की जैविक संरचना है, जैसे अपरिपक्व गर्भाशय ग्रीवा। इसके अलावा, यौन संचारित रोगों की मौजूदगी और यौन हिंसा भी संक्रमण के खतरे को बढ़ाती है। महिलाओं में एचआईवी फैलने का सबसे बड़ा कारण असुरक्षित यौन संबंध है। पुरुषों से महिलाओं में संक्रमण आसानी से फैलता है, और कई बार साथी द्वारा हिंसा की वजह से यह खतरा और बढ़ जाता है।

लैंगिक भेदभाव और मानवाधिकारों का हनन

महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण कानून और प्रथाएं न केवल उनके स्वास्थ्य को खतरे में डालती हैं, बल्कि उनके मानवाधिकारों का भी हनन करती हैं। एचआईवी से पीड़ित महिलाओं को इलाज देने के बजाय जबरन नसबंदी कर दी जाती है। यह उनकी शारीरिक स्वायत्तता का स्पष्ट उल्लंघन है। एचआईवी से ग्रसित महिलाओं को परिवार और समाज में बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। उन्हें “अछूत” और “कलंकित” माना जाता है। ये महिलाएं न केवल मानसिक यातना झेलती हैं, बल्कि उपचार और पुनर्वास केंद्रों से भी वंचित रहती हैं।

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रिपोर्ट की मुख्य चेतावनी

यूएनएड्स की रिपोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर एचआईवी के खिलाफ प्रयास तेज नहीं हुए, तो 2030 तक एड्स रोकथाम का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। समाज में व्याप्त असमानताएं और भेदभाव इस लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं।

रिपोर्ट ने यह भी उजागर किया है कि कमजोर वर्ग, जैसे कि एलजीबीटीक्यू समुदाय, इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उनके खिलाफ सामाजिक और कानूनी भेदभाव एड्स के खिलाफ चल रहे प्रयासों को बाधित कर रहे हैं।

महिलाओं और बच्चियों के लिए समाधान की जरूरत

एचआईवी/एड्स की रोकथाम के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि महिलाओं और बच्चियों के प्रति भेदभावपूर्ण कानूनों को समाप्त किया जाए। उनके अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें समान अवसर प्रदान करना जरूरी है।

इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. कानूनी सुधार: भेदभावपूर्ण कानूनों को हटाकर महिलाओं और बच्चियों को न्याय दिलाना।
  2. सामाजिक जागरूकता: एड्स के प्रति फैली भ्रांतियों और छुआछूत को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना।
  3. मुफ्त और सुलभ उपचार: सभी संक्रमित व्यक्तियों को नि:शुल्क और सुलभ चिकित्सा सेवाएं प्रदान करना।
  4. शिक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण: महिलाओं और बच्चियों को शिक्षा और रोजगार के अवसर देकर आत्मनिर्भर बनाना।
  5. समुदाय-आधारित समाधान: स्थानीय समुदायों को शामिल करके एचआईवी/एड्स से निपटने के लिए ठोस कदम उठाना।
अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।

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