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Mahakumbh 2025: समुद्र मंथन की परंपरा संग लेकर प्रयागराज पहुंचेगी महा निर्वाणी अखाड़े की जमात
Mahakumbh 2025: समुद्र मंथन की परंपरा संग लेकर प्रयागराज पहुंचेगी महा निर्वाणी अखाड़े की जमात
Authored By: स्मिता
Published On: Friday, December 13, 2024
Updated On: Friday, December 13, 2024
आदि गुरु शंकराचार्य ने महानिर्वाणी अखाड़ा की स्थापना प्रयागराज में की थी। यह सबसे बड़े अखाड़ों में से एक है और इसका मुख्यालय प्रयागराज में है। इसे औपचारिक रूप से श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी (Mahanirvani Akhara Prayagraj) के रूप में पंजीकृत किया गया। यह नागा साधुओं और संन्यासियों का अखाड़ा है
Authored By: स्मिता
Updated On: Friday, December 13, 2024
महानिर्वाणी अखाड़ा के रमता पंचों की जमात के प्रयागराज रवाना होने से पहले जमात के श्रीमहंतों, पंचों ने मां गंगा की पूजा अर्चना की। उन्होंने प्रयागराज कुंभ मेला सकुशल संपन्न होने व देश में सुख-शांति की कामना की। यह अखाड़ा हजारों साल पुराना है। महा निर्वाणी अखाड़े की जमात समुद्र मंथन की परंपरा संग लेकर प्रयागराज पहुंचेगी। देश भर में कुल 13 अखाड़े हैं।
देश भर में 13 अखाड़े (Sadhu Akhara)
इन 13 अखाड़ों का नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा,उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है।
क्या है महानिर्वाणी अखाड़ा प्रयागराज (Mahanirvani Akhara Prayagraj)
आदि गुरु शंकराचार्य ने महानिर्वाणी अखाड़ा की स्थापना प्रयागराज में की थी। यह सबसे बड़े अखाड़ों में से एक है और इसका मुख्यालय प्रयागराज में है। इसे औपचारिक रूप से श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी (Mahanirvani Akhara Prayagraj) के रूप में पंजीकृत किया गया। यह नागा साधुओं और संन्यासियों का अखाड़ा है। कपिल मुनि महानिर्वाणी अखाड़े के संरक्षक देवता हैं। नागा संन्यासियों का इतिहास बहुत पुराना है। नागा संन्यासियों की परंपरा भी बहुत पुरानी है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में पशुपति की नग्न अवस्था में बैठी मूर्ति मिली है। वैदिक साहित्य में भी जटाधारी और शरीर पर भस्म लगाए अर्धनग्न भगवान शिव का उल्लेख मिलता है। इससे प्रागैतिहासिक काल में नागाओं की उत्पत्ति का पता चलता है। सनातन हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अखाड़ों की स्थापना की गई थी।
बलिदान देकर साधुओं ने की धर्म की रक्षा
अखाड़ों में धार्मिक शास्त्रों की शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न शस्त्रों और युद्ध कलाओं का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जब भी सनातन धर्म और हिंदू परंपराओं पर संकट आया, अखाड़ों के नागा साधुओं ने इसका डटकर मुकाबला किया। अपने तप और रणनीति से इन योद्धा साधुओं ने खुद को बलिदान देकर धार्मिक विरासत और मान्यताओं की रक्षा की। महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना 748 ई. में हुई थी। इसका मुख्यालय प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में है। इसकी मुख्य शाखाएं ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड) में कनखल, कुरुक्षेत्र (हरियाणा), नासिक (महाराष्ट्र), उदयपुर (राजस्थान), ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश), वाराणसी (उत्तर प्रदेश) आदि में हैं।
विचारों का मंथन है कुंभ (Prayagraj Kumbh 2025)
इस अवसर पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के श्रीमहंत सचिव रविंद्र पुरी महाराज ने कहा कि कुंभ का पर्व समुद्र मंथन काल से चला आ रहा है। उस काल में समुद्र मंथन से अमृत निकला था। अमृत की बूंदे जिन स्थान पर पड़ीं वहां-वहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि कुंभ पर्व पृथ्वी लोक में चार स्थानों पर और अंतरिक्ष में आठ स्थानों पर आयोजित होते हैं। प्रतिवर्ष एक कुंभ मेले का आयोजन होता है। उन्होंने कहा कि कुंभ विचारों का मंथन है। इस पर्व पर देश-दुनिया के साधु संत इकट्ठा होकर अपने विचारों के मंथन से देश और समाज हित में निर्णय लेते हैं, जो समाज, देश व पूरी दुनिया के लिए कल्याणकारी होता है।
समाज में सार्थक संदेश (Prayagraj Kumbh 2025)
अखाड़े की जमात प्रयागराज कुंभ के लिए गई हुई है। 2 जनवरी को अखाड़े की पेशवाई के साथ संत छावनी में प्रवेश करेंगे। इस दौरान संत समाज अपने ज्ञान, तप के द्वारा समाज में सार्थक संदेश देने का प्रयास करेंगे। उन्होंने सभी सनातन धर्माम्वलिम्बयों को प्रयागराज कुंभ मेला 2025 में आकर गंगा स्नान करने, संतों के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करने की अपील की।
क्या है समुद्र मंथन की परंपरा (Samudra Manthan)
समुद्र मंथन कराने के लिए पहले कारण निर्मित किया गया। कथा है कि दुर्वासा ऋषि को लगा कि देवराज इंद्र ने उनका अपमान किया है। इसलिए उन्होंने इंद्रा को श्रीलक्ष्मी यानी धन और ऐश्वर्य से हीन हो जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ समुद्र मंथन के लिए कहा। उन्होंने दैत्यों को अमृत देने का लालच दिया। इस तरह सुर और असुर ने समुद्र मंथन किया।
(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)
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