Pitrupaksha Shradh 2025: कब से शुरू हो रहा है इस साल का पितृपक्ष? जानें श्राद्ध तिथि और शुभ मुहूर्त
Authored By: स्मिता
Published On: Thursday, August 14, 2025
Last Updated On: Thursday, August 14, 2025
Pitrupaksha Shradh 2025 Date and Subh Muhurat: अपने पूर्वज की आत्मा की शांति और उनका आशीर्वाद लेने के लिए पितृ पक्ष श्राद्ध का अनुष्ठान किया जाता है. पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025, रविवार से शुरू होकर 21 सितंबर 2025, रविवार, अश्विन माह कृष्ण अमावस्या तक रहेगा.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Thursday, August 14, 2025
भाद्रपद की पूर्णिमा और अमावस्या से लेकर आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को पितृ पक्ष कहा जाता है. अपने पूर्वज या पितरों को तर्पण देने की अवधि है ‘पितृ पक्ष’. पूर्वजों के सम्मान और आदर के लिए समर्पित यह एक महत्वपूर्ण अवधि है. यह ‘अनंत चतुर्दशी’ के बाद शुरू होने वाला 15 चंद्र दिनों का काल है. यह शुभ समय गणेश चतुर्थी के बाद पहली पूर्णिमा से शुरू होता है और अमावस्या के दिन समाप्त होता है. आम भाषा में इन 15 दिनों की अवधि को ‘श्राद्ध’ और ‘महालय पक्ष’ भी कहते हैं. कुछ क्षेत्रों में इसे ‘पितृ पक्ष’, ‘पितृ पोक्खो’, ‘कनागत’, ‘अपरा पक्ष’ और ‘सोलह श्राद्ध’ (Pitrupaksha Shradh 2025) जैसे कई नामों से भी जाना जाता है.
कब से शुरू हो रहा है पितृ पक्ष Pitrupaksha Shradh 2025 Date
उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार, ‘पितृ पक्ष’ अश्विन चंद्र मास में पड़ता है. यह भाद्रपद की पूर्णिमा या पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होता है. दक्षिण भारतीय अमांत पंचांग के अनुसार, यह भाद्रपद चंद्र मास में पड़ता है, जो पूर्णिमा या पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह सितंबर और अक्टूबर के महीनों में पड़ता है.
- पितृपक्ष श्राद्ध 2025 की शुरुआत– 7 सितंबर 2025, रविवार तिथि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा
- पितृपक्ष श्राद्ध 2025 का अंत– 21 सितंबर 2025, रविवार सर्व पितृ अमावस्या, तिथि अश्विना, कृष्ण अमावस्या को समाप्त होगा.
श्राद्ध अनुष्ठान करने का सबसे अच्छा समय (Pitrupaksha Shradh Rituals)
पंडित पितृ पक्ष में अनुष्ठान करने का सबसे अच्छा समय कुतपकाल (दोपहर) और रोहिना मुहूर्त के दौरान अपराह्न काल समाप्त होने तक है. श्राद्ध के अंत में ‘तर्पण’ किया जाता है।
श्राद्ध पूजा का महत्व (Pitrupaksha Shradh Spiritual Significance)
हिंदू शास्त्रों और संस्कृति में पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रदान करना अनिवार्य माना गया है. मान्यता है कि देव पूजा से पहले व्यक्ति को अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए.
यह प्रथा पीढ़ियों के परस्पर संबंध की गहन समझ का प्रतीक है. यह स्वीकार करती है कि हमारा अस्तित्व हमारे पूर्वजों की विरासत का विस्तार है. उनका आशीर्वाद हमारे सुख और समृद्धि के लिए जरूरी है. पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करके हम जीवन की चुनौतियों से निपटने में सक्षम होते हैं. उनके निरंतर मार्गदर्शन और सहयोग की कामना करने के लिए हम श्राद्ध कर्म करते हैं.
पुरानी पीढ़ियों का आशीर्वाद (Pitrupaksha Shradh)
श्राद्ध कर्म धार्मिक अनुष्ठानों से आगे बढ़कर भारत के दैनिक जीवन में व्याप्त है. बुजुर्गों के प्रति सम्मान इस विश्वास का प्रतीक है कि पुरानी पीढ़ियों का ज्ञान और अनुभव परिवार और समग्र रूप से समाज के लिए अमूल्य संसाधन हैं. पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का दैनिक जीवन में सहज समावेश हमारे समाज में विरासत, परिवार और सांस्कृतिक मूल्यों के स्थायी महत्व का प्रमाण है.
यह भी पढ़ें :- Jitiya Vrat 2025 : बच्चे की दीर्घायु के लिए मांएं रखती हैं उपवास और नोनी साग का करती हैं पारण