राधाकृष्णन और रेड्डी में किसका पलड़ा भारी, सभी की जुबान पर यही सवाल
Authored By: सतीश झा
Published On: Tuesday, August 19, 2025
Updated On: Tuesday, August 19, 2025
आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव (Vice President of India Election 2025) में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय दो दिग्गज नेताओं के बीच की टक्कर बन गया है. एक ओर हैं एनडीए (NDA) के उम्मीदवार महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन (CP Radhakrishanan), जिनकी साफ-सुथरी छवि और जमीनी पकड़ को उनकी सबसे बड़ी ताकत माना जा रहा है, तो वहीं दूसरी ओर हैं इंडिया (INDIA) गठबंधन की ओर से सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी (B Sudarshan Reddy). दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने समीकरणों की बात बताई जा रही है, लेकिन वर्तमान में यदि सीधे संख्या बल के आधार पर बात की जाए, तो NDA के उम्मीवार सीपी राधाकृष्णन का पलड़ा भारी दिखता है.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Tuesday, August 19, 2025
Radhakrishnan vs Reddy: जैसे ही बी सुदर्शन रेड्डी (B Sudarshan Reddy) के नाम की घोषणा कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) की ओर से की गई, उसके बाद कई मंचों से सहित सोशल मीडिया (Social Media) पर कई पोस्ट में इस बात को लेकर चर्चा शुरू हुई कि कौन जीतेगा ? किसके पक्ष में कौन सा समीकरण है?
उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है, लेकिन संख्याबल के आधार पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) को स्पष्ट बढ़त हासिल है. उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है. इस समय कुल 782 सदस्य मतदान के पात्र हैं. इसका अर्थ है कि किसी भी उम्मीदवार को जीत के लिए न्यूनतम 392 मतों की आवश्यकता होगी.
भाजपा और एनडीए (NDA) खेमे की स्थिति को देखें तो लोकसभा में NDA के पास 293 सीटें हैं, जबकि राज्यसभा में उसके पास 133 सदस्य हैं. इस तरह गठबंधन के पास कुल मतों का बहुमत स्पष्ट रूप से मौजूद है. यही कारण है कि राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि BJP प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन की जीत लगभग तय है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि NDA खेमे के कुछ सदस्य बगावत करके विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करते हैं, तो तस्वीर बदल सकती है. हालांकि वर्तमान हालात में इस तरह की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है. ऐसे में यह कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा बिना किसी कठिनाई के राधाकृष्णन (CP Radhakrishanan) को उपराष्ट्रपति पद पर निर्वाचित करा लेगी.
मीडिया में इस बात को लेकर भी चर्चा जोरों पर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद मुक्त भारत बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. बीते एक दशक में नक्सली हिंसा और माओवाद प्रभावित इलाकों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है. सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई और समानांतर रूप से चल रही विकास योजनाओं ने नक्सलवाद की जड़ों को कमजोर किया है.
इस निर्णायक समय में, विपक्षी गठबंधन इंडी (I.N.D.I.) ने उपराष्ट्रपति पद के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है. न्यायमूर्ति रेड्डी का नाम 2011 के उस ऐतिहासिक फैसले से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार की सलवा जुडूम पहल को असंवैधानिक करार दिया था. उस समय इस निर्णय को नक्सल विरोधी अभियानों के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा गया था.
उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक गलियारों में सिर्फ संख्याओं का गणित नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विमर्श भी तेज हो गया है. अब बहस केवल इस पर सीमित नहीं है कि कौन उपराष्ट्रपति बनेगा, बल्कि यह सवाल केंद्र में आ गया है कि क्या संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों से राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति कठोर और स्पष्ट रुख की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए?
विशेषज्ञों का मानना है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव मात्र एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह उन मूल्यों और दृष्टिकोणों का भी प्रतीक है जिन्हें देश की सर्वोच्च संस्थाए अपनाती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद मुक्त भारत का लक्ष्य तय किया है और इस निर्णायक मोड़ पर सुरक्षा-केन्द्रित दृष्टिकोण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.
यह सच है कि लोकतंत्र में हर राजनीतिक दल को अपने उम्मीदवार चुनने की स्वतंत्रता है. लेकिन ऐसे समय में, जब देश नक्सलवाद के खिलाफ अंतिम जंग लड़ रहा है, तब संवैधानिक पदों पर आसीन होने वाले व्यक्तियों की प्रतीकात्मक भूमिका का महत्व कई गुना बढ़ जाता है.
यही कारण है कि विपक्ष द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं. अब विपक्ष के इस चयन को लेकर यह आशंका जताई जा रही है कि कहीं यह संदेश तो नहीं जाएगा कि जब सरकार नक्सलवाद की जड़ों को उखाड़ फेंकने में लगी है, तब विपक्ष ने ऐसे व्यक्ति को सामने रखकर अनजाने में उन ताकतों के प्रति सहानुभूति जता दी है जिन्हें जनता बार-बार अस्वीकार कर चुकी है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष द्वारा रेड्डी को उम्मीदवार बनाना एक प्रतीकात्मक संदेश है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मानवाधिकार और संवैधानिक मूल्यों की बहस को फिर से उजागर कर सकता है. वहीं, एनडीए खेमे के पास स्पष्ट बहुमत होने के चलते मुकाबला भाजपा उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के पक्ष में झुका हुआ दिखाई दे रहा है.
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