बिहार चुनाव में क्यों जनता के सामने लाया जाता है लालू के जंगलराज का खौफ
Authored By: सतीश झा
Published On: Thursday, September 11, 2025
Last Updated On: Thursday, September 11, 2025
बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में चुनाव (Assembly Election 2025) आते ही एक मुद्दा बार-बार सामने लाया जाता है—लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के शासनकाल का जंगलराज. यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर क्यों आज भी नब्बे के दशक की उस भयावह तस्वीर को जनता के सामने रखा जाता है, जबकि एक पूरी नई पीढ़ी का जन्म उस कालखंड के बाद हुआ है.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Thursday, September 11, 2025
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Assembly Election 2025) के संदर्भ में एक बार फिर नब्बे का दशक चर्चा का विषय बना हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि इस बार बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता हैं, जिनका जन्म उस दौर में हुआ ही नहीं, फिर भी बिहार की राजनीति में जंगलराज का साया अब भी महसूस किया जाता है. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और मीम्स यह संकेत देते हैं कि नब्बे के दशक की यादें आज भी मतदाताओं के मन में गहरे अंकित हैं.
दरअसल, 1990 से 2005 तक का दौर बिहार के इतिहास में अंधकारमय अध्याय के रूप में दर्ज है. अपराध, भ्रष्टाचार और अराजकता का बोलबाला इतना था कि आम नागरिक खुद को असुरक्षित महसूस करता था. उद्योग-धंधे ठप पड़ गए, सड़कें जर्जर हो गईं, बिजली 22% तक सिमट गई और शिक्षा-स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई. अदालत तक को यह टिप्पणी करनी पड़ी कि “बिहार में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है.”
नब्बे का दशक बिहार के लिए भ्रष्टाचार, अपराध और विकासहीनता का पर्याय था. उद्योग-धंधे चौपट हो चुके थे, शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई थी और राजनीति-अपराधी गठजोड़ ने निवेश की हर संभावना समाप्त कर दी थी. इसी दौर को देखते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक वी. एस. नैपाल ने बिहार को “सभ्यता समाप्ति की भूमि” करार दिया था.
यही कारण है कि आज जब भी चुनाव का माहौल बनता है, सत्तारूढ़ दल विपक्ष को घेरने के लिए उस दौर का स्मरण कराता है. जंगलराज का हवाला जनता के मन में यह डर जगाने के लिए दिया जाता है कि यदि सत्ता बदलती है, तो बिहार फिर उसी दलदल में लौट सकता है, जहां भय और अव्यवस्था सामान्य जीवन का हिस्सा थे.
हालांकि, वर्ष 2005 के चुनाव ने राज्य की दिशा बदल दी. के. जे. राव की निगरानी में हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल की करारी हार हुई और राज्य में भाजपा-जदयू की सरकार बनी. इसके साथ ही बिहार में बदलाव की यात्रा शुरू हुई। कानून-व्यवस्था की बहाली, सड़क और बिजली जैसी आधारभूत सुविधाओं में सुधार और शिक्षा-स्वास्थ्य पर बढ़ते ध्यान ने जनता का भरोसा लौटाया.
यह रणनीति केवल विरोधियों को कमजोर करने का हथियार नहीं है, बल्कि मतदाताओं को यह याद दिलाने का प्रयास भी है कि मौजूदा शासन ने बीते दो दशकों में कानून-व्यवस्था, सड़क, बिजली और शिक्षा-स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में ठोस बदलाव लाए हैं. एनडीए (NDA) सरकार जंगलराज से तुलना कर यह संदेश देना चाहती है कि आज का बिहार अवसरों और विकास का प्रतीक है, न कि भय और पिछड़ेपन का.
केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल (CR Patil) ने कहा, “बिहार विकास के प्रगति पथ पर आगे बढ़ रहा है…प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के नेतृत्व में बिहार बहुत आगे बढ़ा रहा है. आज हम विकास के कुछ कार्यों के लिए यहां का दौरा कर रहे हैं. मुझे विश्वास है कि जिस तरह से बिहार आगे बढ़ रहा है, तो आने वाले दिनों में बिहार के युवा जो दूसरे राज्यों में काम करने जाते हैं, वो उनको नहीं जाना पड़ेगा.”
हालांकि, यह भी सच है कि बिहार के सामने आज भी रोजगार, शिक्षा की गुणवत्ता और पलायन जैसी चुनौतियां मौजूद हैं. जनता केवल अतीत की यादों से प्रभावित नहीं होती, बल्कि वर्तमान समस्याओं और भविष्य की संभावनाओं को भी देखती है. ऐसे में नेताओं के लिए जरूरी है कि वे सिर्फ जंगलराज का खौफ दिखाकर संतुष्ट न हों, बल्कि यह भरोसा भी दिलाएं कि आने वाला बिहार बेहतर होगा.
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