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Shardiya Navratri 2025: 30 सितंबर को मनाई जाएगी महाष्टमी
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, September 17, 2025
Last Updated On: Wednesday, September 17, 2025
Shardiya Navratri 2025 का महत्त्वपूर्ण दिन महाष्टमी 30 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन भक्तगण देवी दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना, षोडशोपचार अनुष्ठान और संधि पूजा करते हैं. जानें महाष्टमी का महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Wednesday, September 17, 2025
Shardiya Navratri 2025: महाष्टमी के दिन षोडशोपचार पूजा के साथ दुर्गा पूजा शुरू होती है. यह तिथि 30 सितंबर को है.
शारदीय नवरात्र त्योहार 22 सितंबर 2025 से शुरू होने वाला है. देवी दुर्गा भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए अवतरित होंगी. इस वर्ष नवरात्र पूरे दस दिनों तक चलेगा. यह भक्ति, पूजा, प्रार्थना, उपवास और अनुष्ठान का काल होगा. नवरात्र पूजा के आठवें दिन महाअष्टमी मनाई जाएगी. महाअष्टमी दुर्गाष्टमी (Maha Ashtami or Durga Ashtami 2025) भी कहलाती है.
कब है महाष्टमी पूजा और मुहूर्त (Maha Ashtami Puja & Muhurt)
Event | Date & Time |
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महाष्टमी पूजा का दिन | मंगलवार, सितंबर 30 2025 को |
अष्टमी तिथि की शुरुआत | सितम्बर 29, 2025 को 04:31 बजे |
अष्टमी तिथि समाप्त | सितम्बर 30, 2025 को 06:06 बजे |
महाअष्टमी पूजा और अनुष्ठान (Maha Ashtami Puja & Rituals)
नवरात्र के महाअष्टमी (Durga Ashtami 2025) के दिन भक्तगण को पवित्रता के साथ स्नान करना चाहिए. इसके बाद षोडशोपचार पूजा के साथ दुर्गा पूजा शुरू करनी चाहिए. महाअष्टमी पूजा महासप्तमी पूजा की तरह ही की जाती है, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा इस दिन की जाती है. महाअष्टमी के दिन नौ छोटे कलश स्थापित किए जाते हैं और उनमें देवी दुर्गा के नौ शक्ति स्वरूपों का आह्वान किया जाता है. महाअष्टमी पूजा के दौरान देवी दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है.
दुर्गा स्वरुपा कुंवारी कन्याओं की पूजा (Kumari Puja Significance)
महाअष्टमी के दिन कुंवारी कन्याओं की भी देवी दुर्गा के स्वरूप के रूप में पूजा की जाती है. दुर्गा पूजा के दौरान छोटी कन्याओं की इस पूजा को कुमारी पूजा के नाम से जाना जाता है. विभिन्न क्षेत्रों में दुर्गा नवरात्र के सभी नौ दिनों में कुमारी पूजा की जाती है. दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान एक दिवसीय कुमारी पूजा के लिए महाअष्टमी को ही प्राथमिकता दी जाती है.
संधि पूजा की महत्ता (Sandhi Puja Significance)
महाअष्टमी के शुभ अवसर पर संधि पूजा भी की जाती है. अष्टमी तिथि के अंतिम चौबीस मिनट और नवमी तिथि के पहले चौबीस मिनट की अवधि को संधि काल कहा जाता है. संपूर्ण दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान संधि काल को सबसे शुभ और पवित्र समय माना जाता है. संधि पूजा को दुर्गा पूजा उत्सव का चरम बिंदु माना जाता है. इसे बहुत महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है. इस पवित्र समय के दौरान बलि या पशु बलि देने की प्रथा है. जो भक्त पशु बलि नहीं देते हैं, वे केले, खीरे या ककड़ी जैसे फलों और सब्जियों की प्रतीकात्मक बलि चढ़ाते हैं. शास्त्रों में किसी भी प्रकार की पशु बलि को निषिद्ध माना गया है. इसलिए प्रतीकात्मक बलि प्रदान की जाती है. यहां तक कि पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध बेलूर मठ में भी संधि पूजा के दौरान केले की प्रतीकात्मक बलि दी जाती है. संधि काल के दौरान 108 मिट्टी के दीपक जलाने की प्रथा है.
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