How To Win Childs Heart: बच्चों का दिल जीतना नहीं रहा आसान, मां को बनना होगा टेक फ्रेंडली
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Wednesday, October 15, 2025
Updated On: Wednesday, October 15, 2025
हर पीढ़ी पिछली पीढ़ी से आगे होती है. टेक्नोलॉजी के प्रयोग को लेकर भी आज की मिलेनियल एवं जेन जी पीढ़ी पुरानी जेनरेशन से कहीं आगे है. इससे उनकी मांओं को कई स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अब अगर एक मां को अपने टेक सैवी एवं स्मार्ट बच्चे को बेहतर डील करना या उनके दिल को जीतना है, तो टेक से दोस्ती जरूरी है.
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Wednesday, October 15, 2025
हाइलाइट
यूगॉव (YouGov) के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में करीब 10 में से 8 माताएं मानती हैं कि टेक्नोलॉजी ने बच्चों के पालन-पोषण को आसान बना दिया है.
– शोध से पता चलता है कि 12 वर्ष की आयु में बच्चों का डिजिटल ज्ञान उनके माता-पिता से अधिक हो जाता है. |
– लगभग 47% माता-पिता और देखभाल करने वालों को लगता है कि डिजिटल तकनीक के मामले में उनके बच्चे उनसे ज्यादा जानते हैं. |
– 60% का दावा है कि वे चाहते हैं कि वे डिजिटल रूप से ज्यादा समझदार होते. |
– दस में से एक माता-पिता ट्रेंडिंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से परिचित हैं. |
(वोडाफोन द्वारा ब्रिटेन में किया गया अध्ययन) |
How To Win Childs Heart: भारत में जेनरेशन अल्फा ऐसी दुनिया में पल रही है, जिसमें एआई, स्मार्ट डिवाइस, ऑनलाइन लर्निंग एवं सोशल मीडिया का बोलबाला है. ये पीढ़ी तकनीक के साथ जल्दी तालमेल बिठा लेती है. गैजेट और एप्स का इस्तेमाल करने में अपने माता-पिता से कहीं आगे हैं. यूट्यूब, गेमिंग और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी इनकी पकड़ मजबूत हो चुकी है. अब तो जेन बीटा भी हमारे बीच है, जो टेक्नोलॉजी के विकास के साथ बड़ा होगा. जो सीखने और मनोरंजन के लिए एआई का प्रयोग करेगा. यह सिक्के का एक पहलू है. दूसरा पहलू है कि जन्म से स्मार्टफोन, कंप्यूटर और अन्य गैजेट्स के संपर्क में रहने वाले ये बच्चे गाहे-बगाहे मां से तकनीक से संबंधित सवाल पूछते रहते हैं. जवाब नहीं मिलने पर फौरन निराश हो जाते हैं. मां को भी मलाल रहता है. कई बार अपराध बोध तक से घिर जाती हैं.
तकनीक को अपनाएं, विशेषज्ञता की जरूरत नहीं (Adapting Technology can change things)
आइटी प्रोफेसर निहारिका शर्मा का कहना है कि टेक्नोलॉजी से घबराने की आवश्यकता नहीं है. यह एक ऐसा माध्यम है, जिससे महिलाएं अपने बच्चों के लिए एक रोल मॉडल बन सकती हैं. इसके लिए उन्हें तकनीकी विशेषज्ञ बनने की जरूरत नहीं, सिर्फ तकनीक को अपने जीवन का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है. एक टेक्नो सेवी मां बनकर वे न केवल अपने बच्चों का मार्गदर्शन कर सकती हैं, बल्कि अपने बच्चों को टेक्नोलॉजी के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए कई उपाय भी कर सकती हैं. अच्छी बात ये है कि तकनीकी क्षेत्र में सीखने के लिए पहला कदम उठाना बहुत महत्वपूर्ण है. एक टेक्नो-स्मार्ट मां के रूप में महिलाएं अपने बच्चों को सोशल मीडिया का समझदारी से उपयोग करना सिखा सकती हैं और इनसे जुड़े खतरों जैसे साइबर बुलिंग, अनुचित सामग्री और पहचान की चोरी से बचा सकती हैं. फिर क्यों न पारंपरिक सीमाओं से निकलकर, टेक्नो स्मार्ट मदर बनें, जिनका कर्तव्य सिर्फ बच्चों की देखभाल करना ही नहीं, उनका उज्ज्वल और स्मार्ट भविष्य सुनिश्चित करना भी ही है.
बच्चों को बनाएं अपना टीचर (Learn from child)
आमतौर पर तकनीक में दक्ष व्यक्ति के लिए टेक्नोलॉजी या तकनीकी चीजों को समझना आसान होता है. वही टास्क एक गैर-तकनीकी व्यक्ति या उन महिलाओं के लिए थोड़ा मुश्किल होता है, जो इन चीजों में रुचि नहीं रखतीं. असल में वे तकनीक के इस्तेमाल को लेकर डरती या घबराती हैं. उन्हें लगता है कि गलती होने पर वे मजाक की पात्र बन सकती हैं. बाल मनोचिकित्सक रेणु गोयल कहती हैं, ‘महिलाएं बच्चों को ही अपना शिक्षक बना सकती हैं. इससे न केवल उनके साथ आपके रिश्ते मजबूत होंगे, बल्कि उन्हें कई महत्वपूर्ण कौशल भी सिखने को मिलेंगे. जब एक मां सीखने में रुचि दिखाएगी, तो बच्चे भी और अधिक सीखने में रुचि दिखाएंगे. आप मानें या न मानें, बच्चे आपसे हर प्रश्न के उत्तर की अपेक्षा नहीं करते. लेकिन जब वे किसी नए एप या टेक्नोलॉजी में रुचि दिखाते हैं, तो उनसे पूछें कि वे इसके बारे में क्या जानते हैं या वे इसके साथ क्या करना चाहते हैं? यदि बच्चे बड़े हैं, तो उनसे अपने फोन पर एप डाउनलोड करने और उन्हें इसके सेटअप और उपयोग के बारे में बताने के लिए कहें. पूछने में संकोच न करें. बच्चों को लगना चाहिए कि आप सच में कुछ सीखना चाहते हैं. आमतौर पर बच्चे ‘बेवकूफ माता-पिता की मिथकों का खंडन’ करना या विशेषज्ञ बनना पसंद करते हैं.‘
नए दौर के अनुसार परवरिश (Modern day Parenting)
डिजिटल युग में तकनीक ने हमारे संवाद करने, काम करने और यहां तक कि बच्चों की परवरिश करने के तरीके को भी बदल दिया है. कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना बच्चों के लिए हानिकारक है. लेकिन कई ऐसे तरीके हैं, जहां तकनीक एक बेहतरीन टूल साबित हो सकता है. आज तमाम एप्स एवं आधुनिक उपकरण मौजूद हैं, जिनसे महिलाएं बच्चों के मोबाइल डिवाइस, वीडियो गेम्स, सोशल मीडिया गतिविधि, उनकी नींद एवं भोजन तक पर निगरानी रख सकती हैं. डिवाइस पर पैरेंटल कंट्रोल का इस्तेमाल कर उनकी स्क्रीन टाइम को ठीक कर सकती हैं. इसके लिए डिजिटल स्पेस को भी समझना होगा, जहां बच्चों का अधिकांश समय व्यतीत होता है. यानी अगर मां टेक सैवी होगी, तो वह उन्हें ऑनलाइन सुरक्षा और साइबर बुलिंग, जैसे अन्य खतरों के प्रति आगाह कर सकेंगी. ध्यान रख सकेंगी कि बच्चे तकनीक का सही इस्तेमाल कर रहे हैं या नहीं. खासकर तब जब उन्हें स्मार्टफोन एवं वीडियो गेम्स की लत लगी हुई है.
महामारी ने बनाया टेक फ्रेंडली
कोविड के दौरान स्कूल-कॉलेज बंद होने पर जब क्लासेज ऑनलाइन हो गईं, तो शिक्षकों के साथ-साथ घर में रहने वाली मांओं तक को कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा. सौम्या को भी अंदाजा नहीं था कि वे दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले बेटे वंश को गूगल मीट पर होने वाली क्लासेज में कैसे ज्वाइन कराएंगी? क्योंकि न उन्हें गूगल मीट और न उसके प्रयोग की कोई जानकारी थी. उन्होंने परेशान होने की बजाय यूट्यूब के ट्यूटोरियल क्लासेज से जानकारी हासिल करने के अलावा स्कूल की टीचर से भी मदद ली. दिलचस्प ये रहा कि वंश ने स्वयं पहल कर पूरी प्रक्रिया को समझा और वे बिना किसी बाधा के अपनी ऑनलाइन क्लास कर सके. सच में महामारी ने फोन, टैबलेट, लैपटॉप को जीवन की एक बुनियादी आवश्यकता बना दिया.
सोशल मीडिया से सीखने का मौका
सोशल मीडिया भी आपका भरोसेमंद साथी बन सकता है. फेसबुक पर ऐसे ग्रुप हैं, जहां पैरेंटिंग और तकनीक पर केंद्रित चर्चाएं होती हैं. कंटेंट साझा किए जाते हैं। आप भी देखने एवं परखने के बाद उन ग्रुप्स से जुड़ सकती हैं या जुड़ने का अनुरोध कर सकती हैं. तत्पश्चात् उन समूहों में पोस्ट की गई सामग्री आपके न्यूज फीड में दिखाई देने लगेगी. इससे भी अच्छा रहेगा कि अपने आसपास कोई समूह तलाशें, जो तकनीक से जुड़े मुद्दों पर बात एवं नियमित बैठक करता हो. कहते हैं कि जो अच्छा लगता है, उसे सीखना हमेशा अच्छा होता है. तकनीक एक ऐसी चीज है, जो हर दिन, हर पल बदलती रहती है. लेकिन अपने आस-पास की तकनीक के बारे में बुनियादी जानकारी होना और अपनी जरूरतों को ‘शामिल’ करना हमेशा काम आता है.
ब्लॉग्स, मैग्जींस, यूट्यूब से मदद
तकनीकी रूप से सक्षम बनने के लिए इंटरनेट पर तमाम सामग्री से लेकर बाजार में कई टेक मैग्जीन उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से आप खुद को डिजिटल युग में हो रहे बदलावों के साथ अपडेट रख सकती हैं. भारत में माताएं पैरेंटिंग एप्स का सबसे अधिक उपयोग करती हैं. आप भी अपने स्मार्टफोन में आवश्यकता अनुसार, शैक्षिक एवं अन्य क्रिएटिव एप्स डाउनलोड कर सकती हैं. बहुत से ब्लॉग्स हैं, जहां टेक सैवी महिलाएं टेक्नोलॉजी से जुड़े टिप्स देने से लेकर टेक फ्रेंडली बनने के तरीके साझा करती हैं. यूट्यूब पर भी हिंदी समेत अन्य भाषाओं में सामग्री उपलब्ध है. आप इन एक्सपर्ट्स की क्लासेज का फायदा उठा सकती हैं. तब आपको अपने बच्चों के तकनीक से जुड़े प्रश्नों के उत्तर देने में संकोच नहीं होगा. लेखिका डैनियल लापोर्ट का मानना है कि जिज्ञासा एक ऐसी शक्ति है, जो व्यक्ति के रूप में आपके विकास को आगे बढ़ाती है. जीवन भी सीखते रहने का नाम है. जब आपके अंदर नई चीजों को जानने की दिलचस्पी रहेगी, तभी आप दिशा में आगे बढ़ सकेंगी.
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