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संसद में एक घंटे की कार्यवाही पर कितना आता है खर्च, शीतकालीन सत्र में कितना खर्च हुआ?
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Monday, December 15, 2025
Last Updated On: Monday, December 15, 2025
क्या आप जानते हैं कि संसद की कार्यवाही का हर मिनट लाखों रुपये खर्च कर देता है? शीतकालीन सत्र के बीच यह सवाल चर्चा में है कि आखिर संसद चलाने में कितना पैसा लगता है, एक घंटे की बैठक की कीमत क्या है और 19 दिनों के शीतकालीन सत्र में कुल कितना खर्च होने वाला है.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Monday, December 15, 2025
जैसे-जैसे संसद का शीतकालीन सत्र अपने आखिरी चरण की ओर बढ़ रहा है, देशभर में एक अहम सवाल जोर पकड़ रहा है आखिर संसद चलाने में कितना खर्च आता है? संसद में होने वाली हर बहस, हर चर्चा और हर मिनट की कार्यवाही सीधे तौर पर जनता के टैक्स के पैसों से जुड़ी होती है. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि लोकसभा और राज्यसभा की एक घंटे की बैठक पर कितने करोड़ रुपये खर्च होते हैं और दिसंबर में चल रहे शीतकालीन सत्र पर अब तक कितना आर्थिक बोझ पड़ चुका है. यही वजह है कि संसद के कामकाज और उसमें होने वाले व्यवधानों पर अक्सर सार्वजनिक बहस देखने को मिलती है. आइए जानते हैं क्या है इस सवाल का जवाब.
संसद चलाने की प्रति घंटे की लागत
भारतीय संसद को चलाना सस्ता काम नहीं है. यह एक बड़ा और महंगा सिस्टम है. संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट करीब ढाई लाख रुपये खर्च होते हैं. यानी अगर एक घंटे की बात करें, तो खर्च लगभग डेढ़ करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है. यह आंकड़ा मुख्य तौर पर लोकसभा से जुड़ा है. राज्यसभा में आमतौर पर बैठक का समय कम होता है. वहां सदस्यों की संख्या भी कम रहती है. इसी वजह से राज्यसभा में प्रति घंटे का खर्च लगभग 75 लाख रुपये माना जाता है.
इस भारी खर्च में क्या-क्या शामिल होता है
संसद का खर्च सिर्फ बहस और चर्चा तक सीमित नहीं होता. इसमें कई तरह के खर्च जुड़ते हैं. सबसे बड़ा हिस्सा सांसदों के वेतन और उनके दैनिक भत्तों का होता है. इसके अलावा सांसद देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं. उनकी यात्रा और ठहरने का खर्च भी सरकारी खजाने से दिया जाता है. संसद को सुचारु रूप से चलाने के लिए हजारों कर्मचारी काम करते हैं. इनमें सचिवालय के कर्मचारी, अनुवादक, रिपोर्टर, मार्शल और तकनीकी स्टाफ शामिल हैं. सुरक्षा व्यवस्था पर भी भारी खर्च होता है.
संसद सुरक्षा सेवा, दिल्ली पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र बल इसमें तैनात रहते हैं. बिजली, एयर कंडीशनिंग, पानी की सप्लाई, सफाई और पूरे संसद परिसर के रखरखाव पर भी खर्च आता है. स्टेशनरी और दूसरे जरूरी संसाधन भी इसी में शामिल हैं. इसके साथ ही संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाता है. उसकी तकनीकी और प्रसारण लागत भी कुल खर्च को बढ़ा देती है.
एक सत्र के दौरान रोज़ का खर्च
जब संसद पूरे दिन काम करती है, तो रोज़ का खर्च करीब 9 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है. यह अनुमान औसतन 6 घंटे की बैठक को ध्यान में रखकर लगाया गया है.
शीतकालीन सत्र में कितना खर्च हुआ
संसद का शीतकालीन सत्र 2025, 1 दिसंबर से 19 दिसंबर तक तय किया गया है. इस दौरान कुल 15 बैठकें होनी हैं. अगर रोज़ के औसतन 9 करोड़ रुपये खर्च को देखें, तो पूरे सत्र की लागत करीब 135 करोड़ रुपये बैठती है. 11वें दिन तक की स्थिति देखें, तो सामान्य बैठकों के आधार पर संसद लगभग 99 करोड़ रुपये पहले ही खर्च कर चुकी है. यही वजह है कि संसद में बार-बार होने वाले हंगामे और व्यवधानों की आलोचना होती है.
आखिरकार यह पैसा देश के टैक्स देने वाले लोगों का ही होता है. जब कार्यवाही बार-बार बाधित होती है, तो कानून बनने में देरी होती है. साथ ही जनता का पैसा भी बेकार चला जाता है. यही बात लोगों की चिंता का सबसे बड़ा कारण बनती है.















