भारत में कब तक आएगा सैटेलाइट इंटरनेट, इस वजह से नहीं मिल रही मंजूरी?
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Tuesday, December 16, 2025
Updated On: Tuesday, December 16, 2025
भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवा का सपना अभी और टल सकता है. स्टारलिंक, जियो और एयरटेल जैसी कंपनियों को लाइसेंस मिलने के बावजूद स्पेक्ट्रम की कीमत को लेकर TRAI और DoT के बीच चल रहा विवाद बड़ी रुकावट बना हुआ है. सवाल यही है कि देश में सैटेलाइट इंटरनेट आखिर कब शुरू होगा?
Authored By: Ranjan Gupta
Updated On: Tuesday, December 16, 2025
Satellite Internet: दूर-दराज के इलाकों तक तेज इंटरनेट पहुंचाने वाला सैटेलाइट इंटरनेट भारत में कब हकीकत बनेगा, यह सवाल एक बार फिर चर्चा में है. एलन मस्क की स्टारलिंक से लेकर जियो और एयरटेल जैसी बड़ी कंपनियां पूरी तैयारी में हैं, लेकिन सरकारी प्रक्रियाओं ने इनके प्लान पर ब्रेक लगा दिया है. TRAI और डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम के बीच स्पेक्ट्रम प्राइसिंग को लेकर चल रही खींचतान के कारण सेवा शुरू होने में 3 से 6 महीने या उससे ज्यादा की देरी हो सकती है. इस देरी का सीधा असर उन इलाकों पर पड़ रहा है, जहां आज भी इंटरनेट एक सपने जैसा है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में सैटेलाइट इंटरनेट शुरू करने के लिए स्टारलिंक, Eutelsat OneWeb और जियो सैटेलाइट को लाइसेंस मिल चुके हैं और इन कंपनियों ने दूसरी रेगुलेटरी अप्रूवल भी ले ली हैं, लेकिन अभी इन्हें स्पेक्ट्रम आवंटित नहीं हुए हैं और न ही प्राइसिंग को लेकर नियम बने हैं. इसके चलते इस सर्विस के रोल आउट होने में देरी हो रही है.
अभी प्रोसेस में कितना समय और लगेगा?
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट्स के अनुसार, फिलहाल TRAI और DoT के बीच स्पेक्ट्रम की कीमत को लेकर सहमति नहीं बन पाई है. यही वजह है कि मामला आगे नहीं बढ़ पा रहा है. अभी यह प्रस्ताव पहले स्टैंडिंग कमेटी के पास जाएगा. वहां इस पर चर्चा होगी. इसके बाद इसे मंजूरी के लिए डिजिटल कम्युनिकेशन कमीशन भेजा जाएगा.
यहां से हरी झंडी मिलने के बाद फाइल केंद्रीय मंत्री या फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल तक पहुंचेगी. जब वहां से भी मंजूरी मिल जाएगी, तब वायरलेस प्लानिंग एंड कॉर्डिनेशन (WPC) विंग इससे जुड़े नियम तैयार करेगी. इसके बाद आम लोगों और कंपनियों से राय लेने के लिए 30 दिनों का पब्लिक कंसल्टेशन किया जाएगा. यानी प्रक्रिया अभी लंबी है और इसमें और वक्त लग सकता है.
स्पेक्ट्रम की कीमत पर क्या है विवाद?
TRAI ने शुरुआत में सुझाव दिया था कि सैटेलाइट इंटरनेट कंपनियां अपनी कुल कमाई का 4 प्रतिशत सरकार को दें. इससे सभी कंपनियों के लिए एक जैसा नियम लागू हो जाता. लेकिन DoT इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हुआ. विभाग ने इसे बढ़ाकर 5 प्रतिशत करने का प्रस्ताव रखा.
हालांकि, इसमें एक राहत भी जोड़ी गई. अगर कंपनियां ग्रामीण इलाकों में तय लक्ष्य पूरे करती हैं, तो उन्हें 1 प्रतिशत की छूट दी जा सकती है. जानकारों का कहना है कि इस बदलाव से सरकार की कमाई पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा. लेकिन इससे टेलीकॉम कंपनियों की नाराजगी जरूर कम हो सकती है.
कैसे काम करता है सैटेलाइट इंटरनेट?
नाम से ही साफ है कि सैटेलाइट इंटरनेट सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट सेवा देता है. यह सैटेलाइट टीवी की तरह काम करता है. एक डिश एंटीना जियोस्टेशनरी, लो अर्थ ऑर्बिट या हाई अर्थ ऑर्बिट में मौजूद सैटेलाइट से रेडियो वेव्स को पकड़ती है. इन्हीं वेव्स के जरिए यूजर तक इंटरनेट पहुंचता है. इसमें केबल, फाइबर या फोन लाइन की जरूरत नहीं होती. यही वजह है कि दूर-दराज और मुश्किल इलाकों में भी इंटरनेट पहुंचाना आसान हो जाता है.
AGR और चार्ज बढ़ाने की वजह
यहां AGR यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू की बात हो रही है. AGR में कंपनी की कुल कमाई शामिल होती है. इसमें कॉल, डेटा और SMS जैसी सेवाओं से होने वाली आय भी जुड़ी होती है. इसी AGR का एक तय हिस्सा कंपनियों को सरकार को देना होता है. इंडस्ट्री से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, चार्ज को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत करने के पीछे सरकार का मकसद शायद “लेवल प्लेइंग फील्ड” की मांग कर रही टेलीकॉम कंपनियों को संतुष्ट करना है. यानी सभी के लिए बराबर नियम.
अधिकारी यह भी मानते हैं कि इस बढ़ोतरी से सरकार को कोई बड़ा वित्तीय फायदा नहीं होगा. इसे ज्यादा तर एक प्रतीकात्मक कदम माना जा रहा है. इसका मकसद यह दिखाना है कि DoT टेलीकॉम कंपनियों की चिंताओं को सुन रहा है और उन पर प्रतिक्रिया दे रहा है.
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