Bihar Assembly Election 2025: नई पार्टियों की एंट्री से समीकरण बिगड़े या मतदाताओं का कंफ्यूजन बढ़ेगा?

Authored By: सतीश झा

Published On: Monday, September 22, 2025

Last Updated On: Monday, September 22, 2025

Bihar Assembly Election 2025 में नई पार्टियों की एंट्री से राजनीतिक समीकरण और मतदाताओं के निर्णय पर पड़ने वाले असर की पूरी जानकारी.
Bihar Assembly Election 2025 में नई पार्टियों की एंट्री से राजनीतिक समीकरण और मतदाताओं के निर्णय पर पड़ने वाले असर की पूरी जानकारी.

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025 ) करीब आ रहे हैं, सियासी हलचल तेज हो गई है. इस बार का चुनाव इसलिए खास है, क्योंकि कई नई राजनीतिक पार्टियां मैदान में हैं. इससे न केवल परंपरागत राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं बल्कि मतदाताओं के सामने सही विकल्प चुनने की चुनौती भी खड़ी हो गई है.

Authored By: सतीश झा

Last Updated On: Monday, September 22, 2025

सबसे ज्यादा चर्चा प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) की जन सुराज पार्टी की है, जिसने अपनी पदयात्राओं और संवाद कार्यक्रमों के जरिए जनता तक सीधा संदेश पहुंचाया है कि उनकी राजनीति जाति और धर्म से ऊपर होगी. यह पार्टी पहली बार चुनावी अखाड़े में उतर रही है, लेकिन इसे गंभीर चुनौती माना जा रहा है.

बिहार की राजनीति दशकों से लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav), नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और रामविलास पासवान (Ramvilas Paswan) जैसे नेताओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है. मगर इस बार तस्वीर बदलती दिख रही है. महागठबंधन और एनडीए (NDA) के अलावा एआईएमआईएम (असदुद्दीन ओवैसी), आजाद समाज पार्टी (चंद्रशेखर आजाद), आम आदमी पार्टी (AAP) और चिराग पासवान (Chirag Paswan) की पार्टी भी मैदान में सक्रिय हैं. इन दलों की मौजूदगी बड़े गठबंधनों के पारंपरिक वोट बैंक पर सीधी चुनौती है.

बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) ने कहा कि राज्य में NDA की डबल इंजन सरकार हर क्षेत्र में विकास ला रही है. उन्होंने कहा, “बदलता बिहार, बढ़ता बिहार.  NDA की सरकार परियोजनाओं का शिलान्यास भी करती है और उद्घाटन भी, ताकि जनता को विकास का सीधा लाभ मिले.”

इस बार इन दलों की रणनीति में खासा बदलाव देखा जा रहा है. ज्यादातर छोटे दल राज्य की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं. लगभग हर सीट पर दर्जनों दावेदार नज़र आ रहे हैं, जिससे मुकाबला और भी जटिल हो गया है. कई छोटे दल पहले ही अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुके हैं, जबकि कुछ टिकट वितरण की प्रक्रिया में हैं. इन दलों की रणनीति अक्सर अप्रत्याशित गठबंधन करने की भी होती है. चुनाव से ठीक पहले बड़े दलों के साथ हाथ मिलाकर वे न केवल अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाते हैं बल्कि टिकट बंटवारे और सत्ता-साझेदारी की राजनीति में भी तवज्जो हासिल करने की कोशिश करते हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कई छोटे दलों का मकसद केवल एक-दो सीट जीतना नहीं होता, बल्कि अपनी उपस्थिति दर्ज कराना और बड़े दलों से बातचीत में अपनी स्थिति मजबूत करना होता है. वहीं, कुछ दल चुनाव में उतरकर चंदा जुटाने और भविष्य की राजनीति के लिए पहचान बनाने को ही बड़ी उपलब्धि मानते हैं. छोटे दलों की यह सक्रियता चुनावी समीकरणों को और पेचीदा बना रही है, जिससे बड़े राजनीतिक गठबंधनों के लिए रणनीति तय करना चुनौतीपूर्ण हो गया है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नई पार्टियों की वजह से ‘वोट कटवा’ फैक्टर अहम भूमिका निभा सकता है. भले ही ये दल बहुत ज्यादा सीटें न जीत पाएं, लेकिन वोटों का बिखराव बड़े दलों की हार-जीत का अंतर जरूर तय करेगा. सबसे बड़ा सवाल मतदाताओं के सामने है. क्या वे परंपरागत दलों के साथ जाएंगे या बदलाव का वादा करने वाली नई पार्टियों को मौका देंगे? यही असमंजस इस चुनाव को और दिलचस्प बना रहा है.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Assembly Election 2025) केवल सत्ता की जंग नहीं, बल्कि राज्य की राजनीति की दिशा तय करने वाला चुनाव होगा. अगर नई पार्टियां जनता के भरोसे पर खरी उतरती हैं, तो यह राजनीति में नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है. लेकिन यदि वे केवल वोट काटने तक सीमित रह गईं, तो यह लोकतंत्र और स्थिर सरकार दोनों के लिए चुनौती साबित होगा.

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About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है
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