Global Emotional Health Crisis: मानसिक स्वास्थ्य से कहीं अधिक, भावनात्मक संकट से जूझ रही पूरी दुनिया

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Thursday, October 16, 2025

Last Updated On: Thursday, October 16, 2025

Global Emotional Health Crisis: विश्वभर में बढ़ता भावनात्मक संकट, मानसिक स्वास्थ्य पर असर, ग्लोबल इमोशनल हेल्थ क्राइसिस पर रिपोर्ट
Global Emotional Health Crisis: विश्वभर में बढ़ता भावनात्मक संकट, मानसिक स्वास्थ्य पर असर, ग्लोबल इमोशनल हेल्थ क्राइसिस पर रिपोर्ट

Emotional Health Crisis : विश्व तेजी से चिंतित, तनावग्रस्त और क्रोधित होता जा रहा है. वह लम्बे समय से भावनात्मक संकट के दौर से गुजर रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या से कहीं अधिक गंभीर है, जो वैश्विक स्थिरता के लिए एक खतरनाक संकेत है. दरअसल, गैलप की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स इमोशनल हेल्थ 2025 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में नकारात्मक भावनाएं एक दशक पहले के स्तर से कहीं अधिक तक पहुंच गई हैं. कम शांतिपूर्ण समाजों में संकट ज्यादा है. यानी जहां संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता या सामाजिक नाजुकता बढ़ती है, वहां नकारात्मक भावनाएं तीव्र होती जा रही हैं. इससे स्वस्थ जीवन की प्रत्याशा घटती जा रही.

Authored By: अंशु सिंह

Last Updated On: Thursday, October 16, 2025

गैलप इंस्टीट्यूट (Gallup Institute) द्वारा तैयार की गई ‘स्टेट ऑफ द (Global Emotional Health Crisis) ग्लोबल इमोशनल हेल्थ 2025’ (State of the Global Emotional health 2025) रिपोर्ट में 144 देशों व क्षेत्रों के 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों का सर्वेक्षण किया गया. रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं, वे चौकाने वाले हैं. रिपोर्ट पर विश्वास करें, तो दुनिया भर में 39 फीसदी व्यस्कों का कहना है कि वे पिछले दिन ज़्यादातर समय चिंतित रहे. जबकि 37 फीसदी ने बहुत ज्यादा तनाव महसूस करने की बात कही, जो एक दशक पहले की तुलना में काफी अधिक है. लेकिन साथ ही, रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि सकारात्मक भावनाएं स्थिर हैं. करीब 88 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया जाता है. वहीं, 73 फीसदी ने कहा कि वे रोजाना हंसने और आनंद में रहने का अनुभव करते हैं. विश्व की भावनात्मक स्वास्थ्य स्थिति पर यह पहली रिपोर्ट इन भावनाओं को शांति और स्वास्थ्य परिणामों से भी जोड़ती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि नाजुक अवस्थाओं में क्रोध, उदासी और शारीरिक पीड़ा का स्तर सबसे ज्यादा होता है.

पुरुषों से अधिक महिलाओं को होता है तनाव (Women are more stressed than Men)

गौर करने वाली बात ये है कि महिलाएं लगातार पुरुषों की तुलना में ज्यादा चिंता और तनाव की शिकायत करती हैं. ऐतिहासिक रूप से भी देखें, तो महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में तनाव और बोझ का उच्च स्तर अनुभव किया है. विडंबना ये है कि संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही. उदाहरण के लिए, साल 2023 में 3,000 से ज्यादा वयस्कों पर किए गए एक अध्ययन में महिलाओं ने अपने तनाव के स्तर को औसतन 10 में से 5.3 बताया, जबकि पुरुषों ने औसतन 10 में से 4.8 बताया. पुरुषों की तुलना में उनके तनाव के स्तर को 8 से 10 के बीच आंकने की संभावना ज़्यादा थी (27% बनाम 21%). इसी अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं द्वारा पैसे, परिवार, जिम्मेदारियों और रिश्तों को लेकर तनाव की रिपोर्ट करने की संभावना ज़्यादा थी. सर्वेक्षण में शामिल 68% महिलाओं ने स्वीकार किया कि उन्हें ज़्यादा सहारे की ज़रूरत है, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 63% था.

क्यों होता है तनाव ? (What causes Stress)

तनाव अनिवार्य रूप से कोई बीमारी या मानसिक स्वास्थ्य समस्या नहीं है. लेकिन यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती पर स्थायी प्रभाव डाल सकता है. अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेस, तनाव को किसी भी सुखद या अप्रिय मांग के प्रति शरीर की विशिष्ट प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित करता है. आमतौर पर तनाव का स्रोत जीवन में होने वाले किसी न किसी बदलाव के कारण होता है. उदाहरण के लिए तलाक, किसी प्रियजन की मृत्यु, बच्चे का जन्म, नौकरी छूटना या नई नौकरी मिलना. यह व्यक्ति के परिवेश से भी उत्पन्न हो सकता है, जैसे कि कोई आक्रामक बॉस या तनावग्रस्त व्यक्ति. जिन देशों और समुदायों में सामाजिक समर्थन कमजोर होता है, वहां दैनिक नकारात्मक भावना का स्तर अधिक, जीवन से संतुष्टि कम होती है. रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि भावनात्मक स्वास्थ्य की अनदेखी करने का मतलब कमजोरी के शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज करना हो सकता है.

कैसे करें भावनात्मक स्वास्थ्य की रक्षा? (How to take care of Emotional Health)

मार्केटिंग फर्म में कार्यरत अनिकेत कहते हैं, इमोशनल हेल्थ के लिए सोने और खेलने के लिए समय निकालना बेहद जरूरी है. साथ ही उन चीजों से बचना भी जरूरी है, जो आपको निराश कर सकती हैं. सोशल मीडिया से दूर रहना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है. इससे हर तरह की निराशा, पक्षपातपूर्ण आलोचना एवं उन चीजों के लिए जिन्हें आप नियंत्रित नहीं कर सकते. उससे बच सकते हैं. यानी तकनीकों का समझदारी से इस्तेमाल करना सीखना होगा, बिना उन्हें आपको इस्तेमाल करने दिए. मोटिवेशनल स्पीकर रितू ठक्कर की मानें, तो मानव मन प्रतिदिन सत्तर हजार तक विचार उत्पन्न करता है. चूंकि उनमें से 80% से ज्यादा विचार निगेटिव होते हैं, इसलिए जानबूझकर मन को साफ करना जरूरी है. इसके अलावा, हम अपनी चेतना में लगातार आने वाली एल्गोरिदम संबंधी बकवास को भी जोड़ दें, तो यह जरूरत और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है. अगर हम रोजाना यह मानसिक सफाई न करें, तो हमारा मन लगातार अव्यवस्थित रहेगा.

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About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
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