Lifestyle Diseases Affecting Children As Young As 5 Year Old: व्यस्कों की लाइफस्टाइल डिजीज की गिरफ्त में देश के नौनिहाल
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Wednesday, October 8, 2025
Updated On: Wednesday, October 8, 2025
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लिमेंटेशन की एक हालिया रिपोर्ट पर गौर करें, तो गुजरात में सबसे अधिक 2.9 फीसदी बच्चों (10 से 19 वर्ष की आयु) के डायबिटीक होने की संभावना है. यानी बच्चों की स्वास्थ्य चुनौतियां तेजी से बदल रही हैं. पहले पैरेंट्स जहां फ्लू या संक्रमणों को लेकर चिंतित रहते थे, वहीं अब डायबिटीज एवं हाइपरटेंशन जैसी लाइफस्टाइल डिजीज को लेकर वे डॉक्टरों के चक्कर लगा रहे हैं. यानी जिन समस्याओं की गिरफ्त में पहले व्यस्क आते थे, अब वह बच्चों को अपना शिकार बना रही है.
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Wednesday, October 8, 2025
Child Lifestyle Disease Crisis: अविनाश अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि स्कूल से आने के बाद उन्हें पार्क में दोस्तों के साथ खेलने जाने की जल्दी होती थी. फटाफट लंच खत्म करके वे सीधे ग्राउंड में पहुंच जाते थे. लेकिन आज उनके बच्चों की पूरी रूटीन ही अलग हो चुकी है. 10 साल का बेटा निखिल स्कूल से लौटकर सीधे मोबाइल फोन पकड़ता है और सोफे पर जम जाता है. वह लंच भी नहीं करना चाहता. उसे चिप्स और चॉकलेट चाहिए होते हैं. जाहिर है, उसका वजन लगातार बढ़ रहा और यही अविनाश के चिंता का कारण बन गया है. क्योंकि डॉक्टरों के अनुसार, उसके डायबिटीज की चपेट में आने की आशंका बढ़ गई है. स्नेहा की पांच साल की बेटी की भी यही कहानी है. मोटापे के कारण वह ज्यादा चलने या खेलने से कतराती है. मूड स्विंग इतना होता है कि पूछें मत. मां घबराई रहती हैं कि कहीं उसके मानसिक विकास पर कोई कसर न पड़े.
जंक फूड, चीनी बिगाड़ रहा सेहत
बच्चे व किशोर जंक फूड (Junk Food), कोल्ड ड्रिंक (cold drink) से खुद को बचा नहीं पा रहे. वे नहीं जानते हैं कि जूस, मिठाइयों से लेकर ब्रेड, पास्ता, सॉसेज और अन्य प्रोसेस्ड फूड में जिस प्रकार की चीनी का प्रयोग किया जा रहा है, वह उनकी सेहत के लिए कितना नुकसानदायक है. रिफाइंड और अतिरिक्त चीनी के अत्यधिक सेवन से कोलेस्ट्रॉल का स्तर असामान्य हो सकता है. हार्वर्ड टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की स्टडी कहती है कि इससे हाई ब्लड प्रेशर, टाइप 2 डायबिटीज, पीसीओएस, बेली फैट, मोटापा, स्किन प्रॉब्लम, मूड स्विंग, लीवर, हृदय रोग, स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. दरअसल, अग्न्याशय द्वारा निर्मित इंसुलिन हार्मोन हमारे भोजन (कार्बोहाइड्रेट) को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है, जिसे ब्लड शुगर कहते हैं. जब बॉडी इंसुलिन रेजिज्टेंट हो जाती है, तो ब्लड में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. इसे फिर ‘हिडेन शुगर’ यानी छिपी हुई शर्करा कहते हैं. यह एक संकेत है कि शरीर इंसुलिन का प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहा है. यदि इसे नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो ये हिडेन शुगर टाइप 2 डायबिटीज का कारण बन सकता है
4 से 14 वर्ष की आयु में टाइप 1 डायबिटीज का खतरा
आकाश हेल्थकेयर के सीनियर कंसल्टेंट (नेफ्रोलॉजी) डॉ. अनुपम रॉय बताते हैं कि कहने को टाइप 1 डायबिटीज किसी भी उम्र में हो सकती है. लेकिन दो आयु वर्ग के बच्चों में ये आम है. पहला, 4 से 7 वर्ष की आयु के बच्चों में और दूसरा 10 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों में. दरअसल, टाइप 1 डायबिटीज (Type1 Diabetes) एक ऐसी स्थिति है जब बच्चे का शरीर स्वाभाविक रूप से आवश्यक मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता. इसे किशोर मधुमेह या इंसुलिन-निर्भर मधुमेह भी कहा जाता है. इसमें इंसुलिन के स्तर को सामान्य सीमा में रखने के लिए बच्चे को इंसुलिन के इंजेक्शन की आवश्यकता हो सकती है. हालांकि, अभी तक बच्चों में टाइप 1 मधुमेह होने के सटीक कारण का पता नहीं चल सका है. लेकिन देखा गया है कि इससे पीड़ित बच्चों में उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट कर देती है. कई बार वायरस जैसे पर्यावरणीय कारक भी इस प्रक्रिया को ट्रिगर कर सकते हैं. कई अध्ययनों में देखा गया है कि टाइप 1 मधुमेह रूबेला, एन्सेफलाइटिस, खसरा या पोलियो जैसे वायरल संक्रमणों के बाद होता है. कभी-कभी अग्न्याशय में चोट के कारण भी यह होता है.
बच्चों में बढ़ रही हाई ट्राईग्लिसराइड्स की मात्रा
छोटी उम्र में ही बच्चों में हाई ट्राइग्लिसराइड्स पायी जा रही. अनुमान है कि भारत में 16 फीसदी से ज्यादा किशोरों में उच्च ट्राइग्लिसराइड्स (HighTriglycerides) पाया जाता है. बचपन में भले ही यह उन्हें ज्यादा प्रभावित नहीं करती. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ यह खतरनाक हो जाते हैं. इससे कोरोनरी आर्टरी डिजीज, स्ट्रोक, टाइप-2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा का खतरा बढ़ सकता है. ऐसे में इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो बच्चे को 30 साल की उम्र से पहले ही दिल का दौरा पड़ सकता है. ‘भारत में बच्चे 2025‘ रिपोर्ट के अनुसार, देश के 5 से 9 वर्ष की आयु के एक तिहाई से अधिक बच्चों में उच्च ट्राइग्लिसराइड्स हो सकते हैं. जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में इसकी अधिकता हो सकती है. वहीं, पश्चिम बंगाल में 67 प्रतिश से अधिक, सिक्किम में 64 फीसद, नागालैंड में 55 फीसद, असम में 57 फीसद और जम्मू-कश्मीर में 50 फीसद बच्चों में ट्राइग्लिसराइड्स का उच्च स्तर होने का अनुमान है. डॉक्टरों के अनुसार, ट्राइग्लिसराइड्स शरीर में मौजूद एक प्रकार की वसा है. ये घी, तेल, मक्खन जैसे खाद्य पदार्थों में मौजूद वसा से आते हैं. इसके अलावा, चॉकलेट, सोडा जैसे उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों को शरीर ट्राइग्लिसराइड्स में बदलकर जमा कर देता है, जो बाद में ऊर्जा के लिए इस्तेमाल होते हैं. अगर ये ज्यादा जमा हो जाते हैं, तो रक्त वाहिकाओं से चिपक जाते हैं. इससे हृदय की धमनियां ब्लॉक हो सकती हैं. फैटी लिवर की समस्या हो जाती है.
गुजरात के 2.9 फीसदी बच्चे डायबिटीज के शिकार
मिनिस्ट्री ऑफ स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लिमेंटेशन की एक हालिया रिपोर्ट पर गौर करें, तो पाते हैं कि गुजरात में सबसे अधिक 2.9 फीसदी बच्चों (10 से 19 वर्ष की आयु) के डायबिटीक होने की संभावना है. जबकि राष्ट्रीय औसत 0.6 फीसदी है. इतना ही नहीं, प्रदेश में 5 से 9 वर्ष की आयु के प्री-डायबिटीक बच्चों की संख्या भी करीब 20.8 फीसदी है. इसमें पश्चिम बंगाल नंबर एक पर है, जहां के 21 फीसदी बच्चे प्री-डायबिटीक हैं. प्री-डायबिटीक वह स्थिति है, जिसमें फास्टिंग प्लाज्मा ग्लुकोज 100 से 126 एमजी/डीएल के बीच रहता है. रिपोर्ट में मधुमेह के अलावा, देश के 4.9 फीसदी बच्चों में उच्च रक्तचाप की शिकायत पाई गई. इसमें गुजरात पहले नंबर पर है, जहां 10 से 19 वर्ष के करीब 6.4 फीसदी बच्चे हाइपरटेंसिव यानी हाई ब्लड प्रेशर के शिकार पाए गए. क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ रीतिका समादार का कहना है कि जंक डाइट, एक्सरसाइज की कमी, लंबे समय तक स्क्रीन देखने से छोटी उम्र के बच्चों में डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है. इसमें मोटापा बड़ा कारक है. जरूरत से अधिक वजन होने से वे फैटी लीवर, हाइपरटेंशन और मधुमेह की समस्या से ग्रस्त होते जा रहे हैं. मोटापे की वजह से बच्चे बुलिंग का शिकार होते हैं, जो कहीं न कहीं उनके ब्लड प्रेशर को बढ़ा रहा. वे हाई ब्लड प्रेशर की चपेट में आ रहे. आंकड़े बताते हैं कि देश के लगभग 5 फीसदी किशोरों के हाई ब्लड प्रेशर से ग्रस्त हो सकते हैं. दिल्ली में यह दर सबसे ज़्यादा 10 फीसदी है. उसके बाद उत्तर प्रदेश (8.6%), मणिपुर (8.3%) और छत्तीसगढ़ (7%) का स्थान है.
पैरेंट्स-शिक्षकों को मिलकर रखना होगा ध्यान
अध्ययन बताते हैं कि पश्चिमी आहार का प्रभाव भारतीय बच्चों में बचपन में मोटापे और अस्वास्थ्यकर जीवनशैली के बढ़ते चलन का एक प्रमुख कारण है. पश्चिमी आहार में आमतौर पर यूपीएफ, मीठे पेय, वसा, परिष्कृत अनाज और प्रसंस्कृत स्नैक्स की मात्रा अधिक होती है. यूनिसेफ की बाल पोषण वैश्विक रिपोर्ट 2025 के अनुसार, 2005 से 2021 तक, पांच वर्ष से कम आयु के भारतीय बच्चों में अधिक वजन की दर में 127% की वृद्धि हुई है, जबकि किशोर मोटापे में 288% की वृद्धि हुई है. डॉक्टरों का कहना है कि माता-पिता और स्कूल इस प्रवृत्ति को रोकने में मदद कर सकते हैं. वे बच्चों को भरपूर मात्रा में साबुत अनाज, फल, सब्जियां और घर में पकाए गए पारंपरिक खाद्य पदार्थ देने की कोशिश करें. इससे जंक फूड व मीठे पेय पदार्थों का सेवन कम होगा. इसके अलावा, बच्चों को खेलकूद, आउटडोर गेम और प्रतिदिन कम से कम 60 मिनट एक्सरसाइज करने के लिए प्रेरित करना अच्छा होगा. यानी अगर माता-पिता, शिक्षक और नीति-निर्माता मिलकर स्वस्थ वातावरण बनाने का प्रयास करें, तो आने वाली पीढ़ी को ऐसी पुरानी बीमारियों से ग्रस्त होने से बचाया जा सकता है.
| बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज़ के आम लक्षण |
|---|
| ज़्यादा यूरीन होना |
| भूख अधिक लगना |
| अधिक प्यास लगना |
| चिड़चिड़ापन |
| मूड में उतार-चढ़ाव |
| बिना कोशिश किए वजन कम होना |
| सिरदर्द और मतली |
| थकान और कमजोरी |
| अचानक बिस्तर गीला करना |
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