काम पर हमेशा थकान या उत्साह की कमी? विशेषज्ञ से जानिए कार्यस्थल पर अवसाद के छिपे हुए लक्षण

Authored By: Galgotias Times Bureau

Published On: Tuesday, October 21, 2025

Updated On: Tuesday, October 21, 2025

Workplace Depression Signs संकेत जैसे थकान और उत्साह की कमी, विशेषज्ञ के अनुसार पहचानें लक्षण.

कार्यस्थल पर अवसाद केवल नौकरी का तनाव नहीं है; यह आपकी प्रेरणा, आत्मविश्वास और खुशी को प्रभावित करता है. शुरुआती संकेतों को पहचानना जरूरी है, ताकि समय रहते मदद ली जा सके. सही समझ और कदम उठाने से इस स्थिति से उबरना संभव है और मानसिक स्वास्थ्य मजबूत रखा जा सकता है.

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Updated On: Tuesday, October 21, 2025

Workplace Depression Signs: कार्यस्थल पर अवसाद एक ऐसा मौन संघर्ष है, जिसका सामना कई लोग करते हैं, लेकिन इस पर खुलकर बात नहीं करते. यह सिर्फ सोमवार से नफ़रत करने या काम से थकने की बात नहीं है, बल्कि एक गहरी मानसिक और भावनात्मक स्थिति है जो काम, रिश्तों और जीवन पर असर डालती है. लगातार बढ़ता तनाव समय के साथ उदासी, चिंता या निराशा में बदल सकता है. कॉर्पोरेट ट्रेनर और लीडरशिप कोच कृति शर्मा कहती हैं कि शुरुआती लक्षणों को पहचानना और कारणों को समझना ही सुधार की पहली सीढ़ी है. सही समर्थन और जागरूकता से कर्मचारी फिर से आत्मविश्वास और संतुलन पा सकते हैं.

कार्यस्थल पर अवसाद क्या है?

कार्यस्थल पर अवसाद सिर्फ कभी-कभार होने वाला तनाव नहीं है, बल्कि एक लगातार चलने वाली मानसिक और भावनात्मक थकान है. इसमें सामान्य काम भी भारी लगने लगते हैं. कई बार कर्मचारी खुद को अटका हुआ, अनदेखा या अलग-थलग महसूस करते हैं, जिससे वे धीरे-धीरे बर्नआउट का शिकार हो जाते हैं. अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (CDC) के अनुसार, जब काम की मांगें किसी व्यक्ति की क्षमताओं या जरूरतों से मेल नहीं खातीं, तो यह मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से हानिकारक हो सकता है.
कृति शर्मा बताती हैं कि रोजमर्रा का तनाव किसी प्रोजेक्ट या डेडलाइन पूरी होने के बाद खत्म हो जाता है, लेकिन कार्यस्थल पर अवसाद हफ्तों या महीनों तक बना रह सकता है, जिससे रोज का काम बोझ जैसा महसूस होने लगता है.

कार्यस्थल पर अवसाद के आम कारण

कार्यस्थल पर अवसाद कई कारणों से बढ़ सकता है या शुरू हो सकता है. कृति शर्मा के अनुसार, इसके कुछ प्रमुख कारण है. जैसे-भारी काम का बोझ और अवास्तविक समय-सीमा, प्रशंसा या समर्थन की कमी, कार्यस्थल पर बदमाशी या उत्पीड़,नौकरी की असुरक्षा,खराब कार्य-जीवन संतुलन, विकास या उन्नति के अवसरों की कमी
कठिन बॉस या विषाक्त कार्यसंस्कृति.अगर इन कारणों पर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो ये धीरे-धीरे आपके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं.

कार्यस्थल पर अवसाद के चेतावनी संकेत पहचानें

अगर कार्यस्थल पर अवसाद के शुरुआती लक्षणों को समय पर पहचान लिया जाए, तो इससे बड़ी राहत मिल सकती है. ऐसे कर्मचारी अक्सर कुछ सामान्य संकेत दिखाते हैं, जैसे- आराम करने के बाद भी थकान महसूस होना, ध्यान केंद्रित करने या निर्णय लेने में कठिनाई,बैठकों या सहकर्मियों से दूरी बनाना,बार-बार बीमार पड़ना या देर से आना,काम के प्रदर्शन में गिरावट,लगातार उदासी, निराशा या चिड़चिड़ापन,काम और शौक में रुचि खो देना.

सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार, मूड में बदलाव, सिरदर्द और पाचन संबंधी समस्याएँ नौकरी से जुड़े तनाव के शुरुआती संकेत हो सकते हैं. अगर इन पर ध्यान न दिया जाए, तो यह आगे चलकर उच्च रक्तचाप या हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है. इसलिए समय रहते इन लक्षणों को पहचानना और मदद लेना बहुत जरूरी है.

अगर कार्यस्थल पर तनाव का इलाज न किया जाए तो क्या होता है?

कार्यस्थल पर अवसाद या तनाव को नजरअंदाज करने से यह अपने आप नहीं जाता, बल्कि समय के साथ और बढ़ता जाता है. अगर इसका इलाज न किया जाए, तो यह चिंता, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप या नशे की लत जैसी गंभीर समस्याओं का रूप ले सकता है. इसका असर न सिर्फ व्यक्ति की सेहत पर, बल्कि उसकी उत्पादकता, टीमवर्क और ऑफिस के माहौल पर भी पड़ता है. कई बार कर्मचारी भावनात्मक रूप से थके या अलग-थलग महसूस करने लगते हैं.
कृति शर्मा के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य की लंबे समय तक अनदेखी पूरी तरह से बर्नआउट या गंभीर मामलों में आत्म-क्षति तक ले जा सकती है. इसलिए समय पर ध्यान देना और मदद लेना व्यक्ति और संस्था,दोनों के लिए जरूरी है.

कार्यस्थल पर अवसाद से कैसे निपटें और ठीक हों

कार्यस्थल पर अवसाद से उबरने की शुरुआत जागरूकता और छोटे-छोटे कदमों से होती है. कुछ आसान लेकिन प्रभावी तरीके ये हैं-
खुलकर बात करें: अपनी भावनाओं को किसी भरोसेमंद सहकर्मी, दोस्त या काउंसलर से साझा करें.

  • सीमाएँ तय करें: काम के घंटे तय रखें और उसके बाद खुद को आराम का समय दें.
  • ब्रेक लें:  बीच-बीच में डेस्क से उठें, थोड़ा टहलें या स्ट्रेच करें ताकि मन और शरीर दोनों तरोताजा रहें.
  • सक्रिय रहें:  नियमित व्यायाम करें- इससे एंडोर्फिन निकलता है और तनाव कम होता है.
  • खुद के प्रति दयालु रहें: – आत्म-आलोचना के बजाय खुद को सकारात्मक बातें कहें.
  • पेशेवर मदद लें:  जरूरत पड़ने पर एचआर, किसी थेरेपिस्ट या हेल्पलाइन से सहायता लेने में हिचकिचाएँ नहीं.
  • छोटे कदमों से शुरू करें:  धीरे-धीरे यही आपकी मानसिक सेहत को मजबूत बनाएंगे.

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