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जनगणना 2027 के लिए ₹11,718 करोड़ का बजट मंजूर, पहली बार डिजिटली होगा सेंसस
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Friday, December 12, 2025
Last Updated On: Friday, December 12, 2025
भारत 2027 में अपनी इतिहास की पहली डिजिटल जनगणना करने जा रहा है. सरकार ने सेंसस को पूरी तरह ऐप और वेब पोर्टल आधारित बनाने के लिए ₹11,718 करोड़ मंजूर किए हैं. इस बार हर घर का जियो-टैग होगा, डेटा रियल-टाइम अपलोड होगा और 1931 के बाद पहली बार सभी समुदायों की जाति से जुड़े आंकड़े भी जुटाए जाएंगे.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Friday, December 12, 2025
Census 2027: भारत की जनगणना अब नए दौर में प्रवेश कर रही है. साल 2027 में होने वाला सेंसस पूरी तरह डिजिटल होगा. पहली बार किसी भी जनगणना में न तो मोटी-मोटी रजिस्टर दिखेंगे, न कागज़ों का ढेर. गणना कर्मचारी मोबाइल ऐप के जरिए हर घर की जानकारी दर्ज करेंगे और लोग चाहें तो खुद भी वेब पोर्टल पर अपनी जानकारी अपलोड कर सकेंगे. सरकार ने इस बड़े बदलाव के लिए ₹11,718 करोड़ का बजट जारी कर दिया है. दो चरणों में होने वाली यह डिजिटल जनगणना न सिर्फ तेज होगी, बल्कि ज्यादा सटीक, पारदर्शी और रियल-टाइम मॉनिटरिंग वाली भी होगी. जियो-टैगिंग से लेकर जाति-आधारित डेटा तक 2027 की जनगणना कई नए अध्याय जोड़ने जा रही है, जो आने वाले वर्षों में नीतियों, फंड वितरण और लोकसभा सीटों के निर्धारण में अहम भूमिका निभाएगी.
मोबाइल ऐप से होगी जनगणना
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि जनगणना 2027 के लिए 11,718 करोड़ रुपये का बजट मंजूर हुआ है. यह जनगणना कई मामलों में पहले से अलग होगी. पहला चरण हाउस लिस्टिंग और हाउसिंग जनगणना का होगा, जो अप्रैल से सितंबर 2026 के बीच चलेगा. दूसरा चरण फरवरी 2027 में होगा, जब देश की आबादी की गिनती की जाएगी. सरकार का कहना है कि इस बार पूरा काम मोबाइल ऐप के जरिए किया जाएगा. लोग चाहें तो एक खास वेब पोर्टल पर खुद भी अपनी जानकारी भर सकेंगे. पूरा सिस्टम रियल-टाइम में Census Management and Monitoring System (CMMS) के जरिए मॉनिटर किया जाएगा.
कैसे बदलेगी जनगणना की प्रक्रिया
डिजिटल जनगणना के तहत हर बिल्डिंग का जियो-टैग किया जाएगा. मोबाइल ऐप में अंग्रेजी और हिंदी सहित 16 से ज्यादा भाषाओं के विकल्प मिलेंगे, ताकि अधिक से अधिक लोग आसानी से डेटा दे सकें. इस बार प्रवास यानी माइग्रेशन पर भी ज्यादा फोकस रहेगा. लोगों से पूछा जाएगा कि उनका जन्मस्थान कहां है, वे पहले कहां रहते थे, वहां से क्यों आए और मौजूदा जगह पर कब से रह रहे हैं. सबसे अहम बात यह है कि 1931 के बाद पहली बार सभी समुदायों की जाति से जुड़े आंकड़े भी इकट्ठा किए जाएंगे. अब यह डेटा सिर्फ SC/ST तक सीमित नहीं रहेगा.
डिजिटल जनगणना के फायदे
डिजिटल प्रक्रिया होने से डेटा कलेक्शन काफी तेज हो जाएगा. रियल-टाइम अपलोडिंग से शुरुआती आंकड़े 10 दिन के भीतर मिलने का अनुमान है. अंतिम रिपोर्ट भी 6 से 9 महीनों में तैयार हो जाएगी, जबकि पहले पेपर फॉर्म की वजह से यह काम कई साल चला जाता था. तेज और सटीक आंकड़े होने से 2029 की नई लोकसभा सीटों के निर्धारण, सरकारी फंड के वितरण और योजनाओं को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. ऐप में ऑटो-चेक, जियो-टैगिंग और सेल्फ-फिलिंग जैसे फीचर होने से गलतियों और छूटे हुए घरों की संख्या भी कम होगी.
क्या होंगी चुनौतियां?
भारत जैसा बड़ा और डिजिटल रूप से असमान देश होने के कारण चुनौतियां भी कम नहीं हैं. अभी भी देश की केवल करीब 65% आबादी ऑनलाइन है. पहाड़ी, जंगल और दूर-दराज के इलाकों में इंटरनेट कमजोर है. ऐसे क्षेत्रों में सही डेटा जुटाना मुश्किल हो सकता है. खतरा है कि गरीब, बुजुर्ग और हाशिये पर रहने वाले समुदायों की गिनती छूट सकती है. 30 लाख कर्मचारियों को ऐप चलाने की अच्छी ट्रेनिंग देनी होगी, क्योंकि इनमें बड़ी संख्या शिक्षकों की होती है. कई बुजुर्ग, ग्रामीण महिलाएं और प्रवासी मजदूर मोबाइल ऐप देखकर हिचकिचा सकते हैं.
डेटा सुरक्षा पर चिंता
इस बार जाति, माइग्रेशन और परिवार से जुड़ी संवेदनशील जानकारी मोबाइल नेटवर्क के जरिए भेजी जाएगी. ऐसे में साइबर सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी सबसे बड़ी चिंता है. सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों का डेटा पूरी तरह सुरक्षित रहे और किसी भी तरह का दुरुपयोग न हो.















