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पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल का 90 की उम्र में निधन: इंदिरा-राजीव के विश्वासपात्र नेता की शांत विदाई, PM सहित अन्य नेताओं ने जताया दुख
Authored By: Nishant Singh
Published On: Friday, December 12, 2025
Last Updated On: Friday, December 12, 2025
भारत की राजनीति में शांत स्वभाव और मर्यादा के प्रतीक रहे पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल का 90 वर्ष की उम्र में लातूर में निधन हो गया. इंदिरा और राजीव गांधी के सबसे भरोसेमंद नेताओं में शामिल पाटिल ने रक्षा मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और गृहमंत्री जैसे बड़े पद संभाले. 26/11 मुंबई हमले की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उनका इस्तीफा आज भी मिसाल माना जाता है. उनके निधन से एक युग का अंत हो गया.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Friday, December 12, 2025
Shivraj Patil: देश की राजनीति में सौम्यता और संतुलन का प्रतीक माने जाने वाले वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का शुक्रवार सुबह निधन हो गया. 90 वर्ष की उम्र में उन्होंने लातूर स्थित अपने निवास ‘देवघर’ में सुबह 6:30 बजे आखिरी सांस ली. वे पिछले कई दिनों से बीमार थे और घर पर ही उनका उपचार हो रहा था. उनके निधन की खबर के साथ ही राजनीतिक गलियारे में शोक की लहर फैल गई. शनिवार को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. उनके परिवार में बेटे शैलेश, बहू अर्चना और दो पोतियां हैं, जो उनके जीवन में भावनात्मक सहारा बने रहे.
इंदिरा और राजीव गांधी के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार
शिवराज पाटिल को कांग्रेस में उस पीढ़ी का नेता माना जाता था, जो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के सबसे भरोसेमंद साथियों में से एक रहे. उन्होंने 1980 के दशक में रक्षा मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका स्वभाव शांत, संयमी और नीति-आधारित था, यही वजह रही कि शीर्ष नेतृत्व हमेशा उन पर भरोसा करता था.
लातूर लोकसभा सीट से वे लगातार सात बार सांसद बने, जो उनके जनसंपर्क, लोकप्रियता और जमीन से जुड़े राजनीतिक व्यक्तित्व का प्रतीक है. अपनी हर जिम्मेदारी को वे गंभीरता और अनुशासन के साथ निभाते थे, जिसकी मिसाल आज की राजनीति में कम देखने को मिलती है.
लोकसभा के दसवें अध्यक्ष – मर्यादा का अनुपम उदाहरण
1991 से 1996 का दौर भारतीय संसदीय इतिहास में खास है, क्योंकि यह वह समय था जब शिवराज पाटिल लोकसभा के दसवें स्पीकर थे. उन्होंने सदन को केवल कानून बनाने की जगह के रूप में नहीं, बल्कि लोकतंत्र की असली आत्मा के रूप में देखा. उनकी भाषा हमेशा विनम्र रही, लेकिन फैसले दृढ़ और निष्पक्ष. उनकी अध्यक्षता में बहसों को दिशा मिली, अनुशासन कायम रहा, और सदन में सभी दलों को बराबर का अवसर मिला. उनकी शैली ने स्पीकर की गरिमा को नए मानक दिए और वे आज भी आदर्श स्पीकर के रूप में याद किए जाते हैं.
गृह मंत्रालय का कठिन दौर और 26/11 का काला अध्याय
2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद शिवराज पाटिल को गृहमंत्री की जिम्मेदारी मिली. यह वह समय था जब देश आतंकवाद, नक्सलवाद और आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से जूझ रहा था. पाटिल ने केंद्र-राज्य समन्वय, सुरक्षा ढांचे और खुफिया तंत्र को मजबूत बनाने पर जोर दिया, लेकिन उनका कार्यकाल 26/11 के हमलों से परिभाषित हो गया.
26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हिला दिया. इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को लेकर सरकार और विशेष रूप से गृह मंत्रालय को आलोचना का सामना करना पड़ा. पाटिल की व्यक्तिगत आलोचना भी हुई, जब हमलों के दौरान उनके कई बार कपड़े बदलने की बात चर्चा का विषय बनी. हालांकि उन्होंने कहा कि आलोचना नीतियों पर होनी चाहिए, कपड़ों पर नहीं, लेकिन नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया. आज की राजनीति में इस तरह नैतिक जिम्मेदारी लेकर पद छोड़ना दुर्लभ है, और यह उनके सिद्धांतों की दृढ़ता को दर्शाता है.
आत्मकथा का रहस्य – 26/11 पर गहरी चुप्पी
शिवराज पाटिल ने अपनी आत्मकथा ‘Odyssey of My Life’ में गृह मंत्रालय की नीतियों, आतंकवाद, केंद्र-राज्य संबंध और नक्सलवाद के अनेक पहलुओं पर विस्तार से लिखा. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने 26/11 मुंबई हमलों का कोई उल्लेख नहीं किया. इस चुप्पी ने राजनीतिक विश्लेषकों को कई सवालों पर सोचने को मजबूर किया. उनकी किताब में इस घटना का न होना आज भी एक दिलचस्प और अनुत्तरित रहस्य बना हुआ है.
विवादों का केंद्र – गीता और कुरान वाली टिप्पणी
शांत स्वभाव के बावजूद एक बयान ने शिवराज पाटिल को बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था. 2022 में मोहसिना किदवई की बायोग्राफी के विमोचन के दौरान उन्होंने कहा कि “जिहाद” केवल कुरान में ही नहीं, बल्कि गीता और ईसाई धर्म में भी युद्ध के रूप में उपस्थित है. उनका कहना था कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया और इसे जिहाद की अवधारणा से तुलना की जा सकती है. यह बयान राजनीतिक तूफान बन गया. धार्मिक मान्यताओं और शब्दों की संवेदनशीलता को देखते हुए यह टिप्पणी लंबे समय तक विवादों का हिस्सा रही.
राजनीतिक सफर – एक-एक पद पर चमकते हुए आगे बढ़ते रहे
12 अक्टूबर 1935 को जन्मे पाटिल की राजनीतिक शुरुआत 1966 में हुई, जब वे लातूर नगरपालिका के अध्यक्ष बने. इसके बाद वे दो बार विधायक चुने गए और 1977–79 में महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर और स्पीकर बने. उनका सफर यहीं नहीं रुका. वे राज्यसभा पहुंचे, फिर लोकसभा में लगातार चुने गए, केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए और अंततः संसद के सर्वोच्च पद लोकसभा अध्यक्ष पर भी पहुंचे. 2010 में उन्हें पंजाब का राज्यपाल और साथ ही चंडीगढ़ का प्रशासक नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने 2015 तक गरिमा और शांति के साथ अपनी सेवाएं दीं. यह करियर इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने लगभग हर संवैधानिक भूमिका को निभाया और उसे सम्मानित भी किया.
पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवराज पाटिल के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया और उनकी एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि पाटिल एक अनुभवी नेता थे, जिन्होंने MLA, MP, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और विधानसभा स्पीकर के रूप में देश की बड़ी सेवा की. उन्होंने कहा कि पाटिल समाज के लिए हमेशा कुछ न कुछ करने को तैयार रहते थे और हाल ही में उनकी उनसे मुलाकात भी हुई थी. पीएम ने उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं व्यक्त कीं और कहा कि देश को उनकी कमी हमेशा महसूस होगी.
सियासी गलियारों से उठती संवेदनाएं
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शिवराज पाटिल का निधन देश की संवैधानिक प्रक्रिया के लिए बहुत बड़ी क्षति है. उन्होंने अपने संदेश में कहा कि पाटिल ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में प्रतिष्ठित पदों पर रहते हुए देश की लोकतांत्रिक संरचना को मजबूती दी. कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि उन्होंने पाटिल के साथ काम किया था और उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में पाया. वहीं आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा कि कांग्रेस को इस निधन से अपूरणीय क्षति हुई है, क्योंकि पाटिल ने सार्वजनिक जीवन को वर्षों तक समृद्ध किया.
अंतिम वर्षों की शांति – परिवार के बीच सीमित लेकिन संतुलित जीवन
अपने अंतिम वर्षों में शिवराज पाटिल ने राजनीति से दूरी बना ली थी और शांत जीवन जी रहे थे. वे लातूर में परिवार के साथ रहते थे और कभी-कभार राजनीतिक मुलाकातों में शामिल होते थे. 2025 में वे प्रधानमंत्री मोदी से मिलने दिल्ली गए थे, जहां उनकी बहू अर्चना भी उनके साथ थीं. उनकी यह तस्वीर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में रही. हालांकि वे प्रकाश से दूर रहे, लेकिन कांग्रेस में वरिष्ठता और सम्मान के प्रतीक बने रहे.
एक अध्याय समाप्त – लेकिन यादें और मूल्य अमर रहेंगे
शिवराज पाटिल का निधन केवल एक नेता की विदाई नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति के एक पूरे युग का अंत है. एक ऐसा युग जो सौम्यता, संतुलन, मर्यादा और नैतिकता पर आधारित था. आज जब राजनीति में शोरगुल अधिक है, ऐसे में पाटिल की शांत शैली, संवैधानिक समझ और नैतिकता की मिसाल और भी मूल्यवान लगती है. उनके योगदान को भारतीय लोकतंत्र हमेशा याद रखेगा.
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