जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में स्वीकार, तीन सदस्यीय समिति गठित
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Tuesday, August 12, 2025
Last Updated On: Tuesday, August 12, 2025
लोकसभा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है. 146 लोकसभा और 63 राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षर वाले इस प्रस्ताव पर जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन हुआ है. मामला मार्च 2025 में उनके सरकारी आवास पर आग लगने और जली हुई नकदी मिलने से जुड़ा है.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Tuesday, August 12, 2025
Justice Yashwant Varma impeachment: देश की न्यायपालिका में एक ऐतिहासिक और दुर्लभ घटनाक्रम दर्ज हुआ है. मंगलवार को लोकसभा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव औपचारिक रूप से स्वीकार करते हुए पढ़कर सुनाया. इस प्रस्ताव पर 146 लोकसभा और 63 राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षर हैं. यह कार्रवाई मार्च 2025 की उस विवादित घटना से जुड़ी है, जब जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगी और वहां से जली हुई नकदी के बंडल बरामद हुए.
आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है, जो जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 124(4), 217 और 218 के तहत उन्हें पद से हटाने की कार्यवाही का रास्ता साफ हो गया है.
146 लोकसभा और 63 राज्यसभा सदस्यों ने किए हस्ताक्षर
- लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में बताया कि उन्हें 31 जुलाई 2025 को यह प्रस्ताव प्राप्त हुआ था, जिस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता सहित कुल 146 लोकसभा सदस्यों और 63 राज्यसभा सदस्यों के हस्ताक्षर हैं.
- यह मामला मार्च 2025 में सामने आए उस विवाद से जुड़ा है, जब दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर आग लगने की घटना के दौरान जले हुए नोटों के बंडल बरामद हुए थे. हालांकि, उस समय जस्टिस वर्मा घर पर मौजूद नहीं थे, लेकिन बाद में तीन सदस्यीय आंतरिक न्यायिक जांच ने निष्कर्ष निकाला कि वे इस नकदी पर ‘नियंत्रण’ रखते थे. इस रिपोर्ट के आधार पर भारत के मुख्य न्यायाधीश ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी.
जांच समिति का गठन
लोकसभा में प्रस्ताव पढ़ते हुए स्पीकर ओम बिरला ने बताया कि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 और संबंधित नियमों के तहत आरोपों की पड़ताल के लिए एक वैधानिक समिति बनाई गई है. इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मनिंदर मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वी.वी. आचार्य शामिल हैं. समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट पेश करेगी. रिपोर्ट आने तक यह प्रस्ताव लंबित रहेगा.
जस्टिस वर्मा ने इससे पहले जांच रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. उन्होंने दलील दी थी कि जांच प्रक्रिया में खामियां हैं और यह संवैधानिक दायरे से बाहर है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह उनकी याचिका खारिज कर दी. अदालत ने जांच प्रक्रिया को पारदर्शी और संवैधानिक करार दिया, साथ ही इस बात पर आपत्ति जताई कि जस्टिस वर्मा ने पहले जांच में हिस्सा लिया और बाद में इसकी वैधता पर सवाल उठाए.
न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया
अगर जांच समिति आरोपों को सही ठहराती है, तो महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पास करना होगा. इसका मतलब है उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई मत, और कुल सदस्यों का भी बहुमत होना जरूरी है. इसके बाद ही प्रस्ताव राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा.
स्वतंत्र भारत में यह सिर्फ तीसरी बार है, जब किसी कार्यरत न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई है.
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