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मनरेगा का नया नाम होगा ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’, जानें क्या-क्या किया गया है बदलाव?
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Saturday, December 13, 2025
Last Updated On: Saturday, December 13, 2025
ग्रामीण भारत के लिए सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. मनरेगा का नाम बदलकर अब ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ किया जाएगा और रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव रखा गया है. कैबिनेट के इस निर्णय से लाखों ग्रामीण परिवारों की आय और रोजगार सुरक्षा मजबूत होगी.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Saturday, December 13, 2025
New Name Of MANREGA ग्रामीण रोजगार की रीढ़ मानी जाने वाली मनरेगा योजना अब नए नाम और नए दायरे के साथ आगे बढ़ने जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ (PBNREGA) रखने का फैसला किया गया है. इसके साथ ही योजना के तहत मिलने वाले रोजगार की गारंटी को 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन करने का अहम निर्णय लिया गया है. यह बदलाव संसद की मंजूरी के बाद लागू होंगे. सरकार का मानना है कि इससे ग्रामीण इलाकों में रहने वाले गरीब और जरूरतमंद परिवारों को न सिर्फ ज्यादा दिन काम मिलेगा, बल्कि उनकी सालाना आय में भी सीधा इजाफा होगा. आवेदन प्रक्रिया पहले की तरह सरल रखी जाएगी, ताकि लाभार्थियों को किसी तरह की अतिरिक्त परेशानी न झेलनी पड़े.
काम के दिनों में 25% की बढ़ोतरी
इस बदलाव को मनरेगा से जुड़ी सबसे बड़ी राहत माना जा रहा है. नए नियम के तहत अब मनरेगा में 100 दिनों की जगह 125 दिन काम की गारंटी मिलेगी. यानी काम के दिनों में सीधे 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी. यह फैसला लाखों ग्रामीण मजदूरों के लिए राहत की खबर है. काफी समय से काम के दिन बढ़ाने की मांग की जा रही थी. अब सरकार ने इस पर ठोस कदम उठाया है. मनरेगा कानून की धारा 3(1) में प्रति ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिन काम देने का प्रावधान है. लेकिन व्यवहार में यही सीमा अधिकतम बन जाती थी. जरूरत होने के बावजूद मजदूरों को इससे ज्यादा काम नहीं मिल पाता था. नए बदलाव से यह समस्या काफी हद तक दूर होने की उम्मीद है.
आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे कई राज्यों ने पहले ही काम के दिन बढ़ाने की मांग रखी थी. कानून के तहत राज्य 100 दिनों से ज्यादा काम दे सकते थे, लेकिन उसका खर्च उन्हें खुद उठाना पड़ता था. इसी वजह से ज्यादातर राज्य ऐसा नहीं कर पाते थे. अब 125 दिन का खर्च सीधे केंद्र सरकार वहन करेगी. इससे राज्यों पर भी दबाव कम होगा और मजदूरों को ज्यादा काम मिल सकेगा.
औसतन कम काम, लेकिन मांग लगातार ज्यादा
मनरेगा में एक अजीब स्थिति हमेशा बनी रही है. कागजों में 100 दिन काम की गारंटी है, लेकिन हकीकत कुछ और है. वित्त वर्ष 2024-25 में प्रति परिवार औसतन सिर्फ करीब 50 दिन का ही काम मिल पाया. यानी आधी गारंटी भी पूरी नहीं हो सकी. पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में 100 दिन का काम पूरा करने वाले परिवारों की संख्या 40.70 लाख रही थी. वहीं चालू वित्त वर्ष 2025-26 में यह संख्या घटकर सिर्फ 6.74 लाख रह गई है. यह आंकड़े साफ बताते हैं कि मांग तो है, लेकिन रोजगार उतना नहीं मिल पा रहा.
मनरेगा योजना ने 2005 से अब तक 4,872.16 करोड़ व्यक्ति-दिवस का सृजन किया है. इस दौरान कुल खर्च 11,74,692.69 करोड़ रुपये से ज्यादा रहा है. कोविड महामारी के दौरान, खासकर 2020-21 में, इस योजना की अहमियत सबसे ज्यादा दिखी. उस समय रिकॉर्ड 7.55 करोड़ ग्रामीण परिवारों ने मनरेगा का सहारा लिया था. यह योजना प्रवासी मजदूरों के लिए सुरक्षा कवच बनकर सामने आई थी. हालांकि, पिछले चार सालों में काम पाने वाले परिवारों की संख्या धीरे-धीरे घटती गई है.
खास हालात में पहले से मिलती रही है राहत
यह भी जरूरी है कि मनरेगा में कुछ खास परिस्थितियों में पहले से अतिरिक्त काम का प्रावधान रहा है. वन क्षेत्रों में रहने वाले प्रत्येक अनुसूचित जनजाति परिवार को 150 दिन तक काम मिल सकता है. इसके अलावा, सूखा या किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में भी 50 दिन का अतिरिक्त रोजगार देने का नियम है. अब सामान्य ग्रामीण परिवारों के लिए 125 दिन की गारंटी इस योजना को और मजबूत बनाएगी. इससे रोजगार के साथ-साथ ग्रामीण आय में भी सुधार की उम्मीद है.
आगे की तैयारी और बड़े फंड की जरूरत
यह बदलाव ऐसे वक्त में किया गया है, जब सरकार मनरेगा को लंबे समय तक जारी रखने की तैयारी में जुटी है. 1 अप्रैल 2026 से लागू होने वाले सोलहवें वित्त आयोग के पुरस्कारों में भी इस योजना को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. ग्रामीण विकास मंत्रालय ने व्यय वित्त समिति को एक प्रस्ताव भेजा है. इसमें 2029-30 तक अगले पांच साल के लिए 5.23 लाख करोड़ रुपये के बड़े बजट की मांग की गई है. यह संकेत है कि सरकार मनरेगा को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में बनाए रखना चाहती है. आने वाले समय में इस योजना की भूमिका और भी अहम हो सकती है.
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