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सेहत से लेकर पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट यानी ई-कचरा, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक
सेहत से लेकर पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट यानी ई-कचरा, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Saturday, January 4, 2025
Updated On: Wednesday, January 15, 2025
इलेक्ट्रॉनिक कचरा (Electronic Waste) अर्थात् ई-वेस्ट पूरी दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक विश्व भर में करीब 74 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न होगा। जहरीले रसायनों का बड़ा स्त्रोत होने के कारण यह मानव एवं पर्यावरण दोनों के लिए काफी खतरनाक है। इसकी वजह से लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। भारत में ऐसे कचरे की डंपिंग एक बड़ी समस्या बन चुकी है।
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Wednesday, January 15, 2025
हाइलाइट्स
- 95 फीसदी ई-कचरा गैर-संगठित क्षेत्र द्वारा होता है मैनेज
- ई-कचरे में मौजूद होते हैं 17 बहुमूल्य धातु, जिन्हें सही तरीके से रीसाइकल कर निकाला जा सकता है। ये धातु हैं कॉपर, एल्यूमिनियम, आयरन, गोल्ड, सिल्वर एवं निकेल।
- वर्तमान में सिर्फ 15 से 17 फीसदी ई-वेस्ट की ही होती है औपचारिक रीसाइक्लिंग।
भारत में हर साल भारी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (Electronic Waste) निकलता है। वजह है आईटी एवं संचार क्षेत्र का तेज विकास। इससे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग कई गुणा बढ़ चुका है। लोगों की बढ़ती क्रय शक्ति एवं प्रयोज्य आय में बढ़ोत्तरी भी एक प्रमुख कारण है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। इन उत्पादों का तीव्र गति से उन्नयन उपभोक्ताओं को पुराने इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को जल्दी से जल्दी त्यागने के लिए विवश कर रहा है। आधुनिक तकनीक के दौर में, आए दिन नई तकनीक ईजाद हो रही है। बाजार में नए उपकरण एवं उत्पाद आ रहे हैं। पुरानी चीजों के खराब न होने के बावजूद लोग उनका उपयोग बंद कर देते हैं और नया प्रोडक्ट ले आते हैं। ग्राहकों के इस व्यवहार के पीछे बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बड़ी भूमिका है। अपने लुभावने विज्ञापनों के जरिये वे ग्राहकों को तमाम इलेक्ट्रॉनिक व डिजिटल डिवाइस खरीदने के लिए उत्प्रेरित करती हैं। कोई यह जानने एवं समझने को तैयार नहीं है कि इससे कैसे ई-कचरे की समस्या दिनों दिन विकराल होती जा रही है।
तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है भारत
अमेरिका एवं चीन के बाद भारत ई-कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन चुका है। देश में जैसे-जैसे डिजिटाइजेशन बढ़ रहा है, उसी अनुपात में ई-कचरा भी लगातार बढ़ रहा है। जानकारों के अनुसार, इस कचरे का 95 फीसदी से अधिक निष्पादन अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा होता है, जो समस्या को और गंभीर बनाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, वर्ष 2021-22 में भारत में करीब 1.71 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ, जबकि दुनिया भर में 59.40 मिलियन मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा हुआ। अगर केपीएमजी एवं एसोचैम के एक अध्ययन पर ध्यान दें, तो देश में लगभग 70 फीसदी ई-कचरे के लिए कंप्यूटर या उससे जुड़े उपकरण जिम्मेदार हैं। इसके बाद, फोन व दूरसंचार (12%), विद्युत उपकरण (7%) और चिकित्सा उपकरण (8%) आते हैं। यही नहीं, सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां एवं प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां भी मिलकर लगभग 75% से अधिक इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न करती हैं। शहरों की बात करें, तो सबसे अधिक ई-कचरा मुंबई से पैदा होता है। फिर, दिल्ली, बेंगलुरु एवं चेन्नई का नंबर आता है।
इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ने के कारण
इलेक्ट्रॉनिक कचरा लगातार बढ़ रहा है। इसके पीछे के कारकों को टटोलते हैं, तो कई बातें सामने आती हैं। सबसे बड़ा कारण देश की बढ़ती जनसंख्या को मान सकते हैं। आज अधिकांश लोग इलेक्ट्रॉनिक चीजों का पुन: उपयोग करने के बजाय नए उपकरण खरीदना चाहते हैं। इससे ई-वेस्ट की बढ़ोत्तरी ही होती है। इसके अलावा, तकनीकी विकास ई-कचरे के उत्पादन का अहम कारण है। आंकड़े गवाही देते हैं कि इस समय दुनिया में एक अरब से भी ज्यादा पर्सनल कंप्यूटर हैं। विकसित देशों में इनका औसत जीवनकाल सिर्फ 2 वर्ष का होता है। अमेरिका में ही अकेले ऐसे 300 मिलियन से अधिक कंप्यूटर पड़े हैं। यानी विकसित देशों के अलावा विकासशील देशों में भी तकनीकी उन्नति ई-कचरे के बढ़ने का प्रमुख कारण है।
सेहत के लिए खतरनाक
गांव से लेकर शहरों में ट्यूबलाइट, बल्ब, सीएफएल जैसी चीजें आमतौर पर इस्तेमाल की जाती हैं। जब ये उपकरण बेकार हो जाते हैं, तो उन्हें यूं ही फेंक दिया जाता है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि उनमें और अन्य प्रकार के ई-कचरे में पारे (मरकरी), लेड, बेरियम, लीथियम, कैडमियम, क्रोमियम जैसे विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जो हवा, पानी, मिट्टी में मिलकर पूरे पर्यावरण एवं मानव दोनों को प्रभावित कर सकते हैं। यूं कहें कि पर्यावरण पर ई-कचरे के कुछ प्रमुख प्रभावों में भूजल प्रदूषण, मिट्टी का अम्लीकरण, प्लास्टिक एवं अन्य अवशेषों को जलाने के कारण वायु प्रदूषण शामिल हैं। किसी लैंडफिल में जब ई-वेस्ट को डंप किया जाता है, तो वह मिट्टी एवं भूजल दोनों को दूषित करता है।
यह फिर खाद्य आपूर्ति प्रणालियों एवं जल स्त्रोतों में प्रदूषकों के जोखिम को बढ़ाता है। क्योंकि ये रसायन बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं यानी वे लंबे समय तक पर्यावरण में रहते हैं। इसलिए अगर इनका सुरक्षित तरीके से निस्तारण न किया जाए, तो ये तमाम प्रकार की बीमारियों को जन्म दे सकते हैं। लोगों के मस्तिष्क, हृदय, यकृत, गुर्दे एवं कंकाल प्रणाली तक को नुकसान पहुंचा सकते हैं। विकलांग बच्चे पैदा होने की आशंका रहती है। श्वसन संबंधी समस्याएं, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर तक हो सकता है।
कैसे करें ई-कचरे पर नियंत्रण ?
भारत में ई-कचरे का पुनर्चक्रण और इसका बेहतर प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि यहां जागरूकता की कमी, सुरक्षा को लेकर असमंजस एवं रीसाइक्लिंग पर आने वाला खर्च काफी ज्यादा है। सरकार अपने स्तर से प्रयास कर रही है। लोगों को कचरे के नैतिक एवं सुरक्षित निपटान के बारे में जागरूक किया जाता है। लेकिन उसके अपेक्षित परिणाम अब भी आने बाकी हैं। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में ई-कचरा प्रबंधन नियम बनाया गया था, जो उत्पादक, उपभोक्ता, कचरा संग्रहणकर्ता सभी पर लागू होता है। वर्ष 2022 में इसमें कुछ अन्य जरूरी संशोधन किए गए और टैबलेट्स, जीपीएस डिवाइस, मॉडेम, इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज यूनिट, सोलर फोटोवोल्टेक सेल्स, मॉड्यूल्स, एयर प्यूरीफायर्स, लीजर एवं स्पोर्ट्स एपेरेटस, मेडिकल डिवाइसेज, लैब इंस्ट्रूमेंट्स एवं अन्य डिजिटल डिवाइसेज को अनुसूची-1 में शामिल किया गया। निर्माताओं के लिए भी कुछ सख्त नियम बनाए गए हैंं। अगर वह उनका पालन नहीं करते हैं, तो उनके लिए सजा का भी प्रावधान है। जानकारों का कहना है कि ई-कचरे से निपटान का एक कारगर तरीका ये है कि लोग इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के दान को बढ़ावा दें।
इससे किसी भी उपकरण का पुन: प्रयोग किया जा सकता है। मसलन, कोरोना काल में सबने देखा कि कैसे गरीब एवं ग्रामीण बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए उन्हें पुराने स्मार्टफोन उपलब्ध कराए गए। स्वयंसेवी संगठनों एवं नागरिक समाज के प्रयासों से यह संभव हो सका। क्योंकि ऐसा हो सकता है कि आप जो चीज उपयोग नहीं कर रहे हैं, वह किसी औऱ के लिए बहुत महत्वपूर्ण एवं फायदेमंद हो। हमारे देश में कई एनजीओ हैं, जो पुराने कंप्यूटर एवं गैजेट्स को उन लोगों तक पहुंचाते हैं, जो उन्हें वहन नहीं कर सकते हैं। ऐसे वेबसाइट्स हैं, जहां से पुरानी चीजों की खरीद-बिक्री होती है। इन सबके अलावा, एचसीएल, विप्रो, नोकिया, एसर, मोटोरोला, एलजी, डेल, लेनोवो, जेनिथ जैसी कई कंपनियां हैं जो अपनी कंपनी के ई-कचरे को वापस करने का मौका ग्राहकों को देती हैं। ई-कचरे की वापसी की नीति को उनकी वेबसाइट पर जाकर देखा जा सकता है। वहां हेल्पलाइन नंबर भी दिए होते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी देश के अमूमन हर राज्य में ऐसी एजेंसियां स्थापित की हैं, जो सुरक्षित तरीके से ई-कचरे का निपटान करती हैं।
क्या होता है ई-कचरा ?
इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट उन इलेक्ट्रॉनिक गुड्स को संदर्भित करते हैं, जिनका उपयोग हम अपनी सुविधा के लिए करते हैं, लेकिन खराब होने के कारण उनका उपयोग बंद कर देते हैं। जैसे, कंप्यूटर, लैपटॉप, टीवी, वॉशिंग मशीन, फ्रिज, कैमरे, मोबाइल फोन आदि। प्रौद्योगिकी में प्रगति होने के कारण जब उपकरण पुराने अथवा खराब हो जाते हैं, तो लोग नए उत्पाद ले आते हैं। ई-कचरे के कई स्त्रोत हैं, जिन्हें मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है- वाइट गुड्स, ब्राउन गुड्स एवं ग्रे गुड्स। घर में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वाइट गुड की श्रेणी में आते हैं, जबकि टीवी, कैमरा, वीसीआर आदि को ब्राउन गुड्स कहा जाता है।
ई-कचरा प्रबंधन नियम-2022
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अधीन ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 (ई-वेस्ट मैनेजमेंट नियम 2022) को अधिसूचित किया है। नया नियम एक अप्रैल 2023 से लागू हुआ है।
- नए नियम के तहत ई-अपशिष्ट श्रेणी में आने वाली वस्तुओं की संख्या 21 से बढ़ाकर 106 कर दी गई है।
- ई-कचरा प्रबंधन नियम विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण के लिए खतरनाक पदार्थों के उपयोग को प्रतिबंधित करता है। इसके तहत, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माताओं को सीसा, पारा, कैडमियम एवं अन्य घातक वस्तुओं का उपयोग न करने की हिदायत दी गई है, जो पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- नियमों के उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया है।
- विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (ईपीआर) नियम के तहत सभी निर्माताओं, उत्पादकों एवं रीसाइक्लर्स को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की बिक्री
- देश में हर साल 17 मिलियन टीवी सेट की होती है बिक्री
- सालाना करीब 148 मिलियन स्मार्टफोन हैं बिकते
- भारत में 14 मिलियन रेफ्रिजिरेटर की हर साल होती है बिक्री
- 19 मिलियन ऑडियो डिवाइस की बिक्री
- हर वर्ष करीब 6.5 मिलियन वॉशिंग मशीन बेचे जाते हैं।