‘Ghost of the Mountains’ : कौन हैं ‘पहाड़ों के भूत’, जिन्हें कैमरे में कैद करने दुनिया भर के वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स पहुंचे लेह

‘Ghost of the Mountains’ : कौन हैं ‘पहाड़ों के भूत’, जिन्हें कैमरे में कैद करने दुनिया भर के वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स पहुंचे लेह

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Tuesday, February 18, 2025

Updated On: Tuesday, February 18, 2025

‘पहाड़ों के भूत’ हिम तेंदुए को कैमरे में कैद करने पहुंचे फोटोग्राफर्स
‘पहाड़ों के भूत’ हिम तेंदुए को कैमरे में कैद करने पहुंचे फोटोग्राफर्स

लेह का तापमान इन दिनों -10 डिग्री के आसपास चल रहा है. बर्फीली, ठंडी हवाएं भी बह रही हैं. लेकिन लेह से करीब 60 किलोमीटर दूर लिकर गांव के पास, सड़क किनारे पहाड़ी पर दुनिया भर से आए वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स डेरा डाले हुए हैं. आप पूछेंगे क्यों? दरअसल, दिसंबर से फरवरी के बीच जब ऊपर पहाड़ों पर ज्यादा बर्फबारी होती है, तो ‘पहाड़ों के भूत’ (Ghost of the mountains) कहे जाने वाले हिम तेंदुए (SNOW LEOPARD) शिकार के लिए नीचे आते हैं. इसलिए हिम तेंदुओं को अपने कैमरे में कैद करने के लिए विश्व भर के फोटोग्राफर्स लेह पहुंचे हुए हैं. आखिर क्यों इतने खास हैं हिम तेंदुए, आइए जानते हैं...

Authored By: अंशु सिंह

Updated On: Tuesday, February 18, 2025

‘Ghost of the Mountains’ : बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों पर भारी भरकम कैमरा लेकर चलना आसान नहीं है. ये काफी खतरनाक भी साबित हो सकता है. लेकिन जब सवाल हिम तेंदुए को कैमरे में कैद करने का हो, तो फोटोग्राफर्स ऐसे तमाम जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं. वे ऊंचाइयों की परवाह किए बगैर मायावी हिम तेंदुए को कैमरे में कैद करने की कोशिश करते हैं. जैसे इन दिनों लेह से करीब 60 किलोमीटर दूर लिकर गांव के पास पहाड़ी पर दुनिया भर से आए वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स का जमावड़ा लगा हुआ है. कहने को तो तेंदुए उनसे काफी दूर हैं. उन्हें आंखों से देखना तक मुश्किल है. लेकिन कैमरे के जूम लेंस में उनकी सारी गतिविधियों को कैद करने में लगे हैं फोटोग्राफर्स.

हिम तेंदुओं को देखने के लिए होते हैं ट्रेक एवं ट्रेल

लद्दाख अपने लुभावने एवं ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं के साथ-साथ अनोखे वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध रहा है. उनमें मायावी एवं एकांतप्रिय हिम तेंदुए सबसे खास हैं, जो शुष्क, खड़ी चट्टानों एवं बंजर पहाड़ी क्षेत्रों में रहना पसंद करते हैं. लद्दाख उनका न सिर्फ एक आदर्श निवास स्थान है, बल्कि यहां की विरल वनस्पति और कठोर सर्दियां इस क्षेत्र में शिकार करने की हिम तेदुओं की क्षमता को बढ़ाती हैं. आमतौर पर हिम तेंदुओं को देखना आसान नहीं है. इसलिए हिम तेंदुआ ट्रेक का आयोजन किया जाता है. विशेषज्ञों की टीम इस ट्रेक का नेतृत्व करती है. स्नो लेपर्ड ट्रेल पर आने वाले पर्यटकों को इन रहस्यमयी जीवों को देखने का दुर्लभ अवसर मिलता है. बताते हैं कि दिसंबर से मार्च के महीनों में लद्दाख में हिम तेंदुओं को देखने का सबसे अच्छा समय है. इस समय ये तेंदुए शिकार की तलाश में कम ऊंचाई पर उतरती हैं और देश-विदेश के फोटोग्राफर उन्हें अपने कैमरे में कैद कर लेते हैं.

दहाड़ते नहीं, फुफकारते हैं स्नो लेपर्ड

हिम तेंदुए अमूमन स्लेटी एवं सफेद फर वाले स्तनधारी वन्यजीव हैं, जो एक विलुप्त प्राय प्रजाति है. ये करीब 1.4 मीटर लंबे होते हैं और इनकी पूंछ 90 से 100 सेंटीमीटर तक होती है और उसमें धारियां बनी होती हैं. स्नो लेपर्ड के पंजे भी काफी बड़े होते हैं, जो बर्फ में स्नोशू का काम करते हैं. बड़े पंजों के कारण वे बर्फ में बिना धंसे, चल पाते हैं. हिम तेंदुए के गोल एवं छोटे कान ऊर्जा के ह्रास को कम करते हैं. वहीं, इसकी चौड़ी एवं छोटी नासिका ठंडी हवा को फेफड़ों तक पहुंचने से पहले गर्म कर देती है. इसके अलावा, हिम तेंदुए का मुलायम एवं घना फर उसे कड़ाके की ठंड में गर्म रखता है. बाकी बड़ी बिल्लियों की तरह हिम तेंदुओं के गले की संरचना अलग होती है. वे दहाड़ नहीं सकते हैं, बल्कि फुफकारने की ध्वनि निकालते हैं. इसे ‘चफ’ कहा जाता है.

भारत के कुल 718 हिम तेंदुओं में सबसे ज्यादा संख्या लद्दाख में

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी ‘स्टेटस ऑफ स्नो लेपर्ड इन इंडिया 2023’ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्नो लेपर्ड 5 हिमालयी राज्यों के 100,146 किलोमीटर बर्फीले क्षेत्रों में फैले हुए हैं. इनकी कुल संख्या 718 है. इनमें सबसे ज्यादा हिम तेंदुए लद्दाख में पाए जाते हैं. यहां इनकी कुल आबादी 477 है. इसके अलावा, उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21 और जम्मू-कश्मीर में कुल 9 हिम तेंदुए हैं. सबसे ज्यादा आबादी लद्दाख में पायी जाती है. यहां की रुंबक घाटी में इनके दिखने की संभावना काफी अधिक रहती है. इसके साथ ही जांस्कर घाटी में भी ये देखे जा सकते हैं. सर्दियों में जब पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता है, तब हिम तेंदुए कम ऊंचाई पर उतर आते हैं. इसके अलावा, लद्दाख के हेमिस नेशनल पार्क, उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क, कंचनजंगा नेशनल पार्क एवं ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क जैसे संरक्षित क्षेत्रों में हिम तेंदुए पाए जाते हैं. उत्तराखंड में चमोली के विश्व धरोहर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व स्नो लेपर्ड का निवास स्थान है.

आइयूसीएन की संकटग्रस्त सूची में शामिल हैं हिम तेंदुए

भारत के अलावा, हिम तेंदुए अफगानिस्तान, भूटान, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, तजाकिस्तान एवं उजबेकिस्तान में भी पाए जाते हैं. वर्ल्ड वाइड फंड ने हिम तेंदुओं को असुरक्षित प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया है. आइयूसीएन (IUCN) की रेड लिस्ट में भी इसे एक संकटग्रस्त जीव के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, क्योंकि दुनिया भर में इनकी कुल अनुमानित आबादी दस हजार से भी कम है. इतना ही नहीं, अनुमान है कि वर्ष 2040 तक हिम तेंदुए की संख्या में 10 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है.

About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
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