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International Women’s Day : मोटे अनाज की खेती से स्वावलंबन की राह पर अग्रसर महिलाएं, समाज के लिए बनीं प्रेरणा
International Women’s Day : मोटे अनाज की खेती से स्वावलंबन की राह पर अग्रसर महिलाएं, समाज के लिए बनीं प्रेरणा
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Thursday, March 6, 2025
Updated On: Friday, March 7, 2025
International Women’s Day : सेहत है, तो जीवन है. यही कारण है कि देश की महिला किसान भी अब प्राकृतिक खेती के साथ मोटे अनाज के उत्पादन से जुड़ गई हैं. हिमाचल प्रदेश के मंडी से लेकर धर्मशाला के कांगड़ा तक महिलाएं मोटे अनाज की खेती से स्वावलंबन की नई कहानी लिख रही हैं. स्वयं के साथ अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनने का राह दिखा रही हैं.
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Friday, March 7, 2025
International Womens Day: हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेतो को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार ने साल 2018 में प्राकृतिक कृषि खुशहाल किसान योजना की शुरुआत की थी. आंकड़ों की मानें, तो करीब 1.68 लाख किसानों ने इस तकनीक को अपनाया है. इनमें 90 हजार महिला किसान हैं. प्राकृतिक खेती से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है. आजीविका का साधन मिलने से परिवार की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आया है. सोलन जिले के कोटि देवरा कि पिंकी देवी पिछले चार सालों से प्राकृतिक खेती कर रही हैं. वे पशुधन के अलावा मिलेट्स की खेती करती हैं और मिलेट्स आधारित खाद्य उत्पाद बनाती हैं.
स्वयं सहायता समूह बनी महिलाओं की मददगार
धर्मशाला के किसान परिवार से आने वाली लक्ष्मी देवी की आजीविका मुख्यतः कृषि पर ही निर्भर थी. ऐसे में उन्होंने परिवार की स्थिति में सुधार लाने का फैसला लिया. लक्ष्मी ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत आकांक्षा स्वयं सहायता समूह के सहयोग से व्यावसायिक कौशल सीखे और रागी व सूजी के मोमोज बनाने का प्रशिक्षण लिया. रागी और सूजी के मोमोज बनाकर उन्हें न केवल अच्छा बाजार मिला, बल्कि लोगों ने भी इसे बेहतर विकल्प के तौर पर अपनाया. वे बताती हैं, ‘मैंने धर्मशाला में जिला प्रशासन की मदद से ‘हिम इरा’ शॉप का संचालन भी शुरू किया है, जहां पर अपने उत्पादों सहित विभिन्न स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों की बिक्री होती है.’ सरकार की योजनाओं और जिला प्रशासन के सहयोग से आज वे एक सम्मानपूर्वक जीवन जी रही हैं और लखपति बन चुकी हैं.
मिलेट समेत अन्य मोटे अनाज की खेती कर रहीं परवीन
लक्ष्मी देवी की तरह ही बैजनाथ की परवीन कुमारी की कहानी भी है, जिन्होंने बाजरा, रागी, ज्वार जैसे मोटे अनाज की खेती से अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया है. कृषक परिवार से संबंध रखने वाली परवीन कुमारी का कहना है,‘पारंपरिक कृषि कार्यों से उनके परिवार के पास आय के बेहद सीमित साधन थे. तब उन्होंने वैभव लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जुड़कर मिलेट्स (बाजरा, रागी, ज्वार) जैसे कृषि उत्पादों पर काम करना शुरू किया. इससे उन्हें जहां पौष्टिक कृषि उत्पादों पर काम करने का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ. वहीं उत्पादों की बिक्री और विपणन में भी सहायता मिली.’ परवीन कुमारी अब 18 से 20 हजार प्रति माह कमा रही हैं. साथ ही अन्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा भी दे रही हैं.
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तुलसी आधारित उत्पादों के निर्माण में जुटीं आशा
अभिलाषा स्वयं सहायता समूह से जुड़ी पद्दर की आशा देवी भी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत तुलसी आधारित उत्पादों के निर्माण में जुटी हैं. वे तुलसी अर्क, तुलसी चाय और तुलसी साबुन बनाकर अच्छी कमाई कर रही हैं. बकौल आशा देवी, ‘मैंने स्वयं सहायता समूह से मिलने वाली मदद से बैंक लोन लेकर उपयोगी मशीनें खरीदीं. अपने काम को और अधिक व्यवस्थित और उत्पादक बनाया. तुलसी उत्पादों की बिक्री से महीने में 15 से 20 हजार रूपये कमा लेती हैं. हमारे उत्पादों की मांग बाजार में लगातार बढ़ रही है.’
जिले भर में खोले जा रहे हिम ईरा शॉप्स
धर्मशाला के उपायुक्त हेमराज बैरवा की मानें, तो स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को बेहतर प्रशिक्षण के साथ उनके उत्पादों की ब्रांडिंग तथा विपणन के लिए कारगर कदम उठाए जा रहे हैं. इससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है. उन्होंने कहा कि महिलाओं को आर्थिक तौर पर स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से जिले भर में ‘हिम ईरा शॉप्स’ खोले जाएंगे. इसके साथ ही उत्पादों की पैकेजिंग के लिए उचित कदम उठाए गए हैं, ताकि मार्केट में इन उत्पादों की डिमांड बढ़ सके. बकौल डीसी, स्वयं सहायता समूहों के उत्पादों को ऑनलाइन बेचने के लिए भी हिम ईरा की वेबसाइट तैयार की गई है. सभी स्वयं सहायता समूहों को इस वेबसाइट के साथ जोड़ा जा रहा है, ताकि भविष्य में स्वयं सहायता समूह ऑनलाइन भी अपने उत्पादों की बिक्री कर सकें.
मोटे अनाज की खेती पर बढ़ा जोर
दरअसल, मोटे अनाज में सूक्ष्म पोषक तत्व, विटामिन एवं खनिज की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. इसलिए मोटे अनाजों को संतुलित आहार के साथ-साथ सुरक्षित वातावरण के निर्माण में उपयोगी माना जाता है. सेहत के लिहाज से भी इसे सबसे अच्छे खाद्यानों में शामिल किया गया है. यही वजह है कि बीते वर्षों में दुनिया भर में मोटे अनाजों की खेती पर विशेष जोर दिया जा रहा है. खासकर ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट्स के साथ)
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