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Shaligram Puja: देवशयनी एकादशी पर कैसे करें शालिग्राम की पूजा
Shaligram Puja: देवशयनी एकादशी पर कैसे करें शालिग्राम की पूजा
Authored By: स्मिता
Published On: Thursday, June 26, 2025
Last Updated On: Thursday, June 26, 2025
Shaligram Puja : भगवान विष्णु के प्रतीक हैं शालिग्राम देव. देवशयनी एकादशी पर शालिग्राम की पूजा का विशेष आध्यात्मिक महत्व है. 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी है. जानते हैं कैसे की जाती है इस दिन शालिग्राम भगवान की पूजा.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Thursday, June 26, 2025
भगवान विष्णु को समर्पित होती है एकादशी. इस दिन शालिग्राम पूजा भी विशेष रूप से की जाती है. इस दिन शालिग्राम पूजा से ईश्वर का विशेष आशीर्वाद मिलता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है. शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है. जानते हैं देवशयनी एकादशी पर कैसे की जाती है शालिग्राम पूजा (Shaligram Puja).
तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह
एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए इस दिन श्री कृष्ण के अलावा शालिग्राम रूप में श्री विष्णु जी की पूजा का भी महत्व है. देवउठनी एकादशी के दिन जब भगवान विष्णु निद्रा से उठते हैं, तो माता तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह संपन्न कराया जाता है. इनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है.
कैसे की जाती है देवशयनी एकादशी पर शालिग्राम पूजा (Shaligram Puja on Devshayani Ekadashi 2025)
- 6 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी है. इस अवसर पर शालिग्राम जी की पूजा का विशेष महत्व है. इसके लिए सबसे पहले खुद को साफ करें.
- सुबह उठकर पवित्र स्नान किया जाता है और साफ वस्त्र पहने जाते हैं.
- पवित्र वस्त्र धारण करने के बाद सबसे पहले पूर्व या उत्तर-पूर्व की ओर मुंह करके शालिग्राम को पीपल के पत्तों वाली प्लेट पर रखा जाता है.
पीपल के पत्तों को साफ कपड़े पर रखा जाता है. - शालिग्राम को जल से अभिषेक कराया जाता है.
- गाय के उत्पादों से तैयार मिश्रण पंचगव्य और फिर जल अर्पित किया जाता है.
- शालिग्राम पर चंदन का लेप लगाएं.
- भक्तगण शालिग्राम पर तुलसी और फूल चढ़ाएं तथा आरती करें.
- दूध, फल और मिठाई चढ़ाएं और फिर गरीबों को दान करें
कौन हैं शालिग्राम देव (Shaligram Dev)
शालिग्राम देव एक पवित्र पत्थर है, जिसे हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है. यह विशेष रूप से नेपाल में गंडकी नदी में पाया जाता है. शालिग्राम की उत्पत्ति की कथा है.
क्या है शालिग्राम की कथा (Shaligram Katha)
एक बार असुर राज जलंधर अपनी पत्नी वृंदा की भक्ति के कारण अजेय हो गया. भगवान विष्णु ने जलंधर की भक्ति को तोड़ने की योजना बनाई. उन्होंने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंचे. इससे उसकी भक्ति भंग हो गई. जब वृंदा को सच्चाई का पता चला, तो वह क्रोधित हो गई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. भगवान विष्णु ने वृंदा के श्राप को स्वीकार कर लिया और गंडकी नदी में शालिग्राम पत्थर के रूप में निवास करने लगे. वृंदा ने भी तुलसी के रूप में पुनर्जन्म लिया और भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि तुलसी के बिना उनकी पूजा अधूरी मानी जाएगी. इसलिए शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है. एक कथा यह भी है कि भगवान शिव ने यात्रा करते समय अपने पैरों के नीचे के कंकड़ और पत्थरों को पवित्र किया, जो बाद में शालिग्राम में बदल गए.
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