International Women’s Day : अध्यात्म का सही अर्थ समझना है, तो करना सीखें स्त्रियों का सम्मान

International Women’s Day : अध्यात्म का सही अर्थ समझना है, तो करना सीखें स्त्रियों का सम्मान

Authored By: स्मिता

Published On: Thursday, March 6, 2025

Updated On: Friday, March 7, 2025

अध्यात्म का सही अर्थ समझना है, तो करना सीखें स्त्रियों का सम्मान
अध्यात्म का सही अर्थ समझना है, तो करना सीखें स्त्रियों का सम्मान

International Women’s Day : हम युगों-युगों से स्त्रियों के सम्मान के लिए मनुस्मृति के तृतीय अध्याय से ली गई पंक्ति 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' सुनते और बोलते आए हैं. इस एक पंक्ति में जीवन का सार छिपा है और अध्यात्म से जुड़ने का सही मार्ग भी. स्त्रियों के प्रति सम्मान प्रकट करने पर ही ईश्वर से साक्षात्कार हो सकता है.

Authored By: स्मिता

Updated On: Friday, March 7, 2025

जब भी स्त्रियों के प्रति आदर-सम्मान, प्रेम प्रकट करने की बात चलती है, तो हम झट से मनुस्मृति के तृतीय अध्याय की यह पंक्ति बोल और श्रवण करा देते हैं- “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।” जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, वहां समस्त अच्छे से अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं. हम हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हैं. इस अवसर पर यदि हम अध्यात्म से सही मायने में जुड़ना चाहते हैं, तो सबसे पहले स्त्रियों के प्रति सम्मान (International Women’s Day) प्रकट करना सीखना होगा.

सच्ची भक्ति और अध्यात्म का मार्ग (Path of Spirituality)

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) के अवसर पर हम अलग-अलग क्षेत्र में सफल हुई स्त्री के तो खूब गुणगान करते हैं, लेकिन अपने घर और आसपास की स्त्रियों का अनादर करने से नहीं चूकते हैं. ठीक इसी तरह नवरात्र (Chaitra Navratri 2025) के अवसर पर कन्या पूजन करते हैं, लेकिन आम दिनों में उन पर अत्याचार, अनाचार खूब करते हैं. देवी लक्ष्मी-पार्वती की मूर्ति के सन्मुख शीश झुकाते हैं, लेकिन आम स्त्रियों के प्रति भेदभाव वाला व्यवहार अपनाते हैं. वेद-पुराण और अन्य धार्मिक-आध्यात्मिक ग्रंथों से यह स्पष्ट है कि स्त्रियों के प्रति आदर-सम्मान प्रकट करने से ही सच्ची भक्ति और अध्यात्म का चरम प्राप्त किया जा सकता है.

महादेव के अर्धनारीश्वर स्वरुप का संदेश (Shivji Message)

संतानोत्पत्ति और उनका सहज पालन-पोषण, ये गुण स्त्रियों को प्रकृति प्रदत्त हैं. शिव शंकर भी उनके इस गुण के प्रति नतमस्तक हो गए और स्वयं को शक्ति के बिना अधूरा बताया. स्त्रियां गर्भधारण से लेकर जन्म देने तक अपने गर्भ में मानवता (Humanity) के भविष्य का पोषण करती हैं. उनकी इस शक्ति से संसार को परिचित कराने के लिए ही शिवजी ने अर्धनारीश्वर (Ardhnarishwar) का स्वरुप धारण किया. शिव परम योगी कहलाते हैं. अपने कर्मों के माध्यम से वे यह स्पष्ट करते हैं कि किसी भी व्यक्ति को योग-ध्यान के मार्ग पर चलना है, तो सबसे पहले स्त्रियों के प्रति भेदभाव रहित होना होगा.

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स्त्रियों के स्वाभाविक गुण बनाते हैं आध्यात्मिक (Spiritual Significance of Women)

पौराणिक आख्यानों से लेकर इतिहास तक, ऐसी स्त्रियों के असंख्य उदाहरण हैं, जिन्होंने जीवन के कठिन संघर्ष के समय भी अपना धैर्य नहीं खोया. सीता, मैत्रेयी, गार्गी, देवी अहिल्याबाई, छत्रपति शिवाजी की माता देवी जीजाबाई आदि जीवन भर शांति और सद्भाव की अग्रदूत बनी रहीं. स्त्रियों में सौम्यता, निस्वार्थता, करुणा, सौम्यता जैसे गुण सहज रूप से मौजूद होते हैं. इन सभी गुणों के बिना आध्यात्मिक पथ पर चलना असंभव है. प्रेम, सहनशीलता, करुणा, समझ और विनम्रता जैसे स्त्रैण गुण आध्यात्मिक प्रगति की राह प्रशस्त करते हैं. इन गुणों के बिना ईश्वर और आत्म-साक्षात्कार करना असंभव होगा. हर इंसान में ये गुण होते हैं, लेकिन महिलाएं उन्हें स्वाभाविक रूप से प्राप्त करती हैं.

मानव सेवा में खोजा अध्यात्म (Meaning of Spirituality)

मीराबाई श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं, लेकिन उनकी भक्ति बिना किसी आडंबर की थी. उन्होंने समाज के विष रूपी दुर्गुण का खुद पान कर लिया, लेकिन समाज को भक्ति के श्रेष्ठतम भजन सौंप गईं. मीराबाई की तरह अंडाल, कराईकल अम्मैयार, जनाबाई, सक्कुबाई, बहिणाबाई चौधरी, लल्लेश्वरी, माता शारदा कई ऐसी स्त्री संत हुईं, जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों से अनथक संघर्ष किया. वे स्वयं की प्रेरणा से आत्म-साक्षात्कार की ओर उन्मुख हुईं. इन सभी संतों के साथ सबसे अच्छी बात यह थी कि उन्होंने मानव सेवा को ही सच्ची ईश्वर भक्ति मानी. दूसरों की सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर दिया. उन सभी ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर भजन किया. उनके गाए भजन, पद आज भी लोगों को ईश्वर से जोड़ने का काम कर रहे हैं.

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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