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Maha Shivaratri 2025 : जीवन से अंधकार और अज्ञानता दूर करने के लिए शिव-पार्वती की पूजा
Maha Shivaratri 2025 : जीवन से अंधकार और अज्ञानता दूर करने के लिए शिव-पार्वती की पूजा
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, February 12, 2025
Updated On: Saturday, February 22, 2025
देश भर में 26 फरवरी, बुधवार को मनाई जा रही है महाशिवरात्रि (Maha Shivaratri 2025). मान्यता है कि इस दिन शिव शंकर और देवी पार्वती का विवाह हुआ था. जीवन से अंधकार और अज्ञानता दूर करने के लिए इस दिन शिव-पार्वती की पूजा की जाती है.
Authored By: स्मिता
Updated On: Saturday, February 22, 2025
महा शिवरात्रि (Maha Shivaratri 2025) भगवान शिव और देवी के सम्मान में मनाया जाता है. मान्यता है कि यह दिन शिव-पार्वती के विवाह का है. यह सर्दियों के अंत में या गर्मी के आगमन से ठीक पहले आता है. इस दिन जीवन में अंधकार और अज्ञानता को दूर करने के लिए शिव और पार्वती से प्रार्थना की जाती है. वर्ष 2025 में यह शुभ अवसर 26 फरवरी, बुधवार को मनाया जाएगा. इसे ‘शिव की रात’ भी कहा जाता है. यह भारत के ज्यादातर राज्यों में मनाई जाती है. हर साल यह त्योहार फाल्गुन महीने में अमावस्या की 14वीं रात को मनाया (Maha Shivaratri 2025) जाता है, जो अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च और फरवरी के महीनों से मेल खाता है.
महा शिवरात्रि के आध्यात्मिक अर्थ (Maha Shivratri Spiritual Significance)
महा शिवरात्रि के अवसर पर भक्तगण दिन-रात उपवास कर भगवान शिव की पूजा करते हैं. इस दिन का गहरा आध्यात्मिक महत्व है. यह उपवास और ध्यान के माध्यम से अंधकार और जीवन की बाधाओं पर विजय का प्रतीक है. यह शुभ अवसर भगवान शिव और देवी शक्ति की दिव्य ऊर्जाओं के मिलन का प्रतीक है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन ब्रह्मांड की आध्यात्मिक ऊर्जा विशेष रूप से शक्तिशाली होती हैं. महाशिवरात्रि उपवास, भगवान शिव का ध्यान, आत्मनिरीक्षण, सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना और शिव मंदिरों में जागरण करना शामिल है.
शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा-अर्चना पर जोर (Shivlinga Puja)
महा शिवरात्रि के बारे में शिव पुराण, लिंग पुराण सहित कई अन्य पुराणों में विस्तार से बताया गया है. ये ग्रंथ महा शिवरात्रि व्रत-उपवास रखने और भगवान शिव और उनके प्रतीक स्वरुप शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने पर जोर देते हैं एक कथा के अनुसार, इसी रात भगवान शिव ने ‘तांडव’ नृत्य किया था, जो सृजन और विनाश की एक शक्तिशाली और दिव्य अभिव्यक्ति है. भक्त शिव भजन गाते हैं और शास्त्रों का पाठ करते हैं तथा उनकी सर्वव्यापकता का जश्न मनाते हैं. भगवान शिव और देवी पार्वती के इसी दिन विवाह होने के कारण यह दिन विवाहित जोड़ों और अविवाहित स्त्री-पुरुषों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो एक अच्छा साथी चाहते हैं.
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क्या है महा शिवरात्रि कथा (Maha Shivaratri Katha)
भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती कठिन तपस्या करती हैं. उनके अटूट समर्पण के कारण भगवान शिव और देवी पार्वती फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को विवाह बंधन में बंध गए . महाशिवरात्रि के अत्यधिक महत्व और शुभता का यही मूल कारण है. गरुड़ पुराण की कथा के अनुसार, एक बार एक शिकारी अपने वफादार कुत्ते के साथ शिकार करने के लिए जंगल में गया, लेकिन खाली हाथ लौट आया। थका हुआ और भूखा वह एक तालाब के किनारे आराम कर रहा था, जहां उसने एक बिल्व वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग देखा. आराम की तलाश में उसने पेड़ से कुछ पत्ते तोड़े और संयोग से उनमें से कुछ पत्ते शिवलिंग पर गिर गए. अपने पैरों को धोने के लिए उसने तालाब से पानी छिड़का, अनजाने में कुछ शिवलिंग पर छलक गया. ये क्रियायें करते समय उसका एक तीर उसकी पकड़ से फिसल गया, जिससे वह शिवलिंग के सामने झुक गया। अनजाने में उसने शिवरात्रि के दिन शिव पूजा की पूरी प्रक्रिया पूरी कर ली थी. उसकी पूजा से खुश होकर शिवजी ने उसे वरदान दे दिया.
महा शिवरात्रि पूजा अनुष्ठान (Maha Shivaratri 2025 Rituals)
इस दिन भक्त सूर्योदय से पहले स्नान करके अपना दिन शुरू करते हैं. नए कपड़े पहनते हैं और शिव मंदिरों में जाते हैं. जल, दूध, बेल के पत्ते और बेर के फल के साथ धूपबत्ती जलाकर महादेव की पूजा की जाती है. स्त्रियां शिवलिंग के चारों ओर तीन या सात चक्कर लगाती हैं. इसके बाद दूध चढ़ाने, पत्ते-फल और फूल चढ़ाने की रस्म होती है. शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में छह महत्वपूर्ण तत्व शामिल होते हैं. ये सभी एक विशेष रखते हैं. शिवलिंग को जल और दूध से स्नान कराना और बेल के पत्ते चढ़ाना आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है. स्नान के बाद सिंदूर लगाना पुण्य का प्रतीक है.
महादेव के सम्मान में शिव स्तुति (Shiv Stuti)
पूजा के दौरान फल भेंट करना इच्छाओं की पूर्ति और दीर्घायु का प्रतीक है. धूपबत्ती जलाना धन का प्रतीक है. पान के पत्ते सांसारिक इच्छाओं से प्राप्त संतुष्टि को दर्शाते हैं. दीप जलाना बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति का प्रतीक है. शिव मंदिरों में रात भर जागरण करते हैं. परिणामस्वरूप, महा शिवरात्रि की रात को मंदिर ‘ओम नमः शिवाय’ के मंत्रों से गूंज उठते हैं. स्त्री-पुरुष भगवान शिव के सम्मान में भक्ति गीत गाते हैं.
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