Mahesh Navami 2025 में क्या खास? जानिए संपूर्ण पूजा विधि और नियम!

Mahesh Navami 2025 में क्या खास? जानिए संपूर्ण पूजा विधि और नियम!

Authored By: स्मिता

Published On: Monday, June 2, 2025

Last Updated On: Monday, June 2, 2025

भगवान शिव की छवि, त्रिशूल के साथ, महेश नवमी 2025 की पूजा और धार्मिक महत्व को दर्शाते हुए.
भगवान शिव की छवि, त्रिशूल के साथ, महेश नवमी 2025 की पूजा और धार्मिक महत्व को दर्शाते हुए.

Mahesh Navami 2025 : इस अवसर पर शिव भक्त महेश वंदना गाते हैं और शिव मंदिरों में भगवान महेश की महाआरती भी की जाती है. जानें महेश नवमी 3 जून को है या 4 जून को.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Monday, June 2, 2025

Mahesh Navmi 2025: महेश नवमी का त्योहार राजस्थान के महेश्वरी समुदाय में माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिवस के रूप में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है. इस त्योहार की तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू हो जाती हैं. महेश नवमी के पावन अवसर पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और जुलूस निकाले जाते हैं. इस दिन (Mahesh Navami 2025) भगवान शिव के भक्त इस दिन महेश वंदना गाते हैं और शिव मंदिरों में भगवान महेश की महाआरती भी की जाती है.

कौन हैं माहेश्वरी (Maheshwari Community) 

माना जाता है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय थे, जिन्होंने भगवान शिव की कृपा से वैश्य या व्यापारिक समुदाय को अपनाया. माहेश्वरी समुदाय के लोग पूरे भारत में, खासकर उत्तर भारत में पाए जाते हैं.

कब है महेश नवमी (Mahesh Navmi 2025 Date & Time) 

हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, महेश नवमी हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है. महेश नाम भी भगवान शिव के विभिन्न पवित्र नामों में से एक है. द्रिक पंचांग पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार,

  • नवमी तिथि शुरू – 03 जून, 2025 को रात 09:56 बजे
  • नवमी तिथि समाप्त – 04 जून, 2025 को रात 11:54 बजे

हिंदू में सूर्य की उदय तिथि की अधिक प्रासंगिकता की वजह से महेश नवमी बुधवार, 4 जून, 2025 को मनाई जाएगी. महेश नवमी के पावन अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है.

महेश नवमी के अनुष्ठान (Mahesh Navmi Anushthan)

युधिष्ठिर संवत 9 की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप से पत्थर बन चुके 72 क्षत्रियों को मुक्त कर उन्हें जीवनदान दिया. उनसे दोनों ने कहा, “आज से तुम्हारे वंश पर हमारी छाप रहेगी, तुम माहेश्वरी कहलाओगे.” भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से उन क्षत्रियों को पुनर्जन्म मिला और माहेश्वरी समाज का उदय हुआ. इसलिए भगवान महेश और देवी पार्वती को माहेश्वरी समाज का संस्थापक माना जाता है.

क्या है महेश नवमी की कथा (Mahesh Navmi Katha)

द्रिक पंचांग में उपलब्ध महेश नवमी की कथा के अनुसार, राजा खड्गलसेन थे, जिनकी कोई संतान नहीं थी. बहुत कठिन तपस्या करने के बाद उन्हें सुजान कुंवर नाम का एक पुत्र प्राप्त हुआ. राजर्षियों और ज्योतिष के विद्वानों ने राजा से कहा कि जब तक वह 20 वर्ष का न हो जाए, तब तक वह अपने पुत्र को उत्तर दिशा में न जाने दें. समय बीतने के साथ एक दिन जब राजकुमार किशोर अवस्था में था, वह शिकार के लिए वन में गया. संयोगवश राजकुमार भूल से उत्तर दिशा की ओर चला गया. आगे उत्तर दिशा में कुछ ऋषि तपस्या में लीन बैठे थे. यद्यपि सैनिकों ने राजकुमार को रोकने के बहुत प्रयास किए, परंतु दुर्भाग्यवश राजकुमार ने किसी का भी अनुरोध स्वीकार नहीं किया. जैसे ही राजकुमार उस स्थान से चला, अचानक एक ऋषि की तपस्या भंग हो गई. इससे वह क्रोधित हो गए। उन्होंने राजकुमार सुजान कुंवर को श्राप दिया कि राजकुमार तत्काल पत्थर की मूर्ति में बदल जाएगा. ऋषियों के श्राप के कारण राजकुमार और उसके सभी सैनिक भी पत्थर के बन गए.

महेश नवमी से संबंधित एक कथा और है (Mahesh Navmi Mythology)

महेश नवमी से संबंधित एक अन्य कथा में वर्णन है कि ऋषियों ने राजा को उसके वंश के समाप्त होने का श्राप दिया था. जब गुप्तचरों ने राजा खड्गलसेन को इस दुर्घटना की सूचना दी, तो राजा चिंतित हो गए और तत्काल घटनास्थल पर पहुंचे. उनकी पत्नी चंद्रावती और पत्थर बन गए सैनिकों की पत्नियां भी वहां उपस्थित हुईं. राजा और सभी उपस्थित लोगों ने ऋषियों से तपस्या भंग करने के लिए क्षमा मांगी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा. राजा के बार-बार प्रार्थना करने पर ऋषियों ने कहा कि भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना ही इस श्राप से मुक्ति का एकमात्र उपाय है. उनकी कृपा से यह श्राप निष्प्रभावी हो जाएगा और सभी लोग फिर से पहले की तरह मनुष्य बन जाएंगे. उसके बाद राजा खड्गलसेन ने अपनी पत्नी और सभी सैनिकों की पत्नियों के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की. राजा खड्गलसेन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके पुत्र और सैनिकों को श्राप से मुक्त कर दिया.

महेश नवमी की महत्ता (Mahesh Navmi Significance)

मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने राजा को अपना नाम देते हुए कहा, “आज से तुम्हारे वंश पर हमारी छाप रहेगी, तुम माहेश्वरी कहलाओगे”. परिणामस्वरूप वे सभी क्षत्रिय से वैश्य बन गए. भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से उन क्षत्रियों का पुनरुत्थान हुआ और माहेश्वरी समुदाय का उदय हुआ. माहेश्वरी समुदाय में भगवान शिव को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है।

कैसे करें पूजा (How to perform Mahesh Navmi Puja)

महेश नवमी की पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठें. पवित्र स्नान करें और साफ कपड़े पहनें. मंदिर परिसर को साफ करें. भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्ति स्थापित करें. उन्हें चंदन, सिंदूर, चावल और फूल चढ़ायें. एक दीपक और धूप जला लें. उन्हें प्रसाद अर्पित करें. “ओम नमः शिवाय” का जाप करें. कई लोग केवल फलाहार व्रत रखते हैं और शाम की पूजा के बाद इसे तोड़ते हैं.

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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