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Mundeshwari Devi Mandir: 2000 साल पुराना मंदिर जहां बिना रक्तबलि होती है पूजा!
Mundeshwari Devi Mandir: 2000 साल पुराना मंदिर जहां बिना रक्तबलि होती है पूजा!
Authored By: स्मिता
Published On: Thursday, May 15, 2025
Last Updated On: Thursday, May 15, 2025
Mundeshwari Devi Temple: बिहार के भोजपुर क्षेत्र में कैमूर की पहाड़ी पर स्थित है मां मुंडेश्वरी देवी मंदिर. यह मंदिर न सिर्फ दुनिया का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है, बल्कि यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां रक्तहीन बलि दी जाती है।
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Thursday, May 15, 2025
Mundeshwari Devi Mandir: बिहार के भोजपुरी क्षेत्र में सोन नदी के पास कैमूर पठार की मुंडेश्वरी पहाड़ियों पर मां मुंडेश्वरी देवी मंदिर स्थित है. रामगढ़ गांव में 608 फीट की ऊंचाई पर यह मंदिर स्थापित किया गया है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे 1915 में ही संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया था. इस मंदिर (Mundeshwari Devi Temple) की ख्याति देश भर में फ़ैली है.
मंदिर में सैकड़ों सालों से लगातार हो रही पूजा (Maa Mundeshwari Temple)
मां मुंडेश्वरी देवी मंदिर (Maa Mundeshwari Devi Temple) भगवान शिव और शक्ति को समर्पित है. मंदिर में गणेश, सूर्य और श्री विष्णु के विग्रह भी स्थापित हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अनुसार, मंदिर 108 ईस्वी का है और यह 1915 से संरक्षित स्मारक है. मां मुंडेश्वरी मंदिर वास्तुकला की नागर शैली का सबसे पुराना नमूना है. मान्यता है कि यह मंदिर दुनिया का सबसे पुराना कार्यात्मक मंदिर है, जहां बिना किसी रुकावट के सैकड़ों सालों से पूजा-अनुष्ठान किए जाते रहे हैं.
मुंडेश्वरी देवी मंदिर का क्या है रहस्य ((Maa Mundeshwari Devi Temple Mystery)
यह मंदिर अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए है. यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां रक्तहीन बलि दी जाती है. जो भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर बलि के लिए बकरा लाते हैं, उन्हें बस बकरे को देवी के चरणों में रखना होता है और बलि पूरी मान ली जाती है.
मुंड नामक राजा ने करवाया था मंदिर का निर्माण (Maa Mundeshwari Devi Temple)
मुंडेश्वरी मंदिर की उत्पत्ति और विकास के बारे में कई किंवदंती हैं. एक किंवदंती के अनुसार, मंदिर का निर्माण मुंड नामक एक राजा ने करवाया था, जिसे अपनी गाय को मारने के लिए एक ऋषि ने श्राप दिया था. ऋषि ने उससे कहा कि वह अपने श्राप से तभी मुक्त हो सकता है जब वह शिव और शक्ति का मंदिर बनाए. सातवीं शताब्दी के आसपास शैव धर्म प्रचलित धर्म बन गया. विनीतेश्वर, जिन्हें छोटे देवता के रूप में मान्यता प्राप्त थी, उस समय मुंडेश्वरी देवी मंदिर के मुख्य देवता के रूप में उभरे. चतुर मुखलिंगम (चार मुखों वाले लिंगम) विनीतेश्वर देवता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें मंदिर के बीचोंबीच स्थान दिया गया था, जो आज भी है.
चतुर मुखलिंगम हैं देवी के सहायक देवता (Chatur Mukhlingam)
इस अवधि के बाद एक शक्तिशाली आदिवासी जनजाति और कैमूर पहाड़ियों के मूल निवासी चेरो सत्ता में आ गए. चेरो शक्ति के उपासक थे, जिसका प्रतिनिधित्व मुंडेश्वरी करती हैं, जिन्हें महेशमर्दिनी और दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है. अब देवी मुंडेश्वरी को मंदिर का मुख्य देवता बनाया गया. हालांकि, मुखलिंगम अभी भी मंदिर के केंद्र में है. इसलिए दुर्गा की मूर्ति मंदिर की एक दीवार के साथ एक आला में स्थापित की गई थी, जहां वह आज भी विराजमान है, जबकि चतुर मुखलिंगम सहायक देवता के रूप में हैं.
मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा (Spiritual Energy)
ऐसा माना जाता है कि यहां सैंकड़ों सालों से अनुष्ठान और पूजा बिना किसी रुकावट के की जाती रही है. इसलिए मुंडेश्वरी को दुनिया के सबसे प्राचीन कार्यात्मक हिंदू मंदिरों में से एक माना जाता है. रामनवमी और शिवरात्रि के त्योहार मुंडेश्वरी मंदिर में विशेष आकर्षण रखते हैं. हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आध्यात्मिक ऊर्जा पाने के लिए मंदिर आते हैं.
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