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ईश्वर का आशीर्वाद साथ रहता है, प्रयास और परिश्रम स्वयं करने पड़ेंगे : प्रेमभूषण महाराज
ईश्वर का आशीर्वाद साथ रहता है, प्रयास और परिश्रम स्वयं करने पड़ेंगे : प्रेमभूषण महाराज
Authored By: स्मिता
Published On: Sunday, November 24, 2024
Updated On: Sunday, November 24, 2024
काम, क्रोध,लोभ, मद और मत्सर आदि विकार कलिमल कहे जाते हैं। इससे बचने का एकमात्र सहज साधन श्री राम कथा ही है। मानस जी में लिखा है इस कथा को जो सुनेगा, कहेगा और गाएगा वह सब प्रकार के सुखों को प्राप्त करते हुए अंत में प्रभु श्री राम के धाम को भी जा सकता है।
Authored By: स्मिता
Updated On: Sunday, November 24, 2024
प्रकृति की व्यवस्था सभी कार्य करती है। हमारे चित्त की गति जैसी होती है, मैत्री भी वैसे ही लोगों से होती है। सत्संगी को संगत अच्छा लगता है और कुसंगी को अपने जैसे लोगों का ही साथ अच्छा लगता है। अगर भगवान की ओर बढ़ना है, तो पहले उनको मानना आवश्यक है। मानने वाला ही भगवान को जान पाता है। भगवान से हमें यह प्रार्थना करना चाहिए कि परिवार में थोड़ी कमी बने रहे, जिससे हमें आपकी याद आती रहेगी। यह सत्य है कि भगवान राम सर्व समर्थ हैं, लेकिन आज के युग में यह सोचना कि सब रामजी ही कर देंगे, पूरी तरह से गलत है। प्रयास और परिश्रम तो स्वयं ही करना पड़ता है। यह बातें नौ दिवसीय रामकथा के अवसर पर व्यासपीठ से प्रेमभूषण महाराज ने कथा वाचन (Prembhushan Maharaj Pravachan) करते हुए कहीं।
जीवन में सदाचार की महत्ता
प्रेमभूषण महाराज ने प्रभु श्रीराम के प्राकट्य का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि भगवान में विश्वास रखने वाले सत्य के आश्रय में अपनी दशा को 10 वर्ष में संभाल कर पूरा जीवन सुख पूर्वक व्यतीत करते हैं। सत्य के अन्वेषण में लगा व्यक्ति सत्य की ओर बढ़ता बढ़ता चला जाता है और झूठ उससे दूर चला जाता है। यह प्रमाणित है कि असत्य (झूठ) का कोई अस्तित्व नहीं होता है। थोड़े से लाभ के लिए भी असत्य का आश्रय लेने वाले को गड्ढे में पहुंचना ही होता है। अखाद्य पदार्थ और मदिरा दोनों मनुष्य को पाप के मार्ग पर ले जाते हैं। अखाद्य वस्तुओं से अपने परिवार को बचाने के लिए संकल्पित हों। जिसके जीवन में जितना अधिक सदाचार होगा, उसकी परमात्मा के चरणों में उतनी ही प्रीति होगी। अपने जीवन का, अपने आय का दसवां भाग परमार्थ में लगाने वाले का न केवल यह जन्म सुधार जाता है बल्कि आने वाला जन्म भी सुंदर होता है।
सुख और दुख दोनों का आना-जाना लगा रहता है
प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का ही आना-जाना लगा रहता है। ईश्वर की बनाई हुई व्यवस्था में यह एक बहुत ही अच्छी बात है कि मनुष्य अपने आने वाले कल के बारे में नहीं जानता है। यदि उसे अपने कल के बारे में आज ही पता चल जाए तो वह सर्वदा दुखी ही रहेगा। इस संसार में कुछ भी अनिश्चित नहीं है। सब कुछ निश्चित है। भगवान की व्यवस्था है और वह संसार की भलाई के लिए ही है। धरती पर आने वाले मनुष्य का जाना भी तय है। और फिर नए स्वरूप में आना भी तय है। शरीर छोड़ने के बाद जीवात्मा को 12 दिनों में अपने स्वरूप की प्राप्ति हो जाती है, ऐसा गरुड़ पुराण में कहा गया है।
आहार विहार और व्यवहार मन को नियंत्रित करते हैं
भगवान के बनाये हुए संसार में घटनाओं का घटित होना एक निर्धारित और निश्चित सत्य है। हर मनुष्य अपने चित्त की स्थिति के अनुसार उन घटनाओं को स्वीकार करता है। हर व्यक्ति के चित्त की स्थिति समान नहीं होती है। मनुष्य के आहार विहार और व्यवहार ही उसके मन को नियंत्रित करते हैं। उसी के अनुसार चित्त की गति भी होती है। हम जिस युग में जी रहे हैं वहां हर मनुष्य विकारों से दूर नहीं रह पाता है। कामनाओं के मैल मन में तरह-तरह के विकार पैदा करते रहते हैं और इससे मनुष्य का जीवन कष्टमय हो जाता है। अगर हम सहज रहना चाहते हैं और सहज जीना चाहते हैं तो हमारे पास इस कलियुग के मल को काटने और धोने का एकमात्र साधन है श्री राम कथा। काम, क्रोध,लोभ, मद और मत्सर आदि विकार कलिमल कहे जाते हैं। इससे बचने का एकमात्र सहज साधन श्री राम कथा ही है। मानस जी में लिखा है इस कथा को जो सुनेगा, कहेगा और गाएगा वह सब प्रकार के सुखों को प्राप्त करते हुए अंत में प्रभु श्री राम के धाम को भी जा सकता है।
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