Tulsidas Jayanti 2025: जानें तुलसीदास के पावन जन्मस्थान और कार्यों के बारे में

Tulsidas Jayanti 2025: जानें तुलसीदास के पावन जन्मस्थान और कार्यों के बारे में

Authored By: स्मिता

Published On: Wednesday, July 23, 2025

Last Updated On: Wednesday, July 23, 2025

Tulsidas Jayanti 2025 पर ध्यानमग्न मुद्रा में बैठे संत तुलसीदास जी का चित्र, उनके जीवन और कार्यों की स्मृति में.
Tulsidas Jayanti 2025 पर ध्यानमग्न मुद्रा में बैठे संत तुलसीदास जी का चित्र, उनके जीवन और कार्यों की स्मृति में.

Tulsidas Jayanti 2025: रामचरितमानस, विनय पत्रिका और हनुमान चालीसा के रचयिता तुलसीदास की जयंती इस वर्ष 31 जुलाई को मनाई जाएगी. यह दिन गुरुवार है. आइये जानते हैं हिंदू संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास जयंती के पावन अवसर पर उनके जन्मस्थान और कार्यों के बारे में.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Wednesday, July 23, 2025

Tulsidas Jayanti 2025: रामबोला दुबे जो बाद में गोस्वामी तुलसीदास कहे गये. उनका जन्म 30 जुलाई 1623 को हुआ था. गोस्वामी जी एक वैष्णव (रामानंदी) हिंदू संत और कवि थे. उन्होंने भगवान राम की भक्ति में अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया. उन्होंने संस्कृत, अवधी और ब्रजभाषा में कई लोकप्रिय रचनायें लिखीं, लेकिन उन्हें हनुमान चालीसा और महाकाव्य रामचरितमानस के रचयिता के रूप में जाना जाता है. रामचरितमानस स्थानीय अवधी भाषा में राम के जीवन पर आधारित संस्कृत रामायण का पुनर्कथन माना (Tulsidas Jayanti 2025) जा सकता है.

चित्रकूट है तुलसीदासजी का जन्मस्थान (Tulsidas Birthplace)

तुलसीदास का जन्म श्रावण (जुलाई-अगस्त) के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था. उनके जन्मस्थान के रूप में तीन स्थान का उल्लेख किया गया है. अधिकांश विद्वान इस स्थान की पहचान उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर से करते हैं, जो गंगा नदी के तट पर स्थित शहर है. 2012 में उत्तर प्रदेश सरकार ने चित्रकूट को आधिकारिक रूप से तुलसी दास का जन्मस्थान घोषित किया था. उनके माता-पिता हुलसी और आत्माराम दुबे थे. स्रोत बताते कि वे भारद्वाज गोत्र के सरयूपारीण ब्राह्मण थे.
संकट मोचन हनुमान मंदिर पर भगवान के दर्शन
तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन बनारस और अयोध्या में बिताया. वाराणसी में गंगा तट पर स्थित तुलसी घाट का नाम उनके नाम पर रखा गया है. उन्होंने वाराणसी में संकट मोचन हनुमान मंदिर की स्थापना की. इसके बारे में माना जाता है कि इसी स्थान पर तुलसीदासजी ने भगवान के दर्शन किए थे. तुलसीदास ने ही रामायण के लोक-नाट्य रूपांतरण रामलीला नाटकों की शुरुआत की.

कला, संस्कृति और समाज पर तुलसीदास की रचनाओं का प्रभाव

उन्हें हिंदी, भारतीय और विश्व साहित्य के महानतम कवियों में से एक माना जाता है. भारत में कला, संस्कृति और समाज पर तुलसीदास और उनकी रचनाओं का प्रभाव व्यापक है. आज स्थानीय भाषा, रामलीला नाटकों, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, लोकप्रिय संगीत और टेलीविजन धारावाहिकों में देखा जा सकता है. कई लोग उन्हें वाल्मीकि का अवतार मानते हैं.

महर्षि वाल्मीकि के अवतार

हिंदू धर्मग्रंथ भविष्योत्तर पुराण में, भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती को बताते हैं कि कैसे वाल्मीकि, जिन्हें हनुमान से स्थानीय भाषा में राम की महिमा का गान करने का वरदान मिला था, भविष्य में कलियुग (चार युगों के चक्र का वर्तमान और अंतिम युग) में अवतार लेंगे.
तुलसीदास अपने महाकाव्य रामचरितमानस के लिए प्रसिद्ध हैं, जो रामायण का स्थानीय अवधी भाषा में पुनर्कथन है. उन्होंने विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा, गीतावली, दोहावली, कवितावली, बरवै रामायण, जानकी मंगल, पार्वती मंगल और वैराग्य संदीपनी सहित कई अन्य रचनायें भी लिखीं.
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स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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