क्या जातिगत और महागठबंधन की राजनीति में फिट नहीं बैठे कांग्रेस अध्यक्ष, अखिलेश सिंह की जगह राजेश कुमार की हुई नियुक्ति

क्या जातिगत और महागठबंधन की राजनीति में फिट नहीं बैठे कांग्रेस अध्यक्ष, अखिलेश सिंह की जगह राजेश कुमार की हुई नियुक्ति

Authored By: सतीश झा

Published On: Wednesday, March 19, 2025

Updated On: Wednesday, March 19, 2025

अखिलेश सिंह की जगह राजेश कुमार बने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष – जातीय राजनीति और महागठबंधन पर असर?
अखिलेश सिंह की जगह राजेश कुमार बने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष – जातीय राजनीति और महागठबंधन पर असर?

बिहार कांग्रेस (Congress) में बड़ा राजनीतिक बदलाव हुआ है. पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह (Akhilesh Singh) को हटाकर उनकी जगह राजेश कुमार (Rajesh Kumar) को नया अध्यक्ष बनाया है. यह बदलाव सिर्फ एक पद का परिवर्तन नहीं बल्कि कांग्रेस की नई रणनीति का संकेत भी है. सवाल यह उठ रहा है कि क्या अखिलेश सिंह बिहार की जातिगत राजनीति और महागठबंधन की जटिल संरचना में फिट नहीं बैठ सके, जिसकी वजह से उन्हें हटाया गया?

Authored By: सतीश झा

Updated On: Wednesday, March 19, 2025

Bhumihar Politics: अखिलेश सिंह (Akhilesh Singh) भूमिहार समुदाय से आते हैं, जिसे बिहार की राजनीति में प्रभावशाली माना जाता है. बीजेपी (BJP) इस समुदाय का बड़ा समर्थन हासिल करने में सफल रही है, लेकिन कांग्रेस ने जब अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, तो यह उम्मीद की जा रही थी कि वे इस वर्ग को पार्टी की ओर आकर्षित करेंगे. लेकिन उनके नेतृत्व में कांग्रेस (Congress) इस समुदाय को लुभाने में नाकाम रही.

कांग्रेस ने अखिलेश सिंह को दो बार राज्यसभा भेजा, लेकिन वे अपने राजनीतिक प्रभाव का विस्तार नहीं कर सके. यहां तक कि जब उन्होंने अपने बेटे को महाराजगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया, तब भी इसका नकारात्मक असर महागठबंधन पर पड़ा.

भूमिहार राजनीति में कांग्रेस की असफलता

बिहार में भूमिहार राजनीति पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का लंबे समय से वर्चस्व रहा है. इस समुदाय का एक बड़ा वर्ग बीजेपी को अपना स्वाभाविक राजनीतिक ठिकाना मानता है. जब कांग्रेस ने अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, तब यह उम्मीद की जा रही थी कि वे इस समुदाय को पार्टी की ओर आकर्षित करेंगे. लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके. जब उन्होंने अपने बेटे को महाराजगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया, तब भी इसका नकारात्मक असर महागठबंधन पर पड़ा.

कांग्रेस की चुनावी रणनीति और नेतृत्व की भूमिका

2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) के नेतृत्व में महागठबंधन की लहर चली. कांग्रेस (Congress)ने  19 सीटें जीतीं. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जो भी सफलता मिली, वह क्षेत्रीय समीकरणों और स्थानीय नेताओं के कारण आई, न कि प्रदेश नेतृत्व की किसी खास रणनीति से. कटिहार, किशनगंज और सासाराम जैसी सीटों पर कांग्रेस को सफलता मिली, लेकिन इसका श्रेय स्थानीय समीकरणों और मुस्लिम-यादव गठजोड़ को जाता है.

अखिलेश सिंह (Akhilesh Singh) प्रदेश कांग्रेस (Bihar Congress) में किसी मजबूत नेटवर्क को खड़ा नहीं कर सके. वे पप्पू यादव जैसे जनाधार वाले नेता को कांग्रेस में एंट्री दिलाने में असफल रहे. साथ ही, कन्हैया कुमार, जिन्हें कांग्रेस ने संभावित बड़े चेहरे के रूप में देखा था, उन्हें भी वे बिहार की भूमिहार राजनीति में स्थापित नहीं कर सके. इस कारण कांग्रेस का एक वर्ग लगातार यह सवाल उठा रहा था कि क्या अखिलेश सिंह प्रदेश नेतृत्व के लिए सही विकल्प थे?

राजेश की नियुक्ति और कांग्रेस की नई रणनीति

अखिलेश सिंह की जगह कांग्रेस ने राजेश को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जो दलित समुदाय से आते हैं. इससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि कांग्रेस अब आरजेडी के भरोसे बिहार में राजनीति नहीं करेगी, बल्कि अपने स्वतंत्र अस्तित्व को स्थापित करने की कोशिश करेगी. पार्टी के भीतर एक बड़ा धड़ा यह मानता है कि 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महागठबंधन में ज्यादा सीटों की दावेदारी करनी होगी, ताकि वह सिर्फ एक जूनियर पार्टनर बनकर न रह जाए.

भूमिहार समुदाय की नाराजगी और कांग्रेस की चुनौती

सोशल मीडिया पर यह चर्चा तेज हो गई है कि कांग्रेस ने अखिलेश सिंह को हटाकर भूमिहार समुदाय को अपमानित किया है. हालांकि, कांग्रेस के भीतर से यह तर्क दिया जा रहा है कि अखिलेश सिंह ने संगठन को मजबूत करने में कोई खास भूमिका नहीं निभाई. अब कांग्रेस को इस समुदाय को पार्टी से जोड़ने के लिए कोई नई रणनीति बनानी होगी. बिहार की राजनीति में कांग्रेस की स्थिति लगातार जटिल होती जा रही है. अखिलेश सिंह की विदाई से कांग्रेस ने आरजेडी को यह स्पष्ट संकेत दिया है कि वह अपनी शर्तों पर राजनीति करना चाहती है.

कांग्रेस अपनी परंपरागत जातीय समीकरणों को कैसे साधेगी?

बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस अपनी परंपरागत जातीय समीकरणों को कैसे साधेगी? बिहार में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह महागठबंधन में एक मजबूत दल बनकर उभरे या फिर खुद को एक स्वतंत्र राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करे. अब देखना यह होगा कि कांग्रेस अपने नए नेतृत्व के साथ इस चुनौती का सामना कैसे करती है.

About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है
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