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अब नीतीश को नहीं, PK को रिपोर्ट करेंगे RCP: बिहार की राजनीति में क्या बदलेगा?
अब नीतीश को नहीं, PK को रिपोर्ट करेंगे RCP: बिहार की राजनीति में क्या बदलेगा?
Authored By: सतीश झा
Published On: Monday, May 19, 2025
Last Updated On: Monday, May 19, 2025
बिहार की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के सबसे भरोसेमंद माने जाने वाले आरसीपी सिंह (RCP Singh) अब प्रशांत किशोर (PK) के साथ आ गए हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस बार वह PK को रिपोर्ट करेंगे. यह बदलाव महज एक व्यक्तिगत समीकरण नहीं, बल्कि बिहार की सियासत में एक नई धुरी के बनने का संकेत है.
Authored By: सतीश झा
Last Updated On: Monday, May 19, 2025
PK and RCP Political Strategy: राजनीति में दोस्त और दुश्मन स्थायी नहीं होते, यह RCP और PK की नई जुगलबंदी साफ दिखा रही है. अब देखना यह होगा कि यह गठजोड़ केवल चर्चा तक सीमित रहता है या वाकई बिहार की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव लेकर आता है. फिलहाल इतना तय है, अब RCP की नजर नीतीश पर नहीं, बल्कि PK के इशारों पर होगी. समय ने करवट ली और नतीजा यह हुआ कि आज न तो PK जदयू में हैं और न ही RCP. दोनों ही नेता बिहार की राजनीति में हाशिए पर चले गए, लेकिन अब स्थिति फिर बदल रही है — प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह एक बार फिर साथ आ गए हैं.
पुराने समीकरण, नया समीकरण
2015 के विधानसभा चुनावों में जब महागठबंधन की धमाकेदार जीत हुई थी, तब प्रशांत किशोर (PK) जदयू (JDU) के रणनीतिकार के रूप में उभरे और धीरे-धीरे नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के करीबी बनते चले गए. उस समय पार्टी अध्यक्ष थे आरसीपी सिंह (RCP Singh). नीतीश के सबसे पुराने और विश्वस्त सहयोगियों में से एक. लेकिन समय के साथ प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह के बीच खींचतान बढ़ती गई और दोनों को अंततः पार्टी से बाहर होना पड़ा.
क्या बदलेगी बिहार की राजनीति?
भविष्य की राजनीति क्या मोड़ लेगी, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन बिहार में नए सियासी समीकरण जरूर बनते नजर आ रहे हैं. अब जब दोनों नेता जनसुराज अभियान के बैनर तले साथ आए हैं, तो कई सवाल उठने लगे हैं:
- नेतृत्व की स्पष्टता: इस बार PK नेतृत्व कर रहे हैं और RCP उनके मातहत काम करेंगे. यह स्पष्ट करता है कि जनसुराज में निर्णय लेने की बागडोर पूरी तरह प्रशांत किशोर के हाथ में है.
- संगठन को मिलेगा अनुभव: RCP सिंह को संगठन निर्माण का माहिर माना जाता है. उन्होंने जदयू को एक सशक्त संगठन के रूप में खड़ा किया था. अब यही अनुभव जनसुराज को नई दिशा दे सकता है.
- नीतीश के लिए चुनौती: जदयू का पारंपरिक वोट बैंक — खासकर कुर्मी समाज और ग्रामीण तबका — अब विभाजित हो सकता है. RCP और PK की जोड़ी अगर ग्राउंड लेवल पर मजबूत होती है, तो जदयू के लिए खतरे की घंटी बज सकती है.
- नई राजनीतिक धारा: PK हमेशा से ‘सिस्टम बदलिए’ की बात करते रहे हैं. यदि RCP उनके साथ तालमेल बैठाकर कार्य करें, तो यह बिहार की पारंपरिक जातिगत राजनीति को भी चुनौती दे सकता है.
- आरसीपी और प्रशांत किशोर की जोड़ी से किसे होगा नुकसान?
प्रशांत किशोर एक सफल राजनीतिक रणनीतिकार और जनसुराज अभियान के सूत्रधार हैं. आरसीपी सिंह लंबे समय तक नीतीश कुमार के भरोसेमंद रहे, पार्टी अध्यक्ष भी रहे और संगठन पर मजबूत पकड़ रखते थे. अब जब ये दोनों एक मंच पर आ गए हैं, तो सबसे बड़ा सवाल है: इस साथ से किसे नुकसान होगा?
- नीतीश कुमार और जदयू सबसे पहला और सीधा नुकसान जदयू को हो सकता है. आरसीपी सिंह कुर्मी वोट बैंक में पकड़ रखते हैं, जो जदयू की रीढ़ रहा है. प्रशांत किशोर के पास युवाओं, शिक्षित वर्ग और राजनीतिक बदलाव चाहने वालों का समर्थन जुटाने की रणनीति है. अगर ये दोनों मिलकर जनसुराज को मजबूत करते हैं, तो जदयू का पारंपरिक समर्थन आधार कमजोर हो सकता है. नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी अब उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बनकर सामने आ सकते हैं.
- भारतीय जनता पार्टी (BJP) भाजपा को भी लॉन्ग टर्म में नुकसान हो सकता है. PK की नीति अक्सर सत्ता-विरोधी लहर को साधने की होती है. अगर जनसुराज ग्रामीण और युवा मतदाताओं में पकड़ बनाता है, तो यह भाजपा के शहरी और मध्यमवर्गीय वोट बैंक में सेंध लगा सकता है. विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां भाजपा और जदयू मिलकर मजबूत थे, वहां त्रिकोणीय मुकाबला बनने की स्थिति में भाजपा को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
- राजद और तेजस्वी यादव अभी के लिए जनसुराज का सीधा मुकाबला राजद (RJD) से नहीं दिखता, लेकिन अगर PK और RCP राजनीतिक विकल्प के रूप में उभरते हैं, तो राजद के युवाओं और बदलाव चाहने वाले वोटरों को भी खींच सकते हैं. लंबे समय में तेजस्वी यादव को एक नया प्रतिस्पर्धी चेहरा मिल सकता है.