दिल्ली में LG के नए फैसले का विरोध तेज, हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने नोटिफिकेशन वापस लेने की मांग की
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Wednesday, August 27, 2025
Last Updated On: Wednesday, August 27, 2025
दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा जारी नई अधिसूचना को लेकर विवाद गहराता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के बाद अब दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी इसका विरोध करते हुए इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रहार बताया है और तत्काल वापसी की मांग की है.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Wednesday, August 27, 2025
Delhi LG Decision Protest: दिल्ली में उपराज्यपाल द्वारा 13 अगस्त 2025 को जारी एक अधिसूचना को लेकर कानूनी जगत में नाराज़गी लगातार बढ़ रही है. इस नोटिफिकेशन के तहत पुलिस अधिकारियों के साक्ष्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए दर्ज करने के लिए निर्धारित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग स्टेशनों को ‘नियत स्थान’ घोषित किया गया है. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इसे पहले ही गैरकानूनी और न्यायिक स्वतंत्रता के खिलाफ बताया था.
अब दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी इस अधिसूचना का विरोध करते हुए उपराज्यपाल से इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है. एसोसिएशन ने अपने सदस्यों से कोर्ट में काली रिबन पहनकर विरोध दर्ज कराने की अपील की है और स्पष्ट कहा है कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक अधिसूचना रद्द नहीं की जाती.
एसोसिएशन ने लिखा विरोध पत्र
दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने बुधवार को एक पत्र जारी कर साफ कहा कि उसकी कार्यकारी समिति 13 अगस्त 2025 को उपराज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना का सर्वसम्मति से विरोध करती है. इस अधिसूचना के तहत पुलिस अधिकारियों और कर्मियों के बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग स्टेशनों से दर्ज करने की अनुमति दी गई है और इन स्टेशनों को ‘नियत स्थान’ घोषित किया गया है.
नोटिफिकेशन वापस लेने की मांग
एसोसिएशन ने इस आदेश को तुरंत रद्द करने की मांग की है. इसके साथ ही वकीलों से अपील की गई है कि वे अदालत में पेश होते समय काले रिबन लगाकर विरोध दर्ज कराएं. एसोसिएशन का कहना है कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक अधिसूचना वापस नहीं ली जाती.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) भी इस मुद्दे पर विरोध जता चुकी है. उसने दिल्ली की निचली अदालतों में चल रही हड़ताल का समर्थन करते हुए 13 अगस्त को जारी अधिसूचना को गलत ठहराया था.
एससीबीए का रुख
एससीबीए अध्यक्ष और कार्यकारी समिति ने 22 अगस्त को पारित अपने प्रस्ताव में इस अधिसूचना को ‘मनमाना, गैरकानूनी और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ’ बताया. एसोसिएशन का कहना है कि यह कदम न केवल न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को ठेस पहुंचाता है, बल्कि न्याय के निष्पक्ष प्रशासन और जनहित को भी प्रभावित करता है.
प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि अधिसूचना से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर असर पड़ता है. इसलिए एससीबीए ने इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है ताकि न्याय और कानून का सम्मान कायम रह सके.
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