अजमेर शरीफ विवाद: दरगाह को महादेव मंदिर बताने की याचिका पर बवाल
अजमेर शरीफ विवाद: दरगाह को महादेव मंदिर बताने की याचिका पर बवाल
Authored By: सतीश झा
Published On: Friday, November 29, 2024
Updated On: Friday, November 29, 2024
देश में मंदिर और मस्जिद को लेकर बढ़ते विवाद के बीच राजस्थान के अजमेर से एक नया मामला सामने आया है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर शरीफ दरगाह को महादेव का मंदिर बताते हुए अदालत में याचिका दाखिल की है। उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने अजमेर दरगाह कमेटी, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को नोटिस जारी किया है। अदालत ने सभी संबंधित पक्षों को समन जारी करते हुए इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 20 दिसंबर की तारीख तय की है।
Authored By: सतीश झा
Updated On: Friday, November 29, 2024
याचिका में गुप्ता ने 1911 में पूर्व न्यायाधीश हरबिलास सारदा द्वारा लिखी गई किताब “अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव” का हवाला दिया है। किताब में दावा किया गया है कि अजमेर शरीफ दरगाह का निर्माण एक प्राचीन मंदिर के मलबे से हुआ था। इसके साथ ही पुस्तक में यह भी उल्लेख है कि दरगाह के नीचे एक गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर स्थित था। पुस्तक में यह दावा भी किया गया है कि दरगाह के भीतर एक तहखाना है जिसमें शिवलिंग है। साथ ही यह कहा गया है कि इस मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान के वंशजों द्वारा किया गया था, जो अजमेर पर राज करते थे।
विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में इस स्थल का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे कराने की मांग की है, ताकि वहां फिर से पूजा-अर्चना की जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि अजमेर शरीफ दरगाह को “संकट मोचन महादेव मंदिर” घोषित किया जाए और अगर दरगाह का कोई पंजीकरण है, तो उसे रद्द कर दिया जाए ताकि हिंदू समुदाय को वहां पूजा-पाठ की अनुमति दी जा सके।
ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे को लेकर दरगाह के दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन ने कहा कि यह केवल सस्ती लोकप्रियता का एक प्रयास है। उन्होंने कहा कि 850 साल से अधिक समय से दरगाह में शिव मंदिर होने का सवाल कभी नहीं उठाया गया, तो अब अचानक ऐसा क्या हुआ? कुछ लोग अब सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस मुद्दे को अदालतों में उलझा रहे हैं।
दीवान आबेदीन ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत और संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार समय-समय पर ख्वाजा साहब की मजार पर चादर पेश करते रहे हैं। साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 11 वर्षों से ख्वाजा साहब के उर्स में मजार शरीफ पर चादर पेश करवा रहे हैं, जो भारतीय परंपरा का हिस्सा है। इसके अलावा, देश के कई मुख्यमंत्री, राज्यपाल और अन्य नेता भी दरगाह में जियारत करने आते रहे हैं। ख्वाजा साहब का इतिहास 850 वर्षों से अधिक पुराना है और वह खुद भी ख्वाजा साहब के परिवार से जुड़े हुए हैं, जहां परंपरागत रूप से दीवान का पद उनके परिवार के पास होता है।
उन्होंने आगे कहा कि आज तक दरगाह में शिव मंदिर होने का सवाल नहीं उठाया गया था, और अब अचानक कुछ लोग इस मामले को अदालतों में ले जाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं। अदालतों को इस मामले में देश के कानून के अनुसार फैसला लेना चाहिए। दीवान ने यह भी कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह का अंतरराष्ट्रीय महत्व है और यहां होने वाली हर गतिविधि का असर पूरी दुनिया पर पड़ता है।
(हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी के इनपुट के साथ)
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