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हर साल 6000 लोग छोड़ रहे हैं अमेरिकी नागरिकता – आखिर क्यों बदल रहा है ‘अमेरिकन ड्रीम’ का सपना?
Authored By: Nishant Singh
Published On: Friday, October 24, 2025
Last Updated On: Friday, October 24, 2025
जहां पूरी दुनिया अमेरिकी नागरिक बनने का सपना देखती है, वहीं हैरानी की बात ये है कि हर साल करीब 6000 अमेरिकी अपनी ही नागरिकता छोड़ रहे हैं. 2025 के सर्वे में खुलासा हुआ कि अब लोग सिर्फ टैक्स नहीं, बल्कि राजनीति से हताश होकर ये कदम उठा रहे हैं. बढ़ता ध्रुवीकरण, हिंसा और असहिष्णुता ने “अमेरिकन ड्रीम” को “अमेरिकन डिसकनेक्ट” में बदल दिया है.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Friday, October 24, 2025
Americans Giving Up Citizenship 2025: दुनिया के हर कोने में लाखों लोग अमेरिकी नागरिक बनने का सपना देखते हैं – ऊंची तनख्वाह, बेहतर जीवन और “अमेरिकन ड्रीम” की तलाश में. लेकिन हैरानी की बात ये है कि अब वही सपना बहुतों के लिए डरावना बनता जा रहा है. हाल के वर्षों में हजारों अमेरिकी खुद अपनी नागरिकता छोड़ने का फैसला कर रहे हैं. 2025 के एक सर्वे के अनुसार, करीब 49% अमेरिकी प्रवासी अपनी नागरिकता त्यागने पर विचार कर रहे हैं, जिनमें से 51% ने इसके पीछे “राजनीतिक हताशा” को वजह बताया है.
राजनीति और निराशा – नया कारण नागरिकता छोड़ने का
पहले जहां नागरिकता छोड़ने की वजहें टैक्स और जटिल कानूनी नियम हुआ करती थीं, अब राजनीतिक असंतोष इसकी सबसे बड़ी जड़ बन गया है. कई अमेरिकियों का कहना है कि देश की राजनीति इतनी ध्रुवीकृत और असहिष्णु हो चुकी है कि वे खुद को वहां का हिस्सा नहीं मान पा रहे. 6 जनवरी 2021 के कैपिटल दंगों, लगातार बढ़ती बंदूक हिंसा और मताधिकार पर खतरे जैसे मुद्दों ने इस निराशा को और गहरा किया है.
वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 5,000 से 6,000 अमेरिकी अपनी नागरिकता त्याग देते हैं. जहां पहले ये संख्या टैक्स नियमों से जुड़ी थी, अब यह “राजनीतिक थकान” का प्रतीक बन चुकी है.
लोगों की जुबानी – “अब ये देश अपना नहीं लगता”
लंदन में रहने वाले एक अमेरिकी नागरिक ने बताया कि जैसे ही डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा चुने जाने की खबर आई, उन्होंने अगले ही दिन नागरिकता छोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी. उनका कहना है, “जिस देश में लोकतंत्र की जगह कट्टरता ले रही हो, वहां रहना अब मुमकिन नहीं.”
इसी तरह कई विदेशों में बसे अमेरिकी इस भावना को साझा करते हैं. बढ़ता राजनीतिक अतिवाद, सामूहिक गोलीबारी और समाज में गहराती विभाजन रेखाएं उन्हें ये महसूस करवा रही हैं कि “अब वो अमेरिका पहले जैसा नहीं रहा.” कईयों के लिए 6 जनवरी का दंगा एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जिसने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि वे किस देश के नागरिक हैं.
टैक्स और नौकरशाही की जाल में फंसे प्रवासी अमेरिकी
अमेरिका दुनिया के उन चंद देशों में से है जो अपने नागरिकों पर उनकी रिहाइश से बेपरवाह होकर टैक्स वसूलता है. यानी अगर कोई अमेरिकी विदेश में भी रह रहा है, तो उसे अमेरिका में टैक्स रिटर्न दाखिल करना और संभावित दोहरे कराधान का सामना करना पड़ता है.
इस जटिल टैक्स व्यवस्था ने प्रवासियों के लिए जीवन मुश्किल बना दिया है. कुछ देशों के बैंक अमेरिकी ग्राहकों को खाता खोलने से मना कर देते हैं, या उनसे भारी शुल्क वसूलते हैं, क्योंकि अमेरिकी रिपोर्टिंग कानून बेहद सख्त हैं. इससे कई लोगों को न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक तनाव भी झेलना पड़ रहा है.
ऑनलाइन समूहों में बढ़ती निराशा की आवाजें
आज सोशल मीडिया और ऑनलाइन मंचों पर “अमेरिकी नागरिकता छोड़ें – क्यों और कैसे?” जैसे ग्रुप तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं. इन मंचों पर हजारों सदस्य अपने अनुभव साझा कर रहे हैं, जिनमें से अधिकांश राजनीति और टैक्स नीति से परेशान हैं.
2025 के ग्रीनबैक सर्वे के अनुसार, विदेशों में रहने वाले करीब आधे अमेरिकी अपनी नागरिकता छोड़ने पर विचार कर रहे हैं. इनमें से 61% टैक्स नियमों को और 51% अमेरिकी सरकार की दिशा से असंतोष को मुख्य कारण मानते हैं.
महंगा फैसला, लेकिन मजबूरी का नाम त्याग
अमेरिकी नागरिकता छोड़ना कोई आसान या सस्ता कदम नहीं है. इसके लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया, दस्तावेज़ों का बोझ और हजारों डॉलर की फीस चुकानी पड़ती है. फिर भी, हर साल हज़ारों लोग ये कदम उठा रहे हैं.
उनके लिए ये सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि उस पहचान से दूरी बनाने का प्रतीक है, जो कभी गर्व का कारण थी.
“अमेरिकन ड्रीम” से “अमेरिकन डिसकनेक्ट” तक
एक समय था जब अमेरिकी पासपोर्ट गर्व और आज़ादी का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब बहुतों के लिए वही पासपोर्ट “परेशानी का सबब” बन चुका है. टैक्स का बोझ, राजनीतिक विभाजन और बढ़ता सामाजिक असंतोष – ये सभी कारण उस महान सपने को धीरे-धीरे धुंधला कर रहे हैं.
जहां पूरी दुनिया अमेरिका जाने की ख्वाहिश रखती है, वहीं हज़ारों अमेरिकी अब वही सवाल पूछ रहे हैं – “क्या ये अब वही देश है, जिस पर हमने भरोसा किया था?”
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