Deficiency of Vitamin D Can Cause Mental Health Issues : क्या आपकी उदासी गुस्से या डिप्रेशन का कारण विटामिन डी की कमी तो नहीं ?

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Friday, October 24, 2025

Last Updated On: Friday, October 24, 2025

Deficiency of Vitamin D की कमी उदासी, गुस्सा या डिप्रेशन का कारण हो सकती है, जानें लक्षण और उपाय.
Deficiency of Vitamin D की कमी उदासी, गुस्सा या डिप्रेशन का कारण हो सकती है, जानें लक्षण और उपाय.

भारत एक खतरनाक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है और वह है विटामिन डी की कमी. विडंबना यह है कि प्रचुर मात्रा में धूप होने के बावजूद, अध्ययनों से पता चलता है कि लगभग 70 से 90% भारतीयों में इस आवश्यक पोषक तत्व की कमी है. विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण, प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य और समग्र स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे में अगर इसकी कमी का निदान और उपचार नहीं हो पाता है, तो उससे गंभीर मानसिक समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है.

Authored By: अंशु सिंह

Last Updated On: Friday, October 24, 2025

Deficiency of Vitamin D: हमने देखा है कि अक्सर कर लोगों की उदासी, गुस्सा, चिड़चिड़ाहट की वजह किसी ना किसी प्रकार की चिंता या भय होता है. यही भय उन्हें अवसाद की दहलीज पर भी ले जाता है. रातों की नींद और चैन उड़ जाते हैं. कारण तलाशने पर कुछ भी हाथ नहीं लगता. कुछ हाथ आता भी है, तो उसे नजरअंदाज कर देते हैं. मुमकिन है कि आपके जीवन में भी कुछ ऐसा हो रहा हो, जो कि बेवजह की उदासी और भय पैदा कर रहा हो. आपको लग रहा हो कि कहीं आप डिप्रेशन के शिकार तो नहीं हो रहे. आप एंटी डिप्रेशन मेडिसीन भी लेना शुरू कर देते हैं, जबकि असली वजह शरीर में विटामिन की कमी हो. जी हां, जैसा कि सभी जानते हैं कि विटामिन हमारे शरीर के लिए कितने जरूरी हैं. अब चाहे वो विटामिन ए हो, विटामिन बी या विटामिन डी. विटामिन डी की कमी गंभीर मानसिक तनाव की दहलीज तक ले जा सकती है और हमें शायद पता भी न चले कि ये मानसिक तनाव किसी और वजह से नहीं बल्कि शरीर में विटामिन डी की कमी से हुआ है.

विटामिन डी की कमी का मानसिक स्वास्थ्य पर असर

दरअसल, हाल के वर्षों में विभिन्न अध्ययनों के जरिये मानसिक स्वास्थ्य में विटामिन डी की भूमिका का समर्थन करने वाले प्रमाण पाए गए हैं. विटामिन डी की कमी, खासकर अवसाद और चिंता के लक्षणों को बढ़ा सकती है. कई शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि शरीर में विटामिन डी की कमी से न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होने की संभावना बढ़ जाती है. इतना ही नहीं, लोगों में भूलने की बीमारी, दुविधा, थकान, मनोदशा में बदलाव, भूख न लगना, दर्द के प्रति संवेदनशीलता में वृद्धि, एकाग्रता की कमी, डर का बढ़ना, अत्यधिक निराशा या उदासी की भावना, वजन कम होना या बढ़ना, चिंता आदि समस्या भी देखी गई हैं. इसके अलावा, कई अन्य अध्ययनों में अल्जाइमर रोग से पीड़ित लोगों के साथ-साथ संज्ञानात्मक हानि वाले स्वस्थ वयस्कों में विटामिन डी के स्तर में कमी की बात कही गई है, जो विटामिन डी और संज्ञानात्मक कार्य के बीच संबंध का सुझाव देता है. इसी कारण, साल 2020 का एक अध्ययन महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें बताया गया है कि विटामिन डी सप्लीमेंट चिंता के लक्षणों को सुधारने में उपयोगी हो सकता है. कुछ शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि इन विकारों की रोकथाम अथवा उपचार के लिए विटामिन डी की नियमित जांच की जानी चाहिए.

भारत में भी स्थिति चिंताजनक

भारत की भी एक बड़ी आबादी विटामिन डी की कमी से जूझ रही है. एक अध्ययन के मुताबिक, देश में करीब 50 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनमें विटामिन डी की कमी है. शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है, जो विटामिन डी के संश्लेषण के लिए आवश्यक पराबैंगनी बी (यूवीबी) किरणों को अवरुद्ध करता है. दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे घनी आबादी वाले शहरों में विशेष रूप से यह समस्या गंभीर है. इसके अलावा, भारतीय आहार, खासकर शाकाहारी आहार में अक्सर कर विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थों की कमी होती है, जो वसायुक्त मछली, अंडे की जर्दी और फोर्टिफाइड डेयरी उत्पादों में पाए जाते हैं. हालांकि देश में दूध की खपत ज़्यादा है, लेकिन ज़्यादातर दूध विटामिन डी से फोर्टिफाइड नहीं होते. मेडिकल जर्नल नेचर में प्रकाशित एक शोध पर नजर डालें, तो भारत, अफगानिस्तान और ट्यूनीशिया जैसे देशों की लगभग 20 प्रतिशत से भी अधिक आबादी विटामिन डी की कमी से ग्रसित है. अमेरिका, कनाडा और यूरोप के लोग भी विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं. इन देशों में यह आंकड़ा क्रमश: 5.9 फीसदी, 7.4 फीसदी और 13 फीसदी के आसपास है.

क्यों है जरूरी ?

विटामिन डी को ‘सनशाइन विटामिन’ भी कहा जाता है. यह एक वसा में घुलनशील विटामिन है, जो मुख्य रूप से सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर त्वचा में संश्लेषित होता है. यह कई शारीरिक कार्यों को पूरा करने जैसे दांतों, मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूत बनाने के अलावा मानसिक सेहत से लेकर हृदयाघात, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से हमें बचाने में सक्षम है.

  • यह कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण को सुगम बनाता है, जिससे हड्डियों के विकारों जैसे रिकेट्स और ऑस्टियोपोरोसिस की रोकथाम होती है.
  • प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है, जिससे संक्रमण और स्व-प्रतिरक्षी रोगों का जोखिम कम होता है.
  • मनोदशा के नियमन को प्रभावित करता है. इसकी कमी अवसाद और चिंता से जुड़ी होती है.

कैसे काम करता है?

मानव की मांसपेशियों, हृदय, मस्तिष्क और प्रतिरक्षा प्रणाली में विटामिन डी रिसेप्टर्स होते हैं. शरीर इस विटामिन को गुर्दे और यकृत तक पहुंचाता है, जहां यह एक सक्रिय हार्मोन में परिवर्तित हो जाता है. इस रूप में यह शरीर को कैल्शियम के अवशोषण में सहायता करता है. आपका शरीर सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने से विटामिन डी प्राप्त करता है. कुछ खाद्य पदार्थ और पूरक भी विटामिन डी के स्रोत हो सकते हैं. सांवले रंग के लोगों के शरीर में मेलेनिन का स्तर अधिक होता है. यह एक ऐसा पदार्थ है, जो मनुष्यों और पशुओं में आंखों, त्वचा और बालों को काला कर देता है. यह रंजकता त्वचा को विटामिन डी को ठीक से अवशोषित करने से रोकती है.
ऐसे दूर करें कमी

आमतौर पर लोगों का औसतन 90 फीसदी समय घर या दफ्तर के अंदर बितता है. इसलिए विटामिन डी की कमी दुनिया भर में सामान्य आबादी के लगभग 75% को प्रभावित करती पाई गई है. घर के अंदर बिताए गए समय में वृद्धि के अलावा, ऐसे कपड़े पहनना जो त्वचा की अधिकांश सतह को कवर करते हैं या फिर सनस्क्रीन का उपयोग, सामान्य आबादी में विटामिन डी की कमी में योगदान करते हैं. इसके अलावा, उच्च अक्षांशों पर और सर्दियों के दौरान सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने से विटामिन डी का संश्लेषण लगभग असंभव है. चूंकि स्वस्थ लोगों में पर्याप्त सीरम 25 (ओएच) डी के स्तर को बनाए रखने के लिए आहार विटामिन डी का योगदान आमतौर पर बहुत कम होता है. ऐसे में न्यूट्रिशनिस्ट कंचन चौहान का कहना है कि विटामिन डी की कमी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है अपने आहार में मछली, मांस, अंडे की जर्दी, फोर्टिफाइड डेयरी उत्पाद और मशरूम को शामिल करना. साथ ही पर्याप्त धूप लेना, जो विटामिन डी का सबसे प्रमुख स्त्रोत है. हां, बिना सनस्क्रीन के ज़्यादा देर तक धूप में रहने से सावधान रहें, क्योंकि अधिक देर धूप में रहने से त्वचा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

उम्र के अनुसार, प्रतिदिन विटामिन डी की आवश्यकता

  • 12 महीने तक के शिशुओं के लिए 10 माइक्रोग्राम (400 IU)
  • 1 से 70 वर्ष की आयु के लोगों के लिए 15 माइक्रोग्राम (600 IU)
  • 71 वर्ष और उससे अधिक आयु के वयस्कों के लिए 20 माइक्रोग्राम (800 IU)
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए 15 माइक्रोग्राम (600 IU)

यह भी पढ़ें :- Brain Aneurysm linked to Stress ?: हद से अधिक तनाव और चिंता बढ़ा सकता है ब्रेन एन्यूरिज्म का खतरा, हो जाएं सावधान

About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
Leave A Comment

अन्य लाइफस्टाइल खबरें