Saint Ramanand Jayanti : जाति-पाति के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एकजुट करना था उद्देश्य

Saint Ramanand Jayanti : जाति-पाति के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एकजुट करना था उद्देश्य

Authored By: स्मिता

Published On: Monday, December 16, 2024

Updated On: Monday, December 16, 2024

saint ramanand jayanti
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रामानंद भक्ति आंदोलन के अगुआ थे। उन्होंने राम और सीता की भक्ति को लोकप्रिय बनाया। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो जाति, लिंग और संप्रदाय से परे लोगों को एकजुट करने में विश्वास करते थे।

Authored By: स्मिता

Updated On: Monday, December 16, 2024

“जात-पात पूछे न कोई”, जो हरि को भजे सो हरि का होई” – यह है संत रामानंद जी का संदेश। 21 जनवरी 2025 को विरक्त वैष्णव मंडल ऋषिकेश द्वारा स्वामी रामानंद जी की 725वीं जयंती का आयोजन भव्य रूप से किया जाएगा। यह निर्णय स्वामीनारायण आश्रम में आयोजित संतों की बैठक में लिया गया। यह आयोजन न केवल रामानंद की शिक्षाओं के प्रति श्रद्धांजलि देने का माध्यम बनेगा, बल्कि सनातन धर्म के मूल्यों और सहिष्णुता के संदेश (Saint Ramanand Jayanti) को प्रसारित करेगा।

समाज को एकजुट करना था स्वामी रामानंद का उद्देश्य

महामंडलेश्वर स्वामी दयाराम दास ने बताया कि इस वर्ष रामानंद जयंती (Saint Ramanand Jayanti) सनातन धर्म के प्रति समर्पित रहेगी। उन्होंने कहा कि संत रामानंद का उद्देश्य जाति-पाति के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एकजुट करना था। उनके विचार “जात-पात पूछे न कोई, जो हरि को भजे सो हरि का होई” आज भी प्रेरणा देते हैं। आगामी 21 जनवरी को रामानंद आश्रम मायाकुंड से शोभा यात्रा प्रारंभ होगी। यह शोभा यात्रा में उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्र और स्थानीय पुरातन बैंड बाजे भी शामिल होंगे, जो आयोजन को और भव्य बनाएंगे।

भक्ति आंदोलन के अग्रणी (Bhakti Aandolan) 

रामानंद भक्ति आंदोलन के अगुआ थे। उन्होंने राम और सीता की भक्ति को लोकप्रिय बनाया। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो जाति, लिंग और संप्रदाय से परे लोगों को एकजुट करने में विश्वास करते थे। उन्हें स्थानीय हिंदी में अपनी रचनाएं लिखने के लिए जाना जाता था, ताकि ज्ञान आम जनता तक पहुंच सके। जगद्गुरु स्वामी रामानंद या रामानंदाचार्य  14वीं सदी के हिंदू वैष्णव भक्ति कवि संत थे, जो उत्तरी भारत के गंगा बेसिन में रहते थे। हिंदू परंपरा उन्हें रामानंदी संप्रदाय के संस्थापक के रूप में पहचानती है, जो आधुनिक समय में सबसे बड़ा मठवासी और त्यागी समुदाय है।

 स्थानीय हिंदी में आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा

रामानंद अपनी रचनाओं की रचना और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा स्थानीय हिन्दी में करने के लिए जाने जाते थे। उनका कहना था कि इससे ज्ञान जनसाधारण को सुलभ हो जाता है। नाभादास द्वारा लिखित मध्ययुगीन भक्तमाला पाठ के अनुसार, रामानंद ने वेदांत-आधारित वातकलाई (उत्तरी, राम-अवतार) वैष्णववाद स्कूल में एक गुरु (शिक्षक) राघवानंद के अधीन अध्ययन किया।

रामानंद के नाम पर “बैरागी” संप्रदाय

रामानंद ने अपना अधिकांश जीवन पवित्र शहर वाराणसी में बिताया। रामानंद ने अपने शिष्य के चुनाव में जाति-धर्म के आधार पर कभी भेदभाव नहीं किया। सभी को बराबर शिक्षा दी। उनके कई शिष्य थे, जिनमें कबीर, रविदास, भगत पीपा, अनंतानंद, भवानंद, भगत सैन, धन्ना भगत, नाभा, नरहर्यानंद, रंका, सुखानंद और तुलसीदास शामिल थे।रामानंद के शिष्यों ने भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया। रामानंदी संप्रदाय, जिसे “बैरागी” संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। इसका नाम रामानंद के नाम पर रखा गया है।

(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ) 

 

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।

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