अमेठी की जंग फिर जीतेंगे हम : स्मृति इरानी

अमेठी की जंग फिर जीतेंगे हम : स्मृति इरानी

Authored By: Tarun Vats

Published On: Saturday, April 13, 2024

amethi ki jang
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2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से कांग्रेस के दिग्गज राहुल गांधी को धूल चटाकर इतिहास रच चुकीं भाजपा की लोकप्रिय नेता स्मृति इरानी इस बार भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। इसमें उनके मुखर और आकर्षक व्यक्तित्व के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रभाव व यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सुशासन भी प्रमुख भूमिका निभाएंगे...

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Last Updated On: Thursday, June 20, 2024

क्या गांधी परिवार से मुक्त हो जाएगा अमेठी और रायबरेली

अमेठी लोकसभा सीट से सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी एक बार फिर से चुनाव मैदान में हैं। इरानी का दावा है कि इस जंग में हम ही जीतेंगे। दावा सही भी प्रतीत हो रहा है क्योंकि इरानी ने बीते पांच वर्षों में जो काम किया है उसे लेकर उनके क्षेत्र के लोग तारीफ करते नहीं अघा रहे हैं। लंबे समय तक कांग्रेस की परंपरागत सीट रहे अमेठी को लेकर स्मृति इरानी ने अगर यह दावा किया है तो क्षेत्र की जनता इस बात को नहीं भूल पा रही है कि 2004 से 2014 तक दस साल के यूपीए शासनकाल में इस क्षेत्र का इतना विकास नहीं हुआ जितना पिछले पांच वर्ष में हुआ है। अमेठी और रायबरेली सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी लेकिन रायबरेली में तो नहीं लेकिन अमेठी में अगर किसी ने कांग्रेस को झटका दिया तो वह हैं स्मृति इरानी। क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी को चुनौती देने वाली स्मृति इरानी ही थीं। भले ही तब वे लोकसभा चुनाव हार गईं लेकिन 2019 के चुनाव में उन्होंने राहुल के सामने जो चुनौती पेश की उसे अमेठी की जनता के साथ-साथ पूरे देश ने देखा। इससे स्मृति का सिक्का सबके सामने जम गया। यह कोई महज तुक्का नहीं था। 15 साल तक इस सीट पर सांसद रहे राहुल गांधी ने 2019 में दो लोकसभा सीटों (अमेठी और वायनाड) से चुनाव लड़ा। राहुल को यह अंदेशा था कि शायद अमेठी में इरानी की चुनौती उनके लिए बड़ी है। यही कारण रहा कि 2004, 2009 और 2014 में अमेठी से तीन बार सांसद बन चुके राहुल गांधी 2019 में दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े। 

चुनौती इतनी बड़ी थी कि परिणाम भी राहुल गांधी की आशंका के अनुसार ही आए और वह अमेठी सीट हार गए और दूसरी सीट वायनाड से चुनाव जीत गए। राजनीतिक विश्लेषक इस बात को मानते हैं कि अमेठी में कांग्रेस ने अपने परंपरागत वोट बैंक को खो दिया। कारण साफ है कि अमेठी कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन विकास के मामले में यह गढ़ पिछड़ता गया। अमेठी सीट पर नेहरू गांधी परिवार का कब्जा रहा है, पर विडंबना यही रही कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद विकास के मामले में इस क्षेत्र के लोग अछूते रहे हैं। यही कारण है कि यहां के लोगों में जब विश्वास जगा कि कांग्रेस शासन काल में कुछ नहीं हुआ तो उन्होंने 15 साल तक सांसद रहे राहुल गांधी को हराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। दूसरी बात यह है कि स्मृति इरानी भले ही 2014 का चुनाव हार गई थीं लेकिन उन्होंने अमेठी की जनता को यह विश्वास दिलाया कि हार के बाद भी जीत होती है, यही कारण है कि वे अमेठी में अपनी उपस्थिति लगातार दर्ज कराती रहीं। 

आज अमेठी में राहुल गांधी तो चुनाव मैदान में नहीं हैं लेकिन कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। स्मृति इरानी के दावे में एक सच्चाई जरूर नजर आती है कि अमेठी की जंग को वे ही जीतेंगी चाहे सामने उम्मीदवार कोई भी हो। राहुल गांधी ने 2019 का चुनाव वायनाड सीट से जीता था और इस चुनाव में भी वहां से वह उम्मीदवार हैं लेकिन अमेठी में अभी कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। चुनाव दिलचस्प है और मुकाबला भी। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या अमेठी सीट अब सदा के लिए नेहरू-गांधी परिवार से मुक्त हो जाएगा। इस सवाल का 2019 में मिल गया था, जब स्मृति इरानी ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। इरानी 2024 में भी उम्मीदवार हैं और आज नेहरू-गांधी परिवार का कोई भी सदस्य इस सीट से चुनाव लड़ने के लिए ताल नहीं ठोंक रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इलाहाबाद (अब प्रयागराज), फूलपुर, अमेठी, रामबरेली ये सब सीटें कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इन क्षेत्रों के लोगों का विकास नहीं किया और धीरे-धीरे ये सीटें कांग्रेस के लिए नेपथ्य में चली गईं। आज स्थिति यह है कि अमेठी की सीट के साथ-साथ रायबरेली सीट को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है क्योंकि रायबरेली सीट भी कांग्रेस की गढ़ कही जाती रही है। लोग अब सवाल भी करने लगे हैं कि क्या अमेठी और रायबरेली की सीट नेहरू-गांधी परिवार से मुक्त हो जाएगी। रायबरेली सीट से सांसद रहीं सोनिया गांधी अब राजस्थान से राज्यसभा की सांसद बन गई हैं तो एक बात तो तय हो गई है कि सोनिया गांधी चुनाव नहीं लड़ेंगी। लेकिन सोनिया की जगह कौन लेगा यह सवाल लोगों के बीच चर्चा के केंद्र में है।

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